एक विदेशी लेखक की टांगे टूट गयी। उसने स्वप्न में देखा

Posted: 14 जुलाई 2009
स्वप्न और मन

लेखक आचार्य महाप्रज्ञ 
ध्यात्म के लोगों ने इस संसार को दो-तीन उपमाओं में उपमित किया है - 
स्वप्न, इंद्रजाल और मृगमरीचिका संसार स्वप्न - जैसा है। संसार इंद्रजाल के समान है। 
संसार मृगमरीचिका के समान है। भारतीय साहित्य में स्वप्न की बहुत चर्चा प्राप्त है। भारतीय विद्या की अनेक शाखाओं में स्वप्न के विषय में बहुत लिखा गया है। अष्टांगनिमित्त शास्त्र का अंग है - स्वप्नशास्त्र। भारत के लोग स्वप्न में बहुत विश्वास करते रहे हैं। ढाई-तीन हजार वर्ष पुराने साहित्य में स्वप्न-पाठकों का विस्तार से उल्लेख प्राप्त है। स्वप्न-पाठक स्वप्न को सुनकर उसका फल बताते थे। उनका फल-निरूपण अक्षरश: सही होता था। स्त्रियों को गर्भावस्था में स्वप्न आने की बात मिलती है। वे स्वप्न-पाठकों से उस स्वप्नों का फलाफल जान लेती थी। जैन साहित्य, बौद्ध साहित्य में स्वप्न की घटनाएं प्रचुरता से प्राप्त हैं।  नींद और स्वप्न का संबंध है। प्रत्येक व्यक्ति स्वप्न देखता है। वह उसे याद रख सके या नहीं, विश्लेषण कर सके या नहीं, यह दूसरी बात है।
जैन आगमों में स्वप्न संबंधी विस्तृत सी जानकारियां यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। आदमी की तीन अवस्थाएं होती हैं - सुप्त अवस्था, निद्रा अवस्था और अर्धनिद्रा अवस्था। आदमी जब आधा जागता है, आधा सोता रहता है तब उसे स्वप्न आते हैं। स्वप्न में वास्तु-दर्शन के आधार पर उसके अनेक प्रकार होते हैं। उनके कुल 72 प्रकार हो जाते हैं। कुछ महास्वप्न होते हैं और कुछ सामान्य स्वप्न। कुछ स्वप्न यथार्थ होते हैं और कुछ अयथार्थ। कुछ स्वप्न सच्चे होते हैं और कुछ स्वप्न झूठे होते हैं। कुछ स्वप्न क्लेश करने वाले होते हैं और कुछ स्वप्न समाधि उत्पन्न करने वाले होते हैं। चित्त-समाधि की प्राप्ति के अनेक कारण हैं। उनमें एक कारण है
स्वप्न। ऐसे स्वप्न आते हैं, जिनसे उलझन सुलझ जाती है।   
विज्ञान की अनेक खोजों के साथ स्वप्न की बात जुड़ी हुई है। वैज्ञानिक को पूरा समाधान नहीं मिल रहा था,। स्वप्न ने उसकी गुत्थी सुलझा दी। सिलाई मशीन की खोज हुई। पूरा समाधान नहीं मिला। स्वप्न में समाधान मिल गया। मनोविज्ञान का पूरा एक विभाग 'स्वप्न-विज्ञान' से जुड़ा हुआ है। विशेषावश्यक भाष्य में बताया गया है कि संस्कारों के कारण स्वप्न आते हैं। मनोविज्ञान मानता है कि दमित इच्छाएं, अवचेतन मन की इच्छाएं, स्वप्न में प्रकट होती हैं। दिन में चेतन मन काम करता है। चेतन में बुद्धि है, तर्क है, काट-छांट करने की शक्ति है। वह दिन में कार्यरत रहता है। जब आदमी सो जाता है तब वह निष्क्रिय हो जाता है और अवचेतन मन सक्रिय हो जाता है।  
स्वप्न श्रुत, दृष्ट या अनुभूत घटना का ही आता है। अश्रुत, अदृष्ट या अननुभूत घटना का कभी स्वप्न नहीं आता। कुछ लोग कहते हैं - हमें ऐसा स्वप्न आया जिसका दृश्य न श्रुत था, न दृष्ट था और न अनुभूत था। यह बात अन्यथा भी नहीं है। इसका भी पुष्ट कारण है। हमारी स्मृति केवल इस मस्तिष्क की स्मृति नहीं है, इससे परे की स्मृति है, पुर्वजन्म के संस्कारों की स्मृति है। इन संस्कारों की परतें हमारे मस्तिष्क में है। संभव है आज का मस्तिष्क-विज्ञानी इसे न जान पाया हो। अभी मस्तिष्क के अनेक रहस्य अज्ञात हैं। हजारों-हजारों वैज्ञानिक मस्तिष्क के अध्ययन में संलग्न हैं, पर आज भी वह रहस्य बना हुआ है।
 तेरापंथ के आठवें आचार्य कालूगणी कहते, जब कभी किसी समस्या का समाधान नहीं मिलता तो मैं उस समय उसको छोड़ देता। रात को स्वप्न में समाधान मिल जाता। ऐसा लगता है कि मानो कोई समाधान प्रस्तुत कर रहा है। कालूगणी को स्वप्न आया। स्वप्न में छोटे-छोटे बछड़े देखे। वह यथार्थ स्वप्न था। उसका फलित यह हुआ था कि शासन में छोटे-छोटे संत बहुत आए। श्रीमायाचार्य और आचार्यश्री तुलसी के अनेक स्वप्न लिखे पड़े हैं। उनकी सच्चाई असंदिग्ध है। उन स्वप्नों से प्रेरित होकर श्रीमायाचार्य ने अनेक कार्य संपादित किये। स्वप्न बहुत प्रेरक होते हैं।
संस्कृत का एक उच्चकोटि का ग्रंथ है - कादम्बरी। उसके लेखक हैं बाणभट्ट। इस ग्रंथ की पूरी कल्पना स्वप्न में ही की गयी थी। कल्पना को विस्तार दिया, महान ग्रंथ बन गया। 


स्वप्न की भाषा सांकेतिक होती है। उसे जो नहीं पकड़ पाता, वह स्वप्न को नहीं जान पाता। वह उसमें उलझ जाता है। उसका रास्ता बहुत टेढ़ा-मेढ़ा होता है। उसके दृश्य विचित्र होते हैं। कल्पना किसे कहते हैं? आदमी ने देश देखा है। आदमी ने आदमी को देखा है। स्वप्न में एक ऐसा प्राणी देखा, जिसका सिर शेर का है और शेष शरीर मनुष्य का। नरसिंह का रूप सामने आ गया। यह है कल्पना। कल्पना और स्वप्न की भाषा सांकेतिक होती है।


          

एक भिखारी भीख के लिए घर-घर घूम रहा था। कुछ मिला नहीं। अंत में एक घर में उसे थोड़े दाने मिले। कुछ दाने खा-पीकर वह सो गया। कुछ दाने शेष रह गये। थका-मांदा था ही। सोते ही नींद आ गयी। सपने में देखा कि एक फरिश्ता आकर उससे भीख मांग रहा है। भिखारी ने शेष बचे दानों में से एक दाना उसे दे दिया। यहां सपना पूरा हो गया। वह प्रात: उठा। उसने देखा उसके पात्र में और दाने वैसे ही पड़े हैं, केवल एक दाना सोने का हो गया। उसने सोचा - यदि मैं सारे दाने उस फरिश्ते को दे देता को आज निहाल हो जाता।


 सारे स्वप्न यथार्थ ही नहीं होते, अयथार्थ भी होते हैं। उन पर भरोसा करने वाला धोखा भी खा जाता हैएक पुजारी ने स्वप्न में देखा कि उसका मंदिर घेवरों से भर गया है। उसने सोचा, अच्छा अवसर है। मैं गांववालों को भोजन करा दूं। सुबह उठा। सारे गांव को न्योता आया। सभी लोग मंदिर पर आ गये। पुजारी सो रहा था। भोजन का समय अतिक्रांत हो गया। एक व्यक्ति ने पुजारी को उठाकर निमंत्रण की बात कही। पुजारी बोला - ठहरो! मैं स्वप्न ले रहा हूं। स्वप्न में जब घेवरों से मंदिर भर जाएगा, तब मैं आपको भोजन करा दूंगा। ये सब स्वप्न के घेवर थे।
स्वप्न के देवता पर, ज्योतिषी और स्वप्न पर पूरा भरोसा करना खतरे से खाली नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं कि मुझे स्वप्न में देवता ने ऐसा कहा है। वह उसके अनुसार काम करता है और फंस जाता है। इसमें एक बात और है कि स्वप्न की भाषा को समझना बहुत कठिन होता है। उसमें दिखता कुछ है और उसका अर्थ कुछ और ही होता है। इसीलिए ये सारी गड़बड़ियां होती हैं।


जैन आगमों में 
तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव की माताएं गर्भावस्था से पूर्व स्वप्न देखती हैं। वे स्वप्न वस्तुपरक होते हैं। उनमें कलश, छत्र, सरोवर, माला आदि-आदि देखे जाते हैं। उनका अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। ये सारे प्रतीक हैं। इन प्रतीकों का सही अर्थ जानना सहज नहीं होता। सभी तीर्थंकरों के प्रतीक चिह्न हैं। किसी का मृग, किसी का शेर, किसी का छत्र और किसी का सर्प। ये सब प्रतीक हैं।
स्वप्न भी प्रतीकात्मक होते हैं। दिन में जो घटनाएं घटती हैं, उनके स्वप्न भी आते हैं। यह पुनरावृत्ति होती है। चेतन मन में जो बात रही, वह अचेतन मन के द्वारा प्रकट हो जाती है। कुछ बातों का पूर्वाभास भी होता है। जो घटना भविष्य में घटित होने वाली है, उसको पहले ही जान लिया जाता है। यह है पूर्वाभास। यह बहुत सही होता है।


आचार्य भिक्षु जब उत्पन्न हुये तब मां ने सिंह का स्वप्न देखा था। वह भविष्य में उनकी शक्ति का प्रतीक था। दीक्षा के अवसर पर मां ने कहा - मैंने सिंह का स्वप्न देखा है। मेरा यह बेटा सिंह की भांति शक्तिशाली होगा। स्वप्न के आधार पर भविष्य को जान लिया।

स्वप्न का संबंध संस्कारों, पूर्व की घटनाओं, सुनी हुई या जानी हुई सूचनाओं से है। यह सूचना अवचेतन मन भी दे सकता है और कोई दिव्यात्मा भी दे सकता है। दिव्यात्माओं के कुछ विषय होते हैं। वे प्रत्यक्ष होकर कुछ नहीं कहते। स्वप्न में कुछ बातें बताते हैं। आपवादिक रूप में ही प्रत्यक्ष कुछ कहते हैं। वे दिव्यात्माएं अमंगल या मंगल की बात बता देती हैं।
स्वप्न के अनेक प्रकार होते हैं। काल के आधार पर भी उनका विभाजन होता है। कुछ स्वप्न दिन में आते हैं और कुछ रात में। कुछ रात के पहले प्रहर में और कुछ दूसरे-तीसरे और चौथे प्रहर में। कौन-सा कल्याणकारी होता है और कौन सा अकल्याणकारी - इसे सब नहीं जानते।  
 स्वप्न शास्त्र के भी अपने नियम हैं। एक नियम है कि कल्याणकारी स्वप्न आने के बाद तत्काल उठकर ईश्वर जाप में लग जाना चाहिए। पुन: नींद नहीं लेनी चाहिए। जो पुन: सो जाते हैं, उनके स्वप्न का इष्ट परिणाम नष्ट हो जाता है। दिन में लिये जाने वाले स्वप्न को दिवास्वप्न कहते हैं। इनमें भी कल्पना होती है। ये यथार्थ भी होते हैं।
स्वप्न के विषय में हमारी जानकारी बहुत ही कम है। यदि पूरी जानकारी हो तो उससे पूरा लाभ उठाया जा सकता है। स्वास्थ्य, संपदा, व्यापार, आध्यात्म विकास आदि के साथ स्वप्न जुड़े हुये होते हैं।
 एक विदेशी लेखक की टांगे टूट गयी। उसने स्वप्न में देखा कि एक फरिश्ता आया है, उसकी टांगे ठीक कर रहा है। प्रात: वह उठा, देखा कि उसकी टांगे ठीक हैं। वह चल-फिर सकता है।   
अध्यात्म-विद्या ने वस्तु की नश्वरशीलता को दिखाने के लिए स्वप्न की उपमा दी गयी है। जैसे स्वप्न की चीजें नश्वर होती हैं, स्वप्न नश्वर होता है, वैसे ही संसार के सभी पदार्थ नश्वर हैं।
 क भिखारी ने स्वप्न देखा कि वह राजा बन गया है। उसके महल हैं, रानियां हैं, हाथी-घोड़े हैं और वह ठाट-बाट से रह रहा है। इतने में ही एक कुत्ता आता है और सिरहाने रखे भिक्षापात्र को चाटने लगता है। भिक्षापात्र फूट जाता है। उसके स्वप्न का राजसी ठाट-बाट भी चुक जाता है। यह है संसार की नश्वरता।   
स्वप्न का बहुत बड़ा विज्ञान है। यह जीवन-दिशा को बदलने वाला, नीरस को सरस बनाने वाला होता है। यदि हम स्वप्न के प्रतीकों को समझ सकें, उसकी सांकेतिक भाषा को जान सकें तो स्वप्न में बहुत लाभान्वित हो सकते हैं।
सचमुच यह गूढ़ विद्या है। स्वप्न अच्छा हो या बुरा, यदि सही जानकारी होती है तो अनिष्ट से बचा जा सकता है और इष्ट को संपादित किया जा सकता है।
 
प्रस्तुति:        ललित गर्ग
सयोजन-     हे प्रभु यह तेरापन्थ 

12 comments:

  1. दिनेशराय द्विवेदी 14 जुलाई, 2009
    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
  2. दिनेशराय द्विवेदी 14 जुलाई, 2009

    बहुत श्रम से तैयार किया गया सुंदर आलेख है। लेकिन लंबाई कुछ अधिक हो गई। इसे दो भागों में बांटा जा सकता था।

  3. समयचक्र 14 जुलाई, 2009

    सुंदर आलेख

  4. ताऊ रामपुरिया 14 जुलाई, 2009

    आपने बहुत सुंदर और श्रम पुर्वक सपनों के विज्ञान के बारे में बताया. अक्सर जैन शाश्त्र तो इस बारे में सटीकता से कहते हैं बस हमें ही उनको समझने की पात्रता नही है. बहुत धन्यवाद.

    रामराम.

  5. हें प्रभु यह तेरापंथ 14 जुलाई, 2009

    इस मोलिक रचना के लेखक है आचार्य महाप्रज्ञ जी। उहोने जब भी कुछ लिखा स्वय के परीक्षण मे सफल होने के बाद ही आमजन मे भेजा जाता है। यह लेख लम्बा जरुर है पर आचार्य श्री की यह कृति विज्ञानिको के लिए एक खोज हो सकती है। आपके लिए भी, बस जरुरत है आप इस पोस्ट को ध्यान से पढे समझे दो तीन बार पढे।

    आगे के अक मे कोनसा स्वप्न क्या परिणाम होता है यह पढ पाएगे।

    आभार।

  6. mehek 14 जुलाई, 2009

    swapn par bahut hi achhi aur vistrut jankari mili,bahut sunder lekh.

  7. Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 15 जुलाई, 2009

    स्वपनों का संसार बडा अद्भुत और रहस्यमय है। स्वपन शास्त्र अपने आपमें एक पूर्ण विधा है जिसकी महता को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता। चाहे आधुनिक विज्ञान इस विषय में कुछ भी कहता रहे। आपने बहुत परिश्रमपूर्वक इस आलेख को लिखा है। धन्यवाद.......

  8. Gyan Dutt Pandey 15 जुलाई, 2009

    स्वप्न में समाधान तो बहुधा मिलते हैं मुझे।
    और कभी कभी इतना सशक्त विचार मिलता है कि लगता नहीं मैं उसे सोच सकता था!

  9. Udan Tashtari 15 जुलाई, 2009

    बहुत बेहतरीन आलेख. हमारे सपने तो ऐसे होते हैं कि अर्थ निकालने बैठ जायें तो जीवन गुजर ले. फिर भी अर्थ जानने की एक उत्सुक्ता हमेशा रहती है कि इसका मतलब क्या हो सकता है.

  10. राज भाटिय़ा 15 जुलाई, 2009

    बहुत ही सुंदर लिखा ओर यह बात सही है कि सपने मै कई बार हमे ऎसा दिख जाता है जो होने वाला है, या जो हो चुका है लेकिन उस का राज सपने मै खुल जाता है, मेरे साथ कई बार ऎसा हुआ है.
    धन्यवाद

  11. लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` 17 जुलाई, 2009

    जिस इन्सान को स्वप्न आना बँद हो जाये वह मानसिक रोगी हो जाता है ऐसा भी सुना है
    अच्छा आलेख
    -- लावण्या

  12. विधुल्लता 20 जुलाई, 2009

    स्वप्न की भाषा सांकेतिक होती है। उसे जो नहीं पकड़ पाता, वह स्वप्न को नहीं जान पाता। वह उसमें उलझ जाता है। उसका रास्ता बहुत टेढ़ा-मेढ़ा होता है....ये सही बात है ।आचार्य महाप्र्भ जी को प्रणाम के साथ.....स्वप्न विषय का अच्छा विश्लेषण किया है उन्होंने आपने एक अच्छा विषय उठाया है स्वप्न और मनोविज्ञान का आदमी के जीवन पर ताउम्र प्रभाव बना रहता है

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अमुल्य टीपणीयो के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।
आपका हे प्रभु यह तेरापन्थ के हिन्दी ब्लोग पर तेह दिल से स्वागत है। आपका छोटा सा कमेन्ट भी हमारा उत्साह बढता है-