वचन सम्भारि बोलिये
आज मै क्या लिखू ? प्रतिदिन लिखना जरुरी होता है, और सप्ताह मे एक दो सभाओ मे बोलना ही पडता है। बातचीत मे दिन भर बोलता ही रहता हू। लिखना और बोलना-बोलना और लिखना एक आदत जैसी बन गई है। कई मर्तबा लोग पुछते है - " आप क्या व्यापार करते है ? कल मैने एक सभा मै सहज ही कह दिया कि-" शब्दो का व्यापर करता हू अर्थात शब्द बोलता हू, शब्द लिखता हू और शब्द बेचता हू।
रात घर आया- बिस्तर पर जाते ही ,मेरे बोले शब्द मुझे ही काटने लगे थे। कई तरह कि वैचारिक धाराऐ मष्तिष्क को कुरेद रही थी। मेरी खोपडीयॉ मे सैकडो तरह कि बाते सोच ली। मैने स्वय समाधान लेते हुऐ सोचा,
"शब्दो का यह व्यापार क्या मै अकेला करता हू? मेरी तरह हजारो लोगो ने भी तो शब्दो का व्यापार जमा रखा है। अनेक दुकाने है (ब्लोग, पत्र, पत्रिका), अनेक महाजन। अब तक तो मेरे दिमाग मे सभी ब्लोगो मे दुकान कि तस्वीर बना ली, और (पुरुष बन्धू) ता... शा... उ... भा... ज्ञा... अ... सु... शि... अर... द्वे... कु.... (महीला) लाव.... अल..... सुजा रन्ज..... लव.... आदि महाजन के रुप मे दिख रहे थे।
हम सभी के अलग अलग मन्च है, भिन्न भिन्न श्रोता भी है। लच्छेदार भाषण, प्रवचन, शानदार शैली मे लिखे लेख, कविता और कीमती कागज पर पक्की जिल्द तथा नयनभिराम आवरण पृष्ठ की किताबे भी तो शब्दो का व्यापार ही है।शब्दो को ब्रहृमा की सन्ज्ञा दी गई है । शब्द कि शक्ति अनन्त है किन्तु रोजी रोटी, नाम प्रतिष्ठा के लिये शब्दाडम्बर तो शब्दो का व्यापार ही हुआ न ? मेरी १००ग्राम खोपडी के विचारो का अन्त नही। सोचते सोचते पुरे ब्रहृमाण्ड घुम आई। कही शब्दो की प्रशसा और चापलुसी मे उपयोग किया जा रहा है और कही विरोधियो की आलोचना मे शब्दो को अगारे बना कर बरसा रहे है। शब्दो के शिल्पी या कलमजीवी दुसरो की आलोचना एवम बुराईयो की धज्जी उडाने मे भूल जाते है कि धुल उन पर भी छाई हूई है, मल उनके मन एवम आचरण में भी है।
तीन दिन पहले चिठाचर्चा मे पढा,- कि किसी ने लावण्या दीदी पर किस तरह अभद्र तरिके से अपनी दिमागी अशुद्रता का परिचय देते हुऐ घटिया तरिके से टिका कि इससे ज्यादा दुख तो तब हुआ कि महिलाकी अवाज बनी ब्लोग ने उस टीपणी को प्रसारित किया (बाद मे हटा भी ली) । क्या टिपणीको प्रसारित करते समय यह जरुरी ना समझा गया कि किसी कों ठेस पहुचाई जा रही है ? मेरा ऐसा मानना है कि टीपणी करने वाला तो सजा के काबील है ही छापने वाला भी उसका हीस्सेदार बने।
किसी खबर को सनी सनी बनाकर, करना, लिखना, एवम छापना यह सिर्फ और सिर्फ भिड को आकर्षित करने का अनुचित तरिक है। जिसे मे व्यापार कहता हू। लावण्याजी आप फाईटर है जिस किसी ने भी आपके परिवार पर
जाति -रन्ग -भेद- धर्म- कर्म पर कटाक्ष कि उससे आप बिल्कुल भी अशान्त न हो क्यो कि पुरा का पुरा
हिन्दी ब्लोगजगत ने इसका जोरदार तरिके से विरोध जता चुकी है। और सम्भवतः सभी ने आपके पक्ष को ही मजबुती प्रदान कि है।
डॉ, बाबा साहेब अम्बेडकर के जिवन मे इस तरह कि मुश्किले कई बार आई, पर उन्होने उसका मुकाबला किया और उन्होने विजय हासिल कि।
दूसरो को नीचा दिखाने या किसी का चरित्र हनन करने के लिये भी शब्दो का दुरउपयोग बहुत होने लगा है।
क्या यह उचित है? क्या इसमे धर्म, जाति समाज, व्यक्ती का कुछ भी भला होता है ? भला होगा ?
शब्द से अधिक शक्ति मोन मे है। प्रचार से ज्यादा शक्तिशाली आचार होता है। हम बोलते है लिखते है लेकिन स्वय को ही पता नही होता कि क्या बोल रहे है ? क्या लिख रहे है? इतनी भावुकता या क्रोध मे लिखते है कि वह केवल स्तुति या निन्दा बन कर रह जाती है। शब्द जीवन व्यवहार का प्रतिबिम्ब होना चाहिऐ!
अतः शब्द कि अनन्त शक्ति को नमन करते हुऐ इनको अपने स्वार्थ, लोभ, बैरभाव, के लिऐ दूषित ना करु।
वचन सम्भारि बोलिये, वचन के हाथ ना पाव।
एक वचन ओषद करे एक करेगो घाव॥
सद्विचार -शब्द ही ब्रहम है और ब्रह्म का व्यापार ?
आज सुबह सुबह ताऊ का शेर भी यही बात कह रहा था। सो आज के दिन कड़वा नहीं बोलेंगे हम।
घुघूती बासूती
आपने अपनी बात बहुत अच्छी तरह से कही है, धन्यवाद और आभार!
शालीन बोल और शब्दों की महत्त्व को दर्शाता एक सुंदर और सार्थक लेख.....
Regards
बहुत ही सुन्दर विचार......शास्त्रों में शब्द को ब्रह्मस्वरूप यूं ही नहीं कहा गया है.........शब्द सांचा,पिंड कांचा..........
सच है...तोल मोल कर बोलना चाहिए.....शब्द शक्ति महान होती है.....सकारात्मक प्रयोग हो तो भी ,नकारात्मक हो तो भी...
बहुत सही कहा जी आप ने।
बहुत सुन्दर आलेख. भाषा के प्रयोग में संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए संयम भी बरतना आवश्यक है.
बहुत सही बहुत सुन्दर आलेख.
आपने अपनी बात बहुत सुलझे ढँग से रखी है
आप सभी के अपार स्नेह के लिये आभारी हूँ
आपके ब्लोग का नाम सार्थक है
"हे प्रभु ये तेरा पथ "
हम उसी पे चलते रहेँ ..बस !
विनीत्,
- लावण्या
बहुत सुंदर तरीके से आपने विषय को रखा. बहुत आभार आपका.
रामराम.
आप ने बिलकुल सही कहा, हमे शव्द ऎसे बोलने चाहिये जो दुसरो को शीतल करे वरना हमे चुप रहना चाहिये, आज ताऊ ने भी शॆर से यही अकल ले कर हम सब को बांटी, हमारी जुबान से निकला शव्द कई बार ऎसा घाव करता है कि उम्र भर नही भरता.
आप का धन्यवाद इस सुंदर बात के लिये
yaha kafi baar aate hai kintu kabhi comment nahi di, chalo aaj hi apaki taarif mai kuch labz pesh hai,
Hey Prabhu tera ye Panth, itna sudnar kitna katheen... aapki likhai ne iss panth ko banaya hai bahetareen.