दीक्षा व्यक्ति का दुसरा जन्म - आचार्य महाश्रमण

Posted: 19 सितंबर 2010

सरदार शहर  १७  सितम्बर १० ! कस्बे के बाह्दुरसिंह कालोनी के पास शुक्रवार कों आयोजित समारोह में हजारो लोगो कि उपस्थिति में आचार्य महाश्रमण ने १५ मुमुक्षुओ कों जैन भगवती दीक्षा प्रदान क़ी !
सुबह नो बजे शुरू हुए कार्यक्रम में "करेमी- भन्ते " के पाठ उच्चारण होने के साथ ही मुनि दीक्षा वाले मुमुक्ष कों सर्व सावध योग एवं समणी दीक्षा वाली मुमुक्षुओ कों समणी परम्परा के अनुशार सावध योग का त्याग करवाया !


इस अवसर पर आचार्य महाश्रमण ने कहा -" कि दीक्षा व्यक्ति का दुसरा जन्म है ! ब्रहामण समाज में जनेऊ क़ी परम्परा है, वैसे ही जैन धर्म सांसारिक जन्म के बाद दीक्षा लेना , दुसरा जन्म माना जाता है!" इस दुसरे जन्म में संयम पूर्वक सारी गतिविधिया संचालित होती है !
उन्होंने नव दीक्षित -मुनि एवं साध्वियो , समणीयो से कहा-" कि अब तुम गृहस्त नही हो साधू बन गये हो !
साधू का जीवन साधनामय  होना चाहिए! चलना, खड़ा होना, बैठना, सोना, खाना, ओर बोलना सभी संयम पूर्वक करना होगा ! उन्होंने कहा कि अच्छा साधू बनने का लक्ष्य बनाओ जिससे स्वय का, तेरापंथ शासन ओर घर परिवार का गोरव बढ़ेगा !


यह नानी का घर नही है!

आचार्य महाश्रमण ने १५ मुमुक्षुओ कों दीक्षा देने से पूर्व सभी परिवारिक जनों से लिखित एवं मोखिक आज्ञा ले ली ! इसके बाद
दीक्षार्थियो क़ी और मुखातिब होते हुए कहा -" कि सभी दिक्षार्थी अभी भी सोच सकते है -अभी केवल वेश परिवर्तित हुआ है !
अगर कही मन में दीक्षा न लेने का भाव हो तो सोच सकते है, क्यों कि यह नानी का घर नही है! यहा साध्वी प्रमुखाजी माँ , नानी, दादी, सभी क़ी भूमिका अदा कर सकती है, पर गृहस्त क़ी नानी यहा नही है ! दीक्षा के बाद एक गुरु के अनुशासन में रहना होगा! इसके बाद दीक्षार्थियो ने गुरु क़ी  ओर से ली गई परीक्षा में उत्तीर्ण होते हुए दीक्षा के भाव जताए! तब आचार्य महाश्रमण ने सबको दीक्षा का प्रत्याख्यान कराए !


नामकरण संस्कार 
आचार्य महाश्रमण ने १५ मुमुक्षुओ के दीक्षा के बाद हुए नए जन्म का नामकरण संस्कार सम्पन्न करते हुए सबको नये नाम प्रदान किये!
मुमुक्ष शुभम कों मुनि शुभंकर 
मुमुक्षु मीना (बायतु) कों साध्वी माधेव्यशा
मुमुक्षु निकिता (  ऱी छेड) कों साध्वी दीप्तीयशा 
मुमुक्षु मधु  (राजलदेसर ) कों साध्वी मोलिकयशा 
मुमुक्षु सोनम (सुजानगढ़) कों साध्वी सिद्धियशा 
मुमुक्षु अनिता ( पचपदरा) कों साध्वी अपूर्वयशा 
मुमुक्षु रेखा ( पचपदरा) कों साध्वी रोहितयशा 
मुमुक्षु ललिता ( सरदारशहर ) कों साध्वी चारित्रयशा 
मुमुक्षु कीर्ति ( पचपदरा) कों साध्वी कार्तिकयशा 
मुमुक्षु सुमन (श्री डूंगरगढ़) कों समणी समाधिप्रज्ञा 
मुमुक्षु मीना (मद्रास) कों समणी मिमांक्षाप्रज्ञा 
मुमुक्षु अल्पा (पचपदरा) कों समणी अमलप्रज्ञा 
मुमुक्षु नंदा (नोखा) कों समणी नितिप्रज्ञा 
मुमुक्षु श्वेता (जालना) कों समणी शुलभप्रज्ञा नाम प्रदान किया


केशलोच संस्कार

आचार्य महाश्रमण नए नवदीक्षित मुनि का केशलोच करते हुए कहा-" कि शिष्य क़ी चोटी गुरु के हाथ में रहनी चाहिए ! इसलिए आज केशलोच संस्कार के जरिये चोटी गुरु के हाथो में आ रही है !
उन्होंने कहा कि साध्वियो क़ी चोटी साध्वी प्रमुखा कनक प्रभाजी के माघ्यम से मेरे पास आएगी ! साध्वी प्रमुखा नए नव दीक्षित साध्वियो का केशलोच संस्कार सम्पन्न किया !

दीक्षा देखने उमड़ा जन शैलाब 

जन शैलाब 

नव दीक्षित समणी कों राजोहर्ण प्रदान करते हुए 
नोट यह सभी फोटू सोजन्य --4U HereNow4U द्वारा 

5 comments:

  1. Unknown 19 सितंबर, 2010

    जय जिनेन्द्र !

    बहुत उत्तम पोस्ट !

  2. हें प्रभु यह तेरापंथ 19 सितंबर, 2010

    अलबेलाजी! नमस्कार ! आभार !
    आपके दर्शन की ख्वाहिस है ! देखते कब पूरी होती है !
    धन्यवाद जी

  3. हें प्रभु यह तेरापंथ 19 सितंबर, 2010
  4. callezee 29 सितंबर, 2010

    It is very difficult to be like this..

  5. योगेन्द्र मौदगिल 05 अक्तूबर, 2010

    ek baar panipat me bhi panchkalyanak hua tha. sambhavt: vah poora karyakram bhi deeksha se sambandhit hi tha.... prastut aayojan shwetamber samaj ka hai shayad.. khair...badiya post...


    जय-जय, जय-जय, जय-जय, जय हो महावीर भगवान् की....

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