(लेखक : मुनि सागरमलजी)
गातांक से आगे>>>>>>> २
उनके ६ - ७ पहले जन्मो की योग सिद्दिया सस्कारो मे थी। वे इस विधा मे निपुण थे । घन्टो - घन्टो ध्यान किया करते । स्वामी जी का स्वासोश्वास बहुत लम्बा और गहरा था।
ऐक स्स्वास लोगस तो उनके नित्य क्रिया थी ।स्वामी जी कभी कभी एक श्वास मे आगम की १० - ११ गाथा स्पष्ट उच्चारण के साथ बोल लेते थे ।
उनका सिध्द मन्त्र था - ॐ र्ह्नी श्री क्ली ब्लू नमिउण असुर सुर गरुल भुयग॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰। उन्हे योग कि ॐचाई प्राप्त थी। वे समाधि लगाना भी जानते थे ।उनकी अन्तः स्फुर्त चेतना स्वम क्षयोपशम भावी थी ।वे कर्मजा बुध्दि के धनी थे । सुना है अभ्यास करते करते वे उस ऊचाई को छु गये थे । उनके नाम अक्षर मात्राओ का मेल ही ऐसा है जो सहज मन्त्र मय है ।
सन्त भिखणजी श्वास रोके ही जन्मे थे ? इसलिऐ तो वे जन्म के समय रोये नही ।दुनिया का क्रम है जन्मते ही रोना ।कोई कोई विशिष्ट आत्माऐ अवतरित होती है - तीर्थन्करो जैसी ,
वे अवतारी पुरुष रोया नही करते । बगती भुआ यो बताया करती थी ।
स्वामीजी का नाम स्वय मन्त्र है - उनके नाम का स्मरण , माला , जाप , तो उनकी मोजूदगी मे ही प्रचलित था । सन्तो मे तो एक सान्केतिक शब्द चलता था।
"स्वाम भिखणजी रो स्मरण कीजै " विशेष अवकाश मे , उठ्ते - बैठते , चढते - उतरते , बडे बडेरे ( बडे से बडा व्यक्ति ) इसी मन्त्र का प्रयोग करते है ।
"भिखु - स्याम , भिखु स्याम ।"
भन्डारीजी कह रहे थे - महासत्याजी कस्तुराजी बताया करती - स्वामीजी का नाम बना बनाया मन्त्र है । इसके लिये विधि और सिध्दि की कोई जरुरत नही रहती । यह तो पठित सिध्द
है -पढ्ते - पढते रटते रटते अपने आप सिध्द हो जाता है ।
जयचार्य इस शब्द मन्त्र के प्रारम्भ से ही प्रयोगी रहे है । उन्होने भिखु -स्याम मन्त्र का साक्षात अनुभव किया है ।
बीदासर कि बात है । वि॰ स॰ १८९९ के चातुर्मास मे युवाचार्य जितमलजी रिषिरायश्री के साथ थे ।ताजिये घोरे की तरफ सन्त गये । उनके साथ एक उपद्रव हुआ । उपद्रव भी काबू से बाहर चला गया । बडी कठिनता से उन्हे ठिकाने (उपाश्रय) लाये । युवाचार्य जीत मुनि ने स्वामीजी के नाम मन्त्र का सामूहिक जप प्रयोग किया । प्रेताआत्मा निकल गयी । उपद्रव शान्त हुआ । उसी समय रचे स्तवन ( दोहा) मे लिखा -
"म्हे हुन्स धरी गुणरटिया, तुम नामे उपद्रव मिटिया -१०
कोई भुत -प्रेत दुख दायी, तुम भजन थकी टल जायी -११
सवम्त अठारै निन्नाणु वदि चोथ पिच्चाणु -१२" (भिख्क्षु गुणवर्णन- ढाल -६)
आपके हाथ मे है - इसी बीच , नव कोटि भिखु -स्याम मन्त्र जाप के धनी श्री भाईजी महाराज ध्दारा गाये गीत
" भिक्षु -भिक्षु भिक्षु म्हारी आत्मा पुकारै" कि रहस्यमयी घटनाओ का एक सन्कलन । जिस के लेखक है तेरापन्थ धर्म सघ के विद्धवान मुनि श्री सागरमलजी श्रमण शायद पढ्ते पढते आपको ऐसा लगे -"मै स्वय उस घटती घटना के बीच खडा -खडा रट रहा हु -भिखु स्याम
भिखु स्याम ..........
प्रसतावक - मुनि मणि
क्रमश॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
महावीर बी॰ सेमलानी
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महावीर बी॰ सेमलानी
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धर्म का तत्त्व तो स्वयं की श्वास-श्वास मे है | बस उसे उघाड़ने की द्रष्टि नही है | धर्म का तत्त्व स्वयम् के रक्त की प्रत्येक बूंद मे है | बस उसे खोजने का साहस और संकल्प नही है | धरम का तत्त्व तो सूर्य की भांति स्पष्ट है, लेकिन उसे देखने के लिए आँख खोलने की हिम्मत तो जुटानी होगी |
WEL COME