माँ तुम कितनी दूर हो ११ नवम्बर २००९
आज "हे प्रभु यह तेरापंथ" पर मेरी १०० वी पोस्ट प्रकाशन से मेरा रोम रोम पुलकित है, दूसरी और दुःख इस बात का है कि मेरी माँ इस घडी में प्रत्यक्ष इस संसार में नही है. आज ही ११ नवम्बर को उनकी चतुर्थ पुण्य तिथि है...
मेरे मस्तिष्क के स्मृति पटल पर माँ का रूप सदैव युगों-युगो तक अकिंत रहेगा... मेरी यही इच्छा है कि जन्म जन्मान्तर इसी माँ कि कुक्षी से जन्म लू. आज मै जिस मुकाम पर हु उसमे मेरी माँ का आर्शीर्वाद एवं उसके संस्कारों कि अहम भूमिका है.
उन्होंने अपनी कल्पना के चित्रों के रंगो को मुझमे भरकर मेरे जीवन को आनंदमय बना दिया. मम्मी मै अपने जीवन के अंतिम क्षणो तक पूर्ण रूप से तेरे बताए रास्ते पर चलू एवं तुम्हारे अधूरे सपनों को पूरा कर सकू मुझे ऐसी शक्ति हमेशा कि तरह प्रदान करते रहना ... मम्मी! तुम्हारी प्रेरणा से हम सभी परिवारवाले एक सामाजिक कार्य को मार्च तक पूरा करने जा रहे, जो शीघ्र ही लोगो के लिए उपलब्ध करवा देगे.
चतुर्थ पुण्य तिथि कि स्मृति में मम्मी तुझे वन्दन ! प्रणाम ! तुम्हारे बेटे बेटिया, पुत्रवधुए, पोत्र, पोत्रिया, नाती पोते, सभी तुम्हारी आत्मा कि चीर-शान्ति कि प्रार्थना देवगुरु आचार्य श्री महाप्रग्यजी से करते है. माँ! तुम्हे शत: शत वन्दन .
माँ तुम कितनी दूर हो
जब तुम्हारी याद आती है,
मन भीग सा जाता है,
आखो से आंसू बरस पड़ते है
पर इन्हें थामने
तुम्हारी अंजुली कितनी दूर है!
जब हम हंसते थे,
तुम खिल-सी जाती थी,
आँखों से नेह उमड़ पड़ता था
अब इस हंसी को निहारने,
तुम्हारे वे नयन कितने दूर है!
हम बीमार होते थे,
तुम मुर्झा-सी जाती थी,
बडे स्नेह से हमे दुलारती थी,
अब वः जादुई दवा - सा असर करने वाला,
तुम्हारा ममतामई स्पर्ष कितना दूर है!
आधी रात को नींद से जाग,
माँ कहकर लिप्त जाते थे,
अब लिपटने को वह शरीर,
वह आंचल कितनी दूर है,
अब माँ कहकर पुकारने पर तुम कितनी दूर हो !
माँ-तुम कितनी दूर है ! माँ तुम कितनी दूर हो !
माता जी पुण्य याद को सादर नमन.
आंखे नम हो आई रचना पढ़कर. शब्द नहीं हैं-भाव समझियेगा, बस!!!
बहुत मर्म-स्पर्शी रचना है!
माता जी की चतुर्थ पुण्य-तिथि पर भाव-भीनी श्रद्धाञ्जलि!
माता जी को सादर नमन!!!!माँ हमेशा बच्चो के साथ ही रहती है....!हाँ भौतिक रूप से भले ना हो,पर हमारे दिल में हमेशा से है...
माताजी को सादर नमन. बहुत भावप्राव्ण रचना है. दिल भर आया.
रामराम.
100 आलेख के लिये मेरा अभिनंदन स्वीकार करें.
माताजी के प्रति आपकी अभिव्यक्ति पढ मन तरस गया मेरी अपनी स्वर्गवासी माँ के लिये!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
पुनश्च: प्रभु करे, अनुज, कि जल्दी ही 500 की ऊंचाई छू सको!!
हमारी भी श्रद्धांजली. माँ पर मर्म स्पर्शी लिखा है आपने.
माँ की याद ऐसी ही भीगी भीगी सी होती है उनको विनम्र श्रद्धाँजली
माँ तुम कितनी दूर हो
जब तुम्हारी याद आती है,
बस आज तो मां को विनम्र श्रद्धाँजली ही कहुंगा.