कथ्य का तथ्य - 2

Posted: 19 सितंबर 2008








(लेखक : मुनि सागरमलजी)
गातांक से आगे>>>>>>> २
नके ६ - ७ पहले जन्मो की योग सिद्दिया सस्कारो मे थी। वे इस विधा मे निपुण थे । घन्टो - घन्टो ध्यान किया करते । स्वामी जी का स्वासोश्वास बहुत लम्बा और गहरा था।
ऐक स्स्वास लोगस तो उनके नित्य क्रिया थी ।स्वामी जी कभी कभी एक श्वास मे आगम की १० - ११ गाथा स्पष्ट उच्चारण के साथ बोल लेते थे ।
नका सिध्द मन्त्र था - ॐ र्ह्नी श्री क्ली ब्लू नमिउण असुर सुर गरुल भुयग॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰। न्हे योग कि ॐचाई प्राप्त थी। वे समाधि लगाना भी जानते थे ।उनकी अन्तः स्फुर्त चेतना स्वम क्षयोपशम भावी थी ।वे कर्मजा बुध्दि के धनी थे । सुना है अभ्यास करते करते वे उस ऊचाई को छु गये थे । उनके नाम अक्षर मात्राओ का मेल ही ऐसा है जो सहज मन्त्र मय है ।
न्त भिखणजी श्वास रोके ही जन्मे थे ? इसलिऐ तो वे जन्म के समय रोये नही ।दुनिया का क्रम है जन्मते ही रोना ।कोई कोई विशिष्ट आत्माऐ अवतरित होती है - तीर्थन्करो जैसी ,
वे अवतारी पुरुष रोया नही करते । बगती भुआ यो बताया करती थी ।
स्वामीजी का नाम स्वय मन्त्र है - उनके नाम का स्मरण , माला , जाप , तो उनकी मोजूदगी मे ही प्रचलित था । सन्तो मे तो एक सान्केतिक शब्द चलता था।
"स्वाम भिखणजी रो स्मरण कीजै " विशेष अवकाश मे , उठ्ते - बैठते , चढते - उतरते , बडे बडेरे ( बडे से बडा व्यक्ति ) इसी मन्त्र का प्रयोग करते है ।
"भिखु - स्याम , भिखु स्याम ।"
न्डारीजी कह रहे थे - महासत्याजी कस्तुराजी बताया करती - स्वामीजी का नाम बना बनाया मन्त्र है । इसके लिये विधि और सिध्दि की कोई जरुरत नही रहती । यह तो पठित सिध्द
है -पढ्ते - पढते रटते रटते अपने आप सिध्द हो जाता है ।
यचार्य इस शब्द मन्त्र के प्रारम्भ से ही प्रयोगी रहे है । उन्होने भिखु -स्याम मन्त्र का साक्षात अनुभव किया है ।
बीदासर कि बात है । वि॰ स॰ १८९९ के चातुर्मास मे युवाचार्य जितमलजी रिषिरायश्री के साथ थे ।ताजिये घोरे की तरफ सन्त गये । उनके साथ एक उपद्रव हुआ । उपद्रव भी काबू से बाहर चला गया । बडी कठिनता से उन्हे ठिकाने (उपाश्रय) लाये । युवाचार्य जीत मुनि ने स्वामीजी के नाम मन्त्र का सामूहिक जप प्रयोग किया । प्रेताआत्मा निकल गयी । उपद्रव शान्त हुआ । उसी समय रचे स्तवन ( दोहा) मे लिखा -
"म्हे हुन्स धरी गुणरटिया, तुम नामे उपद्रव मिटिया -१०
कोई भुत -प्रेत दुख दायी, तुम भजन थकी टल जायी -११

सवम्त अठारै निन्नाणु वदि चोथ पिच्चाणु -१२"
(भिख्क्षु गुणवर्णन- ढाल -६)
आपके हाथ मे है - इसी बीच , नव कोटि भिखु -स्याम मन्त्र जाप के धनी श्री भाईजी महाराज ध्दारा गाये गीत
" भिक्षु -भिक्षु भिक्षु म्हारी आत्मा पुकारै" कि रहस्यमयी घटनाओ का एक सन्कलन । जिस के लेखक है तेरापन्थ धर्म सघ के विद्धवान मुनि श्री सागरमलजी श्रमण शायद पढ्ते पढते आपको ऐसा लगे -"मै स्वय उस घटती घटना के बीच खडा -खडा रट रहा हु -भिखु स्याम
भिखु स्याम ..........
प्रसतावक - मुनि मणि
क्रमश॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
महावीर बी॰ सेमलानी

5 comments:

  1. Shastri JC Philip 19 सितंबर, 2008

    हिन्दी चिट्ठाजगत में इस नये चिट्ठे का एवं चिट्ठाकार का हार्दिक स्वागत है.

    मेरी कामना है कि यह नया कदम जो आपने उठाया है वह एक बहुत दीर्घ, सफल, एवं आसमान को छूने वाली यात्रा निकले. यह भी मेरी कामना है कि आपके चिट्ठे द्वारा बहुत लोगों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके.

    हिन्दी चिट्ठाजगत एक स्नेही परिवार है एवं आपको चिट्ठाकारी में किसी भी तरह की मदद की जरूरत पडे तो बहुत से लोग आपकी मदद के लिये तत्पर मिलेंगे.

    शुभाशिष !

    -- शास्त्री (www.Sarathi.info)

  2. Shastri JC Philip 19 सितंबर, 2008

    एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.

  3. Udan Tashtari 19 सितंबर, 2008

    हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.


    डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

  4. प्रदीप मानोरिया 19 सितंबर, 2008

    आप यदि धार्मिक रूचि रखते हैं तो मेरे ब्लॉग पर पधारे kanjiswami.blog.co.in

  5. राजेंद्र माहेश्वरी 21 सितंबर, 2008

    धर्म का तत्त्व तो स्वयं की श्वास-श्वास मे है | बस उसे उघाड़ने की द्रष्टि नही है | धर्म का तत्त्व स्वयम् के रक्त की प्रत्येक बूंद मे है | बस उसे खोजने का साहस और संकल्प नही है | धरम का तत्त्व तो सूर्य की भांति स्पष्ट है, लेकिन उसे देखने के लिए आँख खोलने की हिम्मत तो जुटानी होगी |

    WEL COME

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