एक कर्मणा तेरापंथी -हरियाणा के सरदार सोहनसिंह जी मक्कड़

Posted: 25 अगस्त 2020
आचार्य श्री तुलसी से लेकर वर्तमान में आचार्य श्री #महाश्रमणजी के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा हैं हरियाणा के सरदार सोहनसिंह जी मक्कड़ की, हर चातुर्मास में पहुंचते हैं धर्म-आराधना हेतु।
भारत अनेक पन्थो,मतों व सम्प्रदायों का देश हैं, नाना प्रकार के धर्मो की ये एक सुंदर बगिया है जहां विभिन्न सम्प्रदाय रूपी रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। यहां अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। अनेक धर्म ऐसे हैं जिनके अनुयायी बनने हेतु कोई विशेष औपचारिकताएं नही होती। ना ही अपना मूल धर्म छोड़ना पड़ता है,बस अपने परम् श्रद्धेय गुरु के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा के भाव जागृत हो जाने चाहिए। जैन धर्म से भी अपने मूल धर्म को छोड़े बिना जुड़ा जा सकता हैं। में वर्ष 2018 में इन्हीं दिनों चेन्नई स्थित माधवरम में चातुर्मासार्थ विराजमान शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शन निमित पहुंचा हुआ था। चेन्नई रेलवे स्टेशन के प्रतिरूप आकार में निर्मित विशाल प्रवचन पांडाल "महाश्रमण समवसरण" में प्रातःकालीन प्रवचन श्रवण कर ही रहा था कि मेरी नजर केसरिया रंग की पगड़ी पहने एक बुजुर्ग सरदार जी पर पड़ी, जो कि प्रवचन श्रवण के दौरान मुंह पर रुमाल रूपी मुँहपट्टी लगाए हुए थे। मेरे मन मे उनसे रूबरू होने की जिज्ञासा जगी। जैसे ही प्रवचन सम्पन्न हुआ और श्रद्धालुओं का कारवां पांडाल से बाहर की और कूच करने लगा तो में शीघ्रता के साथ सरदार जी के समीप पहुंच गया, और उनसे अभिवादन कर कुछ जानने की अपनी मंशा व्यक्त की, तो उन्होंने सहर्ष जानकारी देने की अपनी सहमति प्रदान की।जब मैंने उनसे नाम,शहर, व्यवसाय व तेरापंथ धर्म संघ के प्रति जुड़ाव सम्बन्धी विगत जाननी चाही,तो उन्होंने बताया कि उनका नाम सरदार सोहनसिंह मक्कड़ है, वे हरियाणा के सिरसा स्थित मंडी कालांवाली के निवासी है, वे पिछले 23 वर्षों से तेरापंथ धर्म संघ से जुड़े हुए हैं, वे बताते हैं कि करीब 23 वर्ष पहले आचार्य श्री तुलसी नेतृत्व काल मे उनके शिष्य मुनि श्री रोशन लाल जी स्वामी व मुनि श्री सम्भवकुमार जी आदि सन्त हमारे मंडी कालांवाली चातुरमासार्थ पधारे हुए थे, तब उनके दर्शन करने का संयोग हुआ था, उनके प्रवचन सुनने हेतु जाने का सिलसिला नियमित रूप से प्रारम्भ हुआ, फिर गुरुदेव के प्रति श्रद्धा प्रगाढ़ होती चली गई, एक दिन गुरुवर के प्रति असीम श्रद्धा ने मुझे लाडनू की यात्रा करवा दी। श्री सोहनसिंह जी आंखों देखी का वर्णन करते हुए बताते हैं कि लाडनू के प्रवचन पांडाल में प्रवचन सम्पन्न होते ही गुरुदेव की दिव्य दृष्टि मुझ पर पड़ी और मुझे निकट पहुंचने हेतु इंगित किया, गुरुदेव की इस अनुकम्पा से मानो में तो निहाल ही हो गया, गुरुदेव के निकट पहुंचा और आप श्री ने मेरे बारे में जानकारी ली, मैंने सारी विगत बताई, कि किस तरह मेरा जुड़ाव इस धर्म संघ से हुआ, कभी कपड़े के कारोबारी रहे 78 वर्षीय श्री सोहनसिंह जी मक्कड़ इन दिनों निवृत है व नित्य गुरुद्वारा पहुंच कर धर्म-आराधना में लीन रहते हैं, वे अपने शहर कालांवाली में प्रत्येक शनिवार को गुरु इंगित अनुसार सामयिक आराधना करना नही भूलते।श्री सोहन सिंह जी ने बताया कि वे इन 23 वर्षों में आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी तथा वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण जी के जहां-जहां चातुर्मास हुए हैं वहां-वहां वे कोलकोता व गोहाटी चातुर्मास को छोड़ सभी जगह पहुंचे हैं, व गुरुओं के दर्शन आराधना में लीन रहे हैं। वे कहते हैं कि अपने मूल धर्म से जुड़े रहते हुए भी आप अन्य धर्म की खूबियों व अच्छाइयों को अंगीकार कर सकते हैं, धन्य है श्री सोहन सिंह जी जैसे प्रगाढ़ श्रावक...
लेखन साभार गणपत भंसाली (गुरुवार 23 अगस्त, माधवरम, चेन्नई )

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