जैन सिक्के एवं डाक टीकीट
स्थानका वासी सम्प्रदाय के आचर्य रुघनाथ जी के शिष्य संत भीखन जी (आचार्य भिक्षु) ने विक्रम सवत १८१७ में
तेरा-पथ का प्रवर्तन किया। आचार्य भिक्षु ने आकार शुद्धि और सगठन पर बल दिया । एक सूत्रता के लिई अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया। शिष्य-प्रथा को समाप्त कर दिया। थोड़े ही समय में एक, आचार और विचार के लिए तेरापंथ जन-जन में बस गया। आचार्य भिक्षु आगम के अनुशील द्वारा कुछ नये तत्वों को सामने लाए । सामाजिक
भूमिका में उस समय वे अपूर्व -से लगे । आध्यात्मिक द्रष्टि से वे बहुत मूल्यवान है। कुछ तथ्य वर्तमान समाज के पथ -दर्शक बन गए है। भारत -सरकार ने इसे महान आचार्य भिक्षु स्वामी पर डाक टीकीट जारी कर उनके द्वारा किये कार्यो का अनुमोदन कर जैन समाज को अनुग्रहीत किया.
तेरापंथ के नवं आचार्य श्री तुलसी जिन्होंने अणुव्रत माध्यम से जैन धर्म को जन जन में फैलाया। जब देश में आजादी की अफरा तफरी थी। मानवीय मूल्यों को चोट पहुच रही थी उस वक्त आचार्य श्री तुलसी ने एक ऐसे आन्दोलन की नीव धरी जो गरीब के झोपडे से लेकर राष्ट्रीयपति भवन तक अणुव्र्त -आन्दोलन कि अलख जगाकर जन चेतना का कार्य किया। उनकी जन सेवाओ को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने डाक टीकीट जारी कर उनके द्वारा किये कार्यो का अनुमोदन कर जैन समाज को अनुग्रहीत किया.
भगवान् महावीर के-" जियो और जीने दो" शब्दों से पूरा विश्व भली भाति परिचित है। जैन धर्म के २४ वे तीर्थंकर भगवान् महावीर के २६०० वे जन्म कल्याणक मोहत्सव पर नेपाल सरकार २५० रुपये का सिक्का जारी किया .
Coin Nepal
Half Anna 1616
ईस्ट इंडिया कंपनी १६१६ में भगवान महावीर के नाम आधा आन्ना के ताम्बे के सिक्के जारी कर जैन धर्म की महत्ता को जाना .
Oldest Jain tankas
हजारो वर्ष पुँर्व जय राजाओं के समय भी सोने के टके भगवान महावीर के मुद्रित नाम से चलते थे।
Jainyantra ८२९७
पञ्च धातू से निर्मित यह यंत्र भी वास्तुकला का एक नमूना है जो
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१६१६ में भगवान महावीर के नाम आधा आन्ना प्रचलन होने की बात आज पता चली. शेष जानकारी थी... बताने के लिए आभार.
सिक्के के बारे में जानकारी आज ही मिली. डाकटिकट के हम खुद शौकीन हैं तो ये पता था. बहुत धन्यवाद आपकी इस नायाब जानकारी के लिये.
रामराम.
जानकारी के लिए आभार
आपने महावीर प्रभु के नाम वाले सिक्कोँ के बारे मेँ बतलाया ये बहुत अच्छा लगा - "जय जिनेन्द्र "
बढ़िया जानकारी. एक समस्या है. जिस सिक्के को १६१६ का बताया जा रहा है वह भ्रामक लगता है. प्लासी के युद्ध के बाद १७५७ में ही कंपनी का शासन चालू हुआ जब वे सिक्के जारी करने की स्थिति में रहे होंगे. इस सिक्के के नीचे जो एक और महावीर जी का सिक्का दिखाया है, वह भी सिक्का न होकर धार्मिक टोकन है. मुद्रा शास्त्र में ऐसे सिक्कों को रामतंका नाम दिया गया है. राम के अतिरिक्त भारत के अन्य देवी देवता यहाँ तक की सिख पंथ आदि के भी टोकन विद्यमान हैं.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भगवान महावीर का सिक्का जारी किया? अद्भुत!
इतिहास पढ कर अच्छा लगा !! लिखते रहे!
ईस्ट इंडिया कंपनी १६१६ में भगवान महावीर के नाम आधा आन्ना के ताम्बे के सिक्के जो चलाये वह कहां से कबाड लिया. एकाध सिक्का बिकाऊ हो तो मुझे बतायें क्योंकि भारतीय सिक्का संग्रह तो मेरा शौक है.
सस्नेह -- शास्त्री
रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी
के लिए आभार. यह जैन जगत् और
समग्र मानवता के लिए गौरव का विषय है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
@P.N. Subramanian ने कहा…
बढ़िया जानकारी. एक समस्या है. जिस सिक्के को १६१६ का बताया जा रहा है वह भ्रामक लगता है. प्लासी के युद्ध के बाद १७५७ में ही कंपनी का शासन चालू हुआ जब वे सिक्के जारी करने की स्थिति में रहे होंगे. इस सिक्के के नीचे जो एक और महावीर जी का सिक्का दिखाया है, वह भी सिक्का न होकर धार्मिक टोकन है. मुद्रा शास्त्र में ऐसे सिक्कों को रामतंका नाम दिया गया है. राम के अतिरिक्त भारत के अन्य देवी देवता यहाँ तक की सिख पंथ आदि के भी टोकन विद्यमान हैं.
सर जी इस बात कि पुख्ता जानकारी मेरे पास भी नही है। जॉस करके जानकारी देने कि कोशिस करुगा।
शायद शास्त्री जी तकनिकि आधार पर कुछ बता सके तो
pls visit www.jagathitkarnioriginal.org