कल हम जैन तीर्थंकरो के विदेश विहार कि बात कि थी आज हम श्रावको के विदेश प्रवास पर चर्चा करने जा रहे है।
गत बीस वर्षो से जैन धर्म का प्रसार-पचार एवम प्रभावना के कार्यक्रम पूरे विश्व मे जोर शोर से व बडे ही सुन्दर ढग से हो रहे है। इसके दो मुख्य कारण जो ज्ञात हो रहे है वे है- एक तो वहॉ के लोगो मे भारतीय सस्कृति कि पुर जोर मॉग, दुसरा कारण प्रवासी भारतीयो की एकरुपता एवम प्रभावशाली कार्यशैली। विदेशो मे बसने वाले जैनो मे साम्प्रदायिकतावाली भावनाऐ नही है। तेरापन्थ, दिगम्बर, मुर्तिपुजक, स्थानकवासी, श्रीमद राजचन्द्र सभी मिल जुलकर जैन धर्म का मान सम्मान बढा रहे । अपितु अपने अपने ढग से साधना भी कर रहे है। ब्रिटेन, अफ्रिका, कनाडा, जर्मनी, बेलजियम, अमेरिका, सहित युरोप के कई देशो मे अप्रवासी भारतीय जैन रहते है। अकेले पुरे ब्रिटेन मे लगभग ४५००० जैनो कि बस्ती है। मोबासा, नैरोबी, तथा जापान के कोबा शहर और ब्रिटेन के लेस्टर मे शिखरबन्द जैन मन्दिर है। लेस्टर मे चार हिन्दु मन्दिर्, छ मस्जिद, और गुरुद्वारा भी है। "विश्व जैन कॉग्रेस", "जैन समाज," 'युरोप,एवम जैन,' "सोश्यल ग्रुप फडरेशन्", "वर्ल्डफोरम ऑफ जैन्स" सहीत कई सस्थाऐ कार्यरत है। उत्तरी अमेरिका, केलिफोनिया मे भी जैनो का अच्छा प्रसार और पभाव है। यह तो हूई बडी-बडी सस्थाओं कि बात। विशेष आज दो ऐसे कार्यकर्ताओ से मिलवाना चाहता हू , जिनका मै फैन हू। दोनो ही अपने अपने क्षैत्र मे एक सख्सीयत रखते है। और जैन समाज से सम्बन्ध रखते है। अपने अपने ढग से अपनी सेवाऐ समाज परिवार और सगंठ्न को दे रहे है। ,
ईसी कडी मे सबसे पहले है:-लावण्याजी
लावण्याजी किसी परिचय कि मोहताज नही है वे भारत के महसुर कविवर पँडित नरेद्रजी शर्मा कि बेटी है। आपकी माताजी का नाम श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा हैं। पँडित नरेद्रजीजी शर्मा फिल्म सत्यम शिवम सुन्दरम के गीतकार है। डा. हरिवँश राय बच्चन के सहयोगी मित्र थे। शर्माजी ने राम चरित मानस पर गायक मुकेश के साथ काम किया। लावण्या जी १२ वर्ष कि थी, तभी से महसुर गायक मुकेशजी को जानती थी। लता मगेशकर तो एक बार लावण्याजी को विदेशी कपडो मे देखा तो लता दीदी ने नाराज होकर लावण्याजी से कह दिया पुरी विदेशी हो गई लावण्या। लावण्याजी को साडीयों का शोक है। लावण्याजी को मुकेशजी का यह गाना "मेरे मेहबुब मेरे मेहबुब तू है तो दुनिया कितनी हसी है" बहुत पसन्द है। स्व।पँडित नरेन्द्र शर्मा तथा अन्य कर्मठ साथियोँ की मेहनत से लगाया ये "विविध ~ भारती" रेडियो स्टेसन आज बडा पेड बन चुका है। डा। हरिवँश राय बच्चन को ताऊजी, उनकी धर्मपत्नी को "तेजी आँटी, लताजी, को दीदी, कृष्णा, राज कुपर को अकल-आन्टी पुकारने वाली लावण्याजी स्वय कविकार है। उनकी कविता-पुस्तक "पिडघा उठा प्रवासी" भी प्रकासित हुई है। लावण्याजी का बच्चपन मुम्बई के खार बान्द्रा ईलाके मे बीता। लावण्याजी का विवाह जैन परिवार के दिपकजी से हुआ अब दोनो ही उत्तरी अमेरिका मे कई वर्षो से प्रसन्नता से रह रहे है। दीपकजी १९७४ से लेकर १९७६ तक एन्जीलीस शहर मेँ रहा करते थे.दीपकजी अपनी उच्च शिक्षा इसी अमेरीकि शहर मे रहकर पूरी की। लावण्याजी दो हिन्दि ब्लोग कि मोडर्टर है-लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`और अन्तर्मन........ मैने देखा है कि लावण्याजी जो ब्लोग लिखती है, अपनी सन्तुष्टि के लिऐ, अपने लिऐ लिखती है।जबकी ओर लोग, लोगो के लिऐ औरो के लिऐ लिखते है। हे-प्रभु, पर लावाण्याजी का परिचय कि एक मुख्य वजह थी कि वो जैन धर्म के सम्बन्ध मे Sunday, April 12, 2009 ये देस है या परदेस है ! नाम से उन्के ब्लोग पर पोस्ट छपी थी। आप देखे लिन्क पर किल्क करे। आप भी शायद जानते होंगें " नवकार मंत्र " के बारे में , ये जैन धर्म का पवित्र मंत्र है। आप भी सुनिए ....आवाज़ है श्री लता जी की ... (साभार-लावण्या-अन्तर्मन) |
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आज हमारे दुसरे मेहमान से मिलिऐ:- डा. पंकज जॆन
डा। पंकज जैन अगस्त २००९ से हिन्दी, संस्कृत ऒर जैन धर्म के नये कोर्स नोर्थ केरोलिना विश्वविद्यालय, यू.एस.ए। में पढाएंगे जहां वे अगस्त २००८ से विदेशी भाषा तथा साहित्य के विभाग में कार्यरत हॆं। ये विषय इन्टर्नेट पर भी उपलब्ध होंगे ताकि विश्व में कहीं से भी इन्हें पढा जा सके. इससे पूर्व वे न्यू जर्सी में भी हिन्दी, संस्कृत तथा अन्य भारतीय विषय पढा चुके हॆं जबकि वे अपनी पी.एच.डी. पूरी कर रहे थे. हालांकि वे अमेरिका में हज़ारों कम्प्यूटर इन्जीनियर्स की तरह आए थे, उन्होंने अपना करियर बदलकर भारतीय धर्म व संस्कृत में पहले कोलम्बिया विश्वविद्यालय से मास्टर्स तत्पश्चात आयोवा से २००८ में पी.एच.डी. हासिल की. वर्तमान में, वे नोर्थ केरोलिना विश्वविद्यालय में प्राथमिक हिन्दी, हिन्दी फ़िल्में, हिन्दू धर्म तथा हिन्दी-उर्दू साहित्य पढा रहे हॆं. डा. पंकज जैन के अनुसार, “भारत ऒर चीन के प्रति आजकल बहुत रुचि बढ रही हॆ. भारत की आर्थिक तथा तकनीकी प्रगति, योग, तथा हिन्दी फ़िल्मों के कारण भारतीय विषयों में विद्यार्थियों की संख्या पहले से कहीं ज़्यादा हॆ.”उनके जैन धर्म के कोर्स का नाम हॆ: “महावीर से महात्मा गांधी तक: भारत की अहिंसक जैन परम्पराएं”. इसमें जैन इतिहास, पूजा पद्धतियां, जैन दर्शन तथा कर्म सिद्धान्त, जैन समाज, गांधीजी, डा. मार्टिन लूथर किंग तथा अहिंसा का समसामयिक महत्त्व आदि पढाया जायेगा. संस्कृत के कोर्स में वर्णमाला से लेकर संज्ञा, धातु, लकार, प्रत्यय, उपसर्ग, सन्धि, समास तथा व्याकरण के अन्य सिद्धान्त पढाये जायेंगे. रामायण की कथा भी सम्मिलित की जायेगी. डा. जॆन के अनुसार, “संस्कृत, ग्रीक, तथा लॆटिन प्राचीनतम इंडो-युरोपीयन भाषाएं कहीं जातीं हॆ, तीनों में अनेक समानताएं हॆ तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन विशेषकर लाभप्रद होगा.” पंकज का जन्म राजस्थान में हुआ था तथा वे कर्नाटक, मुम्बई तथा हॆदराबाद में भी रह चुके हॆं. उनकी पत्नी सोनिया एक चित्रकार हॆं तथा भारतीय कला प्रदर्शनी तथा दीर्घा चलाती हॆं. उनके दो पुत्र हॆं. हिन्दी, संस्कृत ऒर जॆन धर्म के नये कोर्स उनकी वेब साइट पर उपलब्ध हॆं: www.IndicUniversity.org |
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विशेष डॉ, रुपेशजी ने "ईसवी पुर्व जैन धर्म विदेशो मे'" अपनी कुछ जिज्ञासा जैन धर्म के बारे मे रखी थी। "हे प्रभु" उनकी जिज्ञासाओ का समाधान अपने सहयोगी ब्लोग मुम्बई टाईगर पर दे रहे है। आप सभी से अनुरोध है यहॉ से वहॉ पहुचे। पढे। आभार। |
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माननिया लावण्या जी से मिलना ऐसा लगा जैसे सूरज के बारे मे थोडी सी और जानकारी. उनका महान व्यक्तितव है. और वो इस ब्लागिवुड मे सभी स्नेह करती हैं और सभी लोग उनका प्रेमपुर्वक सम्मान करते हैं.
डा. पंकज जैन जी से यह मुलाकात पहली ही रही. उनके बारे में जानना बहुत अच्छा लगा.
आपका आभार इन दोनों विभुतियों से परिचय करवाने के लिये.
रामराम.
आपने विदेश में जैन पंथों के बीच एकता की बात कही है. वैसे हमारे पिट्सबर्ग में एक "हिन्दू जैन मंदिर" भी है जिसके नाम से ही हिन्दू-जैन एकता भी दिखाई देती है. और हाँ, लावण्या जी की पुस्तक का नाम "पिडघा उठा प्रवासी" नहीं बल्कि "फिर गा उठा प्रवासी" है.
ब्लाग जगत में लावण्या जी से शायद ही कोई अपरिचित हो .. पर आपके माध्यम से भी नई जानकारी मिली है .. पंकज जी से अवश्य नया परिचय हुआ .. अच्छा लगा दोनो से मिलकर।
एकदम अलग सा लगा। बहुत अच्छी जानकारी।
लावण्यादी तो हमारे परिवार की सदस्य जैसी हैं। जैन साहब से मिलकर अच्छा लगा।
शुक्रिया ..
अरे वाह, इन सबसे मिलकर बहुत अचछा लगा। आभार।
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TSALIIM.
-SBAI-
ईश्वर की अवधारणा के बारे में तो मुझे स्पष्ट नहीं है कि जैन धर्म क्या विचार रखता है, पर अहिंसा का सिद्धांत और उस पर जैन धर्म का जोर मुझे जैन धर्म के प्रति बहुत आकर्षित करता है।
राह चलते इतनी मांस की दुकाने खुलती जा रही हैं और उनकी तरफ से मुंह फेर, मुझे सदा याद आती है भगवान महावीर की।
आपका बहुत बहुत आभारो मुझे आपने, आपके जाल घर पर प्रस्तुत किया है -
आगे भी जैन धर्म की सेवा सत्कार आप व हम करते रहेँ और एक अच्छी जीवन प्रणाली
अपनायेँ यही कामना है - भाई श्री पँकज जैन को सप्रैवार मिलना भी सुखद रहा -
सादर, स -स्नेह,
- लावण्या
ravan ne chalaya indrajal,harinakasyap ne chalaya rakshsipap,kans ne chalaya jaduchala,karun badshah ne chalaya kafiri vidya aur banio ne chalaya kalukal jo aaj ka yug chal raha hain kalyug .kalyug hi kalukal hain jo ek pap ka nam hain.iske bare me aap kya kahna chahte hain?