मेरी १०१ वी पोस्ट और चिठ्ठा-जगत में मेरी भूली बिसरी यादे

Posted: 12 नवंबर 2009
आज मुझे अहसास हुआ कि एक सों  पोस्ट को लिखना कोई हंसी ढीठोली  का खेल नही.   मेहनत, समय एवं एकाग्रता तीनो का ही समन्वय नितांत आवश्यक  है . खेल-खेल में कहो, या फैशन में, बस ब्लॉग-ब्लॉग  के इस  खेल में  कूद पडे. और तो और डंके कि चोट पर कि हम चिठ्ठा-बिरादरी में आ रहा हु एक घोषणा पोस्ट लिख कर परोस डाली 08 September 2008 – 11:32  को कि   में आ रहा हूँ !     मानो मै समझ बैठा था कि चिठ्ठा जगत वाले मेरे स्वागत में पलक - पावडे बिछाए फूलो के हार से मेरा वेलकम करगे.  मगर अफ़सोस मेरी थाली खाली ही पडी रही . और मेरी वह पोस्ट अपने आरजू पर आंसू बहाना उस कि तक़दीर बन गई.

शुरू-शुरू में तो अपने आपको BIG बी कि बिरादरी का हिस्सा बनता देख  हम भी फूले नही समाए.बस समझ ही लो हम ही अपने को BIG बी ब्लोग्वा के चचेरे भाई मान बैठे थे..... ब्लोगानंदन महाराज का  झोला उठाए ब्लोगे-ब्लोगे, द्वारे -द्वारे भटकने लगे हम भी इसी मकसद से टिपियाने लगे कि----" इस हाथ ले उस हाथ दे" ....


बस फिर क्या  था "सारथी" वाले  शास्त्री जी आ पहुचे "हे प्रभु" के ब्लॉग पर और अपनी ब्लॉग कि पहली टिपण्णी कि "बोवनी" हो गई समझो अपना खाता खुल गया ... मुझे याद है इस पहली टिपण्णी के दिन मै बहुत प्रसन्नचित्त था टिपण्णी कि खुशी में रोटी बाटी भी नहीं खाई और  हम भी निकल पडे टिप्पीयाने ..  पूरा दिन टिप्पियाते रहे मानो सरकार में मंत्री पद मिल गया हो. उसके बाद तो उड़न तस्तरी के मालिक समीरलालाजी पहुचा गए फिर प्रदीप मनोरीयाजी व् राजेंद्रजी  माहेश्वरी ने भी मेरी " तथ्य का कथ्य" पोस्ट पर आकर उत्साहित किया.
















०८/०९/२००८  से मेरी चिठ्ठा  यात्रा प्राम्भ हुई थी जो आज 14 महीना में 101 पोस्ट 622 टिप्पणीयो के साथ  ६११८ लोग   पहुचे . अब मुझे यह समझ नहीं पड़ रहा है कि मै सफल हुआ या असफल ....? 
या इसे उपलब्धी मानु या दिमागी संतुष्टि ? बस ! सफल-असफल, या नम्बरों कि रेस का घोडा  बनना  मुझे मझूर नही था .  हां! मैंने इन चोदाह  महीनों के ब्लोगेरिया जीवन में  बुध्दु बक्से (कम्प्यूटर) के माध्यम से घर बैठे-बैठे कई अच्छे दोस्त बनाए है . मै इसे उपलब्धी मानता हु. और इस बात पर गर्व है कि हिन्दी चिठ्ठे ने मुझे कई मजेदार लोगो से दोस्ती कराई. कई लोगो से मिला तो नही फिर भी अपना-पॅन महसूस होता है. एक रिश्ता -सा बन गया है.. कई ब्लोगर दोस्तों से फोन पर बाते होती है, तो किसी को रूबरू मिला भी, तो कई मित्रो से मेल से वार्तालाप होती है,  तो कभी किसी की  टिपण्णी आ जाती है तो उसे ख़त समझ कर उनके लिखे शब्दों में दोस्ती-मित्रता-प्यार-अपनत्व महसूस कर पाता हु .. यही  तो चिठ्ठा जगत की  माया है की  नए दोस्त बन गए .
होली दिवाली बडे ही आत्मीय भाव से मिलने का अवसर  ब्लोगानन्दजी महाराज  ने  प्रदान किया. भाई मै तो इस कांसेप्ट का मुरीद हो गया.
बस चिठ्ठा जगत से मै जुडा तब से अब तक कई अच्छे इन्शान दोस्त एवं शुभचिंतक के रूप में मिले यहा सभी के नाम लिखना तो संभव नहीं है फिर भी मेरे   प्रेरणा स्त्रोत रहे कुछ माननीय मित्रो का नाम मै यहाँ लेना चाहुगा. जिनका मै आभारी हु की उन्होंने समय-समय पर मुझे उत्साहित किया लिखने के लिए . मेरे दुख दर्द एवं मेरी खुशियों में मुझे अपना समझकर  ढाढ्स बंधाया तो शुभकामनाओं भरा आर्शीर्वाद भी प्रदान किया .
श्री ज्ञानदत्त जी पांडे, 
ताऊ रामपुरियाजी, 
सारथी वाले शास्त्रीजी, 
समीरलालाजी, 
राज भाई भाटियाजी, 
लावण्या दीदी, 
अरविन्दजी मिश्रा 
संजय जी बैगानी,  
आशीषजी  खंडेलवाल , 
संजय सैन, 
अमित जैन (जोक्पीडिया 
स्वप्नजी  मंजूषा 'अदा'
अल्पना वर्माजी, 
सगीता पूरी जी 
लता हयाजी
महकजी  
रंजन  जी

विवेक सिंहजी 
दिनेशरायजी  द्विवेदी
समयचक्र - महेंद्रजी  मिश्र
पंकजजी मिश्रा 
डॉ. रूपचन्द्रजी  शास्त्री मयंक
Pt.डी.के.शर्मा"वत्सजी " 
अर्शिया अलीजी 
परमजीतजी  बाली
 प्रसन्न वदन चतुर्वेदीजी 
मै इन सभी प्यारे चिठ्ठाकारो  में  किसी को गुरु के रूप में  किसी को मार्गदर्ष्टा के रूप में , किसी को मित्र के रूप में किसी को भाई बहिन के रूप में किसी को शुभचिंतक के रूप में पाया ..
 
मुझे याद है जब "हे प्रभु यह तेरापंथ  चिठ्ठा"  बना था. तब मेरी बेटी मिताली ने मुझे ब्लोग के बारे में बताया था... मुझे ब्लॉग्गिंग की   A B C D  भी पता नहीं थी . और चर्च इंजनो के माध्यम से सबसे पहले जो चिठ्ठा मेरे सामने आया वो था "अल्पनाजी का व्योम के पार" मै उनके कविताओं  से इतना प्रभावित हुआ की कई दिनों तक पढ़ता रहा व् यही से  आपके  कमेन्ट के माध्यम से   चिठ्ठा जगत वासियों को जानने का प्रयास करता रहा... अल्पना जी के कई कविताओं ने मुझे भी प्रोत्साहित किया ब्लॉग लिखने के लिए. मै शुक्रगुजार हु ईस्वर का  की मुझे अल्पनाजी के चिठ्ठे तक पहुचाया...
इन चोदाह  महीनो  के ब्लॉग कार्यकाल  में मैंने "हे प्रभु" पर शुरू शुरु में सभी सामाजिक  विषयों को चुने का प्रयत्न किया इसी के तहत मैंने एक पोस्ट लिखी थी "एक विज्ञापन V/S नारी"
मेरी इसी पोस्ट  पर "हिन्दुस्थान के दर्द" पर किसी ने- "हे प्रभु तेरापंथ जी  अपनी हवस भरी मानसिकता सुधारे"  टाइट्ल से  पोस्ट लिखी थी  ने "हे प्रभु" के नाम के साथ "अपशब्दों" का का प्रयोग, से  मुझे ठेस पहुची . क्यों की यह नाम मेरी "आस्था" एवं "धर्म" से जुड़ा हुआ है अत: मैंने इसका जवाब मेरी भाषा में यू दिया- "अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमी, आगे भी पूरा  आंसमा बाकी है " -"हे प्रभु यह तेरापंथ" पर आकर  कुछ असयमित  लोग शब्दों के द्वारा मेरी धार्मिक भावनाओं एवं आस्था  को ठेस पहुचा सकते है इसलिए मैंने निर्णय किया की अब "हे प्रभु" पर धर्म के अलावा किसी भी सामाजिक विसगतियो के मुद्दों की चर्चा न की जाए ताकि लोग यहा आकर या बाहर से, प्रभु के नाम को ना घसीटे . अब हमे इसका ऑल्टरनेट  कुछ सोचना था .... तभी मुंबई टाइगर की परिकल्पना दिमाग में आई की अन्य विषम विषयों को मुंबई टाइगर पर लिखा जाए इस तरह मैंने दूसरा चिठ्ठा मुंबई टाइगर शुरू किया , लोगो से  अच्छा प्रतिसाद मिला.
 यह ब्लोगिग सफर  भी "कभी खुशी, कभी गम" कि तर्ज पर  चलता रहता है. कभी लेख पर विवाद तो कभी टिपण्णी पर विवाद,
मै तब नया-नया ही "चिठ्ठा कारीगरी " में आया था. घूमते घामते माननीया पुजाजी उपाध्याय के "लहरे" चिठ्ठे पर पहुच गया . उनकी "बेतरतीब" कविता पर  मैंने एक कमेन्ट कर दिया,
जिसमे सभ्यता कि या आदर भाव कि कोई कमी नहीं थी, पर पुजाजी ने मेरे अल्प-ज्ञान  को ही "असहमति"  पोस्ट लिख आडे हाथो लेते हुए मुझे लताड़ लगा दी .. कुछ समझ नही आया कि आखिर मेरा कसूर क्या था.?  मैने भी जल्द-बाजी  में उनकी उस पोस्ट के जवाब में एक जवाबी पोस्ट- "चिट्ठे के टीकाकारो- टीप्पणी करो, " लिख दी . आज मुझे अहसास हो रहा है कि मुझे उस वक्त सयमित रहना था.  हालाकि जवाबी पोस्ट में मैंने कही पर भी उनका या उनके चिठ्ठे का नाम लिंक कुछ नहीं दिया क्यों कि मै नही चाहता था कि उनको मेरी बातो से  ठेस पहुचे .... इस बात से मै यह भी नही कहना चाहता हु कि मैंने जो किया वो सही था या उन्होंने जो किया गलत था .... बात इतनी सी थी कि मेरा हिन्दी  ज्ञान  अल्प  था और मैंने शब्दों के अर्थो को समझा न सका ... खैर , यह लिखने का मतलब सिर्फ ब्लोगिग जीवन के खठे-मीठे अनुभवों से रुबरो होना जैसा ही है. एवं पूरानी बातो से कुछ सीखने को मिलता है.  पुजाजी जैसी अनुभवी लेखिका, उनकी लिखनी मुझे आकर्षित करती  है  यह कहने में मुझे सकोंच नही. आज मै समन्वय का हाथ बढाना चाहता हू उन्ह सभी ब्लोगरो से जो किसी कारण वश रुठ गये थे........!
मैंने बहुत विषयों पर लिखा . एक दिन बीवी परेशान होकर ताना मारती है कि तुम्हे "ब्लोगेरिया बिमारी" हो गई है. "ब्लोगेरिया"शब्द ने मुझे कुछ लिखने को प्रेरित किया- "ब्लॉगवाणी, चिठ्ठाजगत, नारदमुनी ताऊ, शास्त्रीजी, भाटीयॉजी,सिद्धार्थ को हुआ ब्लोगेरिया इसकी चपेट मे पुरा देश" इस व्यगात्म्क आलेख ने मुझे चिठ्ठो कि बिरादरी में पहचान मिली.  इस पोस्ट के अच्छे प्रतिसाद ने मेरे होसके को बुलंदी मिली. 
ताऊ ने कहा-ब्लोगेरिया,रोग हमारे गुरुओं समीरलालजी, डा.अमरकुमारजी, ने दिया , खाद पानी देने का काम ज्ञानदत्तजी पांडे, फ़ुरसतियाजी, मिश्राजी, भाटियाजी

चिठियो का लिखना बन्द-डाकिया पेट फुला रहे है- लाईफ हो गई झिन्गालाला- ब्लोगियो के फिगर मे इजाफा-बिना डाक-टिकिट, लेटरबॉक्स के चिट्ठे लिखे जा रहे

ब्लॉगवाणी, चिठ्ठाजगत, नारदमुनी ताऊ, शास्त्रीजी, भाटीयॉजी,सिद्धार्थ को हुआ ब्लोगेरिया इसकी चपेट मे पुरा देश

वचन सम्भारि बोलिये, वचन के हाथ ना पाव। एक वचन ओषद करे एक करेगो घाव॥

"नेट यात्रा" पर नेता

GeT wElL SoOn.....bLoGeRiYa.....ब्लोगेरिया

क्रमश आगे ........



11 comments:

  1. घनश्याम दास 12 नवंबर, 2009

    ब्लाग-पोस्ट की शतकीय उपलब्धि के लिये बहुत-बहुत बधाई ।

  2. राज भाटिय़ा 12 नवंबर, 2009

    जनाब आप को १०१ वी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई, आप सफ़ल है जी, लगे रहे बस, हो सके तो अपना फ़ोन या मोबाईल ना० देवे मेल से फ़िर शनि इतवार को कभी आप से बात हो जाये गी.्बिटिया को हमारा धन्यवाद कहे हमे एक अच्छा साथी उसी की वजह से मिला
    धन्यवाद

  3. Udan Tashtari 12 नवंबर, 2009

    वाह जी, बहुत खूब!! १०१ वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई..अनेक शुभकामनाएँ. ऐसे ही गति बनाये रखें.

  4. उन्मुक्त 12 नवंबर, 2009

    मेरे विचार से तो सफल रहे - बधाई।

  5. उन्मुक्त 12 नवंबर, 2009

    मेरे विचार से तो सफल रहे - बधाई।

  6. ताऊ रामपुरिया 12 नवंबर, 2009

    शतक की बहुत बधाई जी. बस डबल सेंच्युरी की तैयारी किजिये, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

  7. दिनेशराय द्विवेदी 12 नवंबर, 2009

    ब्लागरी की सौ पोस्ट मुबारक हों! ये हजार तक और फिर दस हजार तक पहुँचें।

  8. संजय बेंगाणी 12 नवंबर, 2009

    ऐसा भारत में ही सम्भव है कि जैन चिट्ठे का ब्लॉगगुरू एक ईसाई हो. आगे कि यात्रा के लिए शुभकामनाएं.

    अब चिट्ठातर सहयोग के लिए अपने को तैयार करें. आप पूराने ब्लॉगर जो हो गए है :)

  9. रंजन 12 नवंबर, 2009

    बधाई जी..

  10. नीरज गोस्वामी 13 नवंबर, 2009

    अपनी कहानी भी आपसे कुछ अलग नहीं है...ब्लोगिंग टिप्पणियों के लिए थोड़े ही की जाती है...अपने मन की ख़ुशी और नए नए सम्बन्ध बनाने के लिए की जाती है...इसमें आप भी सफल हुए और हम भी...ब्लॉग के माध्यम से कुछ ऐसे विलक्षण लोगों से तार जुड़े जो अब अपनों से अधिक अपने लगते हैं और अगर उनसे मेल मुलाकात ना होती तो जीवन में कुछ खाली सा रह जाता...
    आप को एक सौ एक वीं पोस्ट के लिए बधाई...
    नीरज

  11. शरद कोकास 16 नवंबर, 2009

    ब्लॉगिंग का जब इतिहास लिखा जायेगा तब यह भी शामिल होगा । बधाई - शरद कोकास

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आपकी अमुल्य टीपणीयो के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।
आपका हे प्रभु यह तेरापन्थ के हिन्दी ब्लोग पर तेह दिल से स्वागत है। आपका छोटा सा कमेन्ट भी हमारा उत्साह बढता है-