गताक से आगे........
आचार्य तुलसी
प्रधानमन्त्री-" आचार्यजी! आप यहॉ बैठने की कृपा करे ? स्थान उपयुक्त था पर वहॉ कुछ चीटियॉ थी। उन्हे देखकर आचर्यश्री ने कहा-" यहॉ तो चीटियॉ है। आचार्य श्री अपनी बात पुरी करे उससे पहले ही प्रधानमत्री बोल उठे- आचार्यजी आप यहॉ बैठ नही पायेगे दूसरा स्थान देख लेते है।"
प्रधानमन्त्री ने एक कुर्सी की गद्दी अपने हाथ मे ले ली और आचार्यश्री के साथ साथ चले। बरामदे के दुसरे छोर पर साफ सुथरा स्थान था।
वहॉ साधुओ ने छोटा काष्टपट बिछा दिया, उस पर आचार्यश्री बैठ गये और उनके पास साधू बैठ गऐ। प्रधानमन्त्री ने अपने हाथ से गद्दी बिछाई और आचार्यश्री तुलसी के सामने बैठ गये। उनकी इस सहजता और विनम्रता का दर्शको के मन पर गहरा प्रभाव पडा। प्रधानमन्त्री ने गृहमन्त्री कैलाशानाथ काटजू, यूपी के मुख्यमन्त्री गोविन्दवल्ल्भ पन्त और अपनी पुत्री प्रियदर्शिनी ईन्दरा गान्धी को वही बुला लिया। पन्तजी वृद्ध थे, उन्हे निचे बैठने मे असुविधा हो रही थी। प्रधानमन्त्री उनकी ओर उन्मुख होकर बोले-"पन्तजी! आपको निचे बैठने मे कष्ट होगा, आप कुर्सी पर बैठ जाइये।"पन्तजी ने कहा-"नही मे नीचे ही बैठुगा।"
(देश के प्रधानमन्त्री से मिलने का आचार्य श्री तुलसी का यह पहला अवसर था। प्रधानमन्त्री भी किसी धर्म सघ के आचार्य से पहली बार मिल रहे है। दोनो और उत्सुकता थी। पर बात शुरु करने की समस्या थी। दो क्षण सभी मोन रहे। आखिर प्रधानमन्त्री ने मोन को तोडा)
प्रधानमन्त्री-" अच्छा, आचार्याजी! बोलिये आप क्या चाहते है ?"
आचार्यश्री-"हम कुछ नही चाहते।"
( बात प्रारम्भ होने से पहले ही समाप्त हो गई। वहॉ बैठे सभी लोग आचार्यश्री की और देखने लगे। स्वय प्रधानमन्त्री को इस प्रकार के उत्तर की आशा नही थी। बातचीत का सूत्र पुनः उनकी और से जोडा गया)
प्रधानमन्त्री-" फिर आपका यहॉ आने का उद्देशय क्या है ?"
आचार्यश्री-" हमारा आपके साथ कोई परिचय नही है। राष्ट्रपति राजेन्द्रवाबू को हम जानते है। हम उनसे मिले थे। उन्होने हमे प्रेरणा दी कि आपसे अवश्य मिले। वैसे गत वर्ष गर्मी के दिनो मे यहॉ आए थे। उस समय आपसे मिलने का प्रसग ही नही बना। आपको शायद ज्ञात नही होगा की हम कुछ वर्षो से एक नैतिक अभियान चला रहे है। आप यह भी जानते है की देश आजाद हुआ तब उसमे देश वासियो को बहुत बलिदान नही करना पडा। ऐसी स्थिति मे नैतिक गिरावट की सम्भावना प्रबल हो उठी है। हमने सोचा- हमारे पास- पॉच सो पदयात्री साधू-साध्विया कि फोज है। आप देश के नैतिक उत्थान मे इस फोज का उपयोग करना चाहे तो वो तैयार। यह बात बताने के लिए हम यहॉ आए है।"
प्रधानमन्त्री-" यह तो बहूत काम की बात है। आपने अब तक अपनी बात हम तक पहुचाई क्यो नही ?"
आचार्यश्री-" पण्डितजी! आपके बारे मे सुना था की आपकी धर्म के विषय मे रुची नही है। आप जानते है हम धर्म के आदमी है। इस कारण हमने कभी आपसे मिलने का प्रयास ही नही किया। इधर मे हमने आपके कुछ वक्तव्य पढे। उनमे यत्र-तत्र अध्यात्म की चर्चा है। उससे लगा आपकी अरुची धर्म से नही सम्प्रदायो से है। साम्प्रदायिक क्रियाकान्डो मे आपका रुझान नही है, पर अध्यात्म को देश समाज के लिऍ उपयोगी मानते है।
अणुव्रत यही कहता है कि व्यक्ती-व्यक्ती चरित्र निष्ठ बने। उनकी चरित्रनिष्ठा का प्रभाव समाज और राष्ट्र पर हो तो देश के गिरते हुए नैतिक स्तर को ऊचॉ उठाया जा सकता है। इस उदेश्य के लिए हम अणुव्रत का कार्य कर रहे है। अणुव्रत का पहला अधिवेशन दिल्ली मे और दुसरा पन्जाब मे हुआ। अब तक हजारो व्यक्ती अणुव्रती बन चुके है।
प्रधानमन्त्री-" अणुव्रती कहॉ बने है ? हमारे देश मे बने है क्या ?"
आचार्यश्री-" हम पदयात्री है, इसलिए देश मे ही पद यात्रा करते हुऍ काम कर रहे है। अणुव्रती बनने वाले इसी देश के है। आपने अणुव्रत की आचार सहिता देखी नही होगी।
प्रधानमन्त्री-" नही, अब तक नही देखी है। मेरी इच्छा है मै उसे देखूगा।"
आचार्य श्री-" उसके बारे मे आपके मुलयवान सुझाव भी अपेक्षित रहेगा।
हम अणुव्रत कार्यक्रम को व्यापक रुप मे आगे बढाना के लिए प्रयत्नशिल है। दिल्ली चातुर्मास प्रवास मे अणुव्रत के बारे मे साप्ताहीक विचार परिषदे आयोजित हुई। उसमे आपके मन्त्रीमण्डल के अनेक सदय उपस्थित हुए थे। गुलजारीलाल नन्दा, शकरराव चव्हाण आदि ने अणुव्रत के बारे मे अच्छे विचार रखे।
आचार्य श्री तुलसी ने एक छत्र ५२ वर्षो तक तेरापन्थ धर्म सघ के अधिशास्ता के रुप मे आचार्यपद का निर्वाह किया। वो गीतिका भी बहूत गाते थे॥उनकी ही अवाज मे आप भी यह गीतिका सुने।
आचार्य तुलसी
प्रधानमन्त्री-" आचार्यजी! आप यहॉ बैठने की कृपा करे ? स्थान उपयुक्त था पर वहॉ कुछ चीटियॉ थी। उन्हे देखकर आचर्यश्री ने कहा-" यहॉ तो चीटियॉ है। आचार्य श्री अपनी बात पुरी करे उससे पहले ही प्रधानमत्री बोल उठे- आचार्यजी आप यहॉ बैठ नही पायेगे दूसरा स्थान देख लेते है।"
प्रधानमन्त्री ने एक कुर्सी की गद्दी अपने हाथ मे ले ली और आचार्यश्री के साथ साथ चले। बरामदे के दुसरे छोर पर साफ सुथरा स्थान था।
वहॉ साधुओ ने छोटा काष्टपट बिछा दिया, उस पर आचार्यश्री बैठ गये और उनके पास साधू बैठ गऐ। प्रधानमन्त्री ने अपने हाथ से गद्दी बिछाई और आचार्यश्री तुलसी के सामने बैठ गये। उनकी इस सहजता और विनम्रता का दर्शको के मन पर गहरा प्रभाव पडा। प्रधानमन्त्री ने गृहमन्त्री कैलाशानाथ काटजू, यूपी के मुख्यमन्त्री गोविन्दवल्ल्भ पन्त और अपनी पुत्री प्रियदर्शिनी ईन्दरा गान्धी को वही बुला लिया। पन्तजी वृद्ध थे, उन्हे निचे बैठने मे असुविधा हो रही थी। प्रधानमन्त्री उनकी ओर उन्मुख होकर बोले-"पन्तजी! आपको निचे बैठने मे कष्ट होगा, आप कुर्सी पर बैठ जाइये।"पन्तजी ने कहा-"नही मे नीचे ही बैठुगा।"
(देश के प्रधानमन्त्री से मिलने का आचार्य श्री तुलसी का यह पहला अवसर था। प्रधानमन्त्री भी किसी धर्म सघ के आचार्य से पहली बार मिल रहे है। दोनो और उत्सुकता थी। पर बात शुरु करने की समस्या थी। दो क्षण सभी मोन रहे। आखिर प्रधानमन्त्री ने मोन को तोडा)
प्रधानमन्त्री-" अच्छा, आचार्याजी! बोलिये आप क्या चाहते है ?"
आचार्यश्री-"हम कुछ नही चाहते।"
( बात प्रारम्भ होने से पहले ही समाप्त हो गई। वहॉ बैठे सभी लोग आचार्यश्री की और देखने लगे। स्वय प्रधानमन्त्री को इस प्रकार के उत्तर की आशा नही थी। बातचीत का सूत्र पुनः उनकी और से जोडा गया)
प्रधानमन्त्री-" फिर आपका यहॉ आने का उद्देशय क्या है ?"
आचार्यश्री-" हमारा आपके साथ कोई परिचय नही है। राष्ट्रपति राजेन्द्रवाबू को हम जानते है। हम उनसे मिले थे। उन्होने हमे प्रेरणा दी कि आपसे अवश्य मिले। वैसे गत वर्ष गर्मी के दिनो मे यहॉ आए थे। उस समय आपसे मिलने का प्रसग ही नही बना। आपको शायद ज्ञात नही होगा की हम कुछ वर्षो से एक नैतिक अभियान चला रहे है। आप यह भी जानते है की देश आजाद हुआ तब उसमे देश वासियो को बहुत बलिदान नही करना पडा। ऐसी स्थिति मे नैतिक गिरावट की सम्भावना प्रबल हो उठी है। हमने सोचा- हमारे पास- पॉच सो पदयात्री साधू-साध्विया कि फोज है। आप देश के नैतिक उत्थान मे इस फोज का उपयोग करना चाहे तो वो तैयार। यह बात बताने के लिए हम यहॉ आए है।"
प्रधानमन्त्री-" यह तो बहूत काम की बात है। आपने अब तक अपनी बात हम तक पहुचाई क्यो नही ?"
आचार्यश्री-" पण्डितजी! आपके बारे मे सुना था की आपकी धर्म के विषय मे रुची नही है। आप जानते है हम धर्म के आदमी है। इस कारण हमने कभी आपसे मिलने का प्रयास ही नही किया। इधर मे हमने आपके कुछ वक्तव्य पढे। उनमे यत्र-तत्र अध्यात्म की चर्चा है। उससे लगा आपकी अरुची धर्म से नही सम्प्रदायो से है। साम्प्रदायिक क्रियाकान्डो मे आपका रुझान नही है, पर अध्यात्म को देश समाज के लिऍ उपयोगी मानते है।
अणुव्रत यही कहता है कि व्यक्ती-व्यक्ती चरित्र निष्ठ बने। उनकी चरित्रनिष्ठा का प्रभाव समाज और राष्ट्र पर हो तो देश के गिरते हुए नैतिक स्तर को ऊचॉ उठाया जा सकता है। इस उदेश्य के लिए हम अणुव्रत का कार्य कर रहे है। अणुव्रत का पहला अधिवेशन दिल्ली मे और दुसरा पन्जाब मे हुआ। अब तक हजारो व्यक्ती अणुव्रती बन चुके है।
प्रधानमन्त्री-" अणुव्रती कहॉ बने है ? हमारे देश मे बने है क्या ?"
आचार्यश्री-" हम पदयात्री है, इसलिए देश मे ही पद यात्रा करते हुऍ काम कर रहे है। अणुव्रती बनने वाले इसी देश के है। आपने अणुव्रत की आचार सहिता देखी नही होगी।
प्रधानमन्त्री-" नही, अब तक नही देखी है। मेरी इच्छा है मै उसे देखूगा।"
आचार्य श्री-" उसके बारे मे आपके मुलयवान सुझाव भी अपेक्षित रहेगा।
हम अणुव्रत कार्यक्रम को व्यापक रुप मे आगे बढाना के लिए प्रयत्नशिल है। दिल्ली चातुर्मास प्रवास मे अणुव्रत के बारे मे साप्ताहीक विचार परिषदे आयोजित हुई। उसमे आपके मन्त्रीमण्डल के अनेक सदय उपस्थित हुए थे। गुलजारीलाल नन्दा, शकरराव चव्हाण आदि ने अणुव्रत के बारे मे अच्छे विचार रखे।
Jawaharlal Nehru First Prime Minister of India.
A Movement Strong Foundation
If we wish to build the edifice of our nation, its foundation must be laid on sand, the whole structure will collapse the moment it gives way. The edifice erected on the foundation of character is always strong. We have the responsibility of implementing many important projects in our country. They are all embedded in character. The Anuvrat Movement is doing good work in this direction. I believe that the more this work progresses the better it is . So I wish the Anuvrat Movement all success.
इसके पुर्व चर्चा पर नजर डाले
डॉ,राजेन्द्रप्रसाद आचार्य तुलसी सवाद और नेहरुजी-3
1951
आचार्य तुलसी सवाद शिखरपुरुषो के साथ-3
सम्पादिका- साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा
पेज क्रमाक 44 से 46
क्रमश.......
प्रधानमन्त्री नेहरू-" यह आशुकविता क्या होती है ?
प्रधानमन्त्री-"पन्तजी! आशु कविता का विषय आप दिजिए।
और ऐसे बहुत से प्रशन जो नेहरु जी के बारे मे हम बात करेगे अगले अक मे।
आचार्य श्री तुलसी ने एक छत्र ५२ वर्षो तक तेरापन्थ धर्म सघ के अधिशास्ता के रुप मे आचार्यपद का निर्वाह किया। वो गीतिका भी बहूत गाते थे॥उनकी ही अवाज मे आप भी यह गीतिका सुने।
सरस विवरण
आचार्य तुलसी की आवाज में ओज है!
आचार्य जी की सुरीली और भक्तिमय गीतिका सुनना बहुत मनोरम लगा
धन्यवाद ....