सुज्ञजी ने बहुत गहरा प्रश्न करा कल कि हमारी पोस्ट "जैन दर्शन एवं तत्व -१" कों लेकर जिससे मुझे प्रसन्ता हुए क़ी पाठको में सजगता है ...चुकी जैन इतिहास कों हम कई कड़ीयो में प्रकाशित करते हुए आज ३० वी कड़ी पर पहुचे है > मूल मकसद है पाठको एवं धर्म जिज्ञासुओ में जानकारियों का आदान प्रदान करना ! इस विशेष पोस्ट कों प्रकाशित करने का मतलब भी यह है कि जानकारियों कों बढाया जाए..आभार !
सुज्ञाजी का यह रहा वः प्रश्न
प्रश्न १ - सात तत्व नहिं,आगमों में तो नौ तत्वो का उल्लेख है।
प्रस्तूत लेख में पुण्य और पाप को क्यों छोड दिया गया है
हमारा उत्तर - कुछ मान्यताओं में नो तत्व को स्वीकार किया गया है . यह नो तत्व यू है !
१. जीव
२. अजीव
३. पुण्य
४. पाप
५. आश्रव
6. संवर
7. निर्जरा
8. बंध
9. मोक्ष
प्रश्न २ -जैन सम्रदाय की कुछ परम्पराए पुन्य और पाप को तत्व नही मानती हम क्यों मानते है ?
उत्तर - दिगम्बर परम्परा में पुन्य और पाप को तत्व के रूप में स्वीकार नही किया ... वे इन्हें बंध के अंतर्गत मानते है ! जबकि श्वेताम्बर परम्परा में इन्हें स्वतंत्र तत्व के रूप में स्वीकार किया है . मूलत: तत्व दो है (१) जिव (२) अजीव , शेष दोनों का विस्तार है
श्री सुज्ञजी एवं अन्य प्रश्न करता बन्धु ! आपने कहा वह भी सही है की तत्व नो होते है (जो उपर में मैंने अब लिखे है )
और डा . हीरालालजी जैन के व्यखानो को मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद व्याख्यानमाला १९६० " भारतीयसंस्कृति में जैन धर्म का योगदान " नाम से पूरा जैन साहित्य संजोया है . हो सकता है जैन धर्म में अलग अलग मान्यताओं के अनुशार १९-२० का इतिहास और परम्पराओं में फर्क आ सकता है ... जिसे मुलभुत रूप में ना ले -
हे प्रभु यह तेरापंथ पर जैन इतिहास की प्रस्तुती हो रही है इसके मूल अंश इसी साहित्य से लिए गए है जिसके लेखक श्री डा. हीरालालजी जैन है ! और हम लेखक का उल्लेख बार बार कर रहे है !
प्रकाशक मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद्, भोपाल क्या कहते है -"
"भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान" परिषद् के उक्त कार्यक्रम के अन्तर्गत ९ वीं पुस्तक है। इसमें संस्कृत, पालि व प्राकृत साहित्य के सुप्रसिद्ध अधिकारी विद्वान् डा. हीरालाल जैन के शोधपूर्ण चार भाषणों का संग्रह है, जिनमें जैन धर्म से संबंधित संस्कृति, इतिहास, साहित्य, दर्शन तथा वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला पर प्रकाश डाला गया है। इन व्याख्यानों का आयोजन दिनांक ७ मार्च १९६० से १० मार्च १९६० तक नवीन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किया गया था। डा. जैन ने भाषणों को पुस्तक का रूप देने के लिए अपने मूल भाषणों में यथास्थान आवश्यक परिवर्तन-परिवर्द्धन कर दिए हैं और उसे क्रमबद्ध बनाकर पुस्तक को उपयोगी और रोचक बना दिया है, जिसमें सामान्य पाठक के अतिरिक्त, इस विषय के शोधकर्ता को भी पर्याप्त नवीन सामग्री उपलब्ध होगी। इस पुस्तक के सुरुचिपूर्ण प्रकाशन में भी डा. जैन ने अनेक कठिनाइयों के रहते हुए भी अत्यधिक सहायता प्रदान की है। उन्होंने सुविस्तृत ग्रंथ-सूची और शब्द-सूची जोड़कर सोने में सुगन्ध का समावेश कर दिया है। इन सब के लिए हम डा. जैन के आभारी है।
आशा है कि हिन्दी-जगत् में इस पुस्तक का समुचित समादर होगा और शोध-साहित्य की श्रीवृद्धि करनेवाले विद्वानों को इससे प्रेरणा मिलेगी।
अनन्त मराल शास्त्री,
सचिव,
मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद्,
भोपाल
अब देखे इसके मूल लेखक का परिचय
आमुख
मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद् के आमंत्रण को स्वीकार कर मैंने भोपाल में दिनक ७, ८, ९ और १० मार्च, १९६० को क्रमशः चार व्याख्यान `भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' विषय पर दिये। चारों व्याख्यानों के उपविषय थे जैन इतिहास, जैन साहित्य, जैन दर्शन और जैन कला। इन व्याख्यानों की अध्यक्षता क्रमशः मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री डा. कैलासनाथ काटजू, म. प्र. विधान सभा के अध्यक्ष पं. कुंजीलाल दुबे, म. प्र. के वित्त मन्त्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल और म. प्र. के शिक्षा मन्त्री डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा की गई थी। ये चार व्याख्यान प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित हो रहे हैं।
पाठक देखेंगे कि उक्त चारों विषयों के व्याख्यान अपने उस रूप में नहीं है, जिनमें वे औसतन एक-एक घंटे में मंच पर पढ़े या बोले जा सके हों। विषय की रोचकता और उसके महत्व को देखते हुए उक्त परिषद् के अधिकारियों, और विशेषतः मध्यप्रदेश के शिक्षा मन्त्री डा. शंकरदयाल शर्मा, जिन्होंने अन्तिम व्याख्यान की अध्यक्षता की थी, का अनुरोध हुआ कि विषय को और अधिक पल्लवित करके ऐसे एक ग्रन्थ के प्रकाशन योग्य बना दिया जाय, जो विद्यार्थियों व जनसाधारण एवं विद्वानों को यथोचित मात्रा में पर्याप्त जानकारी दे सके। तदनुसार यह ग्रन्थ उन व्याख्यानों का विस्तृत रूप है। जैन इतिहास और दर्शन पर अनेक ग्रन्थ व लेख निकल चुके हैं। किन्तु जैन साहित्य और कला पर अभी भी बहुत कुछ कहे जाने का अवकाश है। इसलिये इन दो विषयों का अपेक्षाकृत विशेष विस्तार किया गया है। ग्रन्थ-सूची और शब्द-सूची विशेष अध्येताओं के लिये लाभदायक होगी। आशा है, यह प्रयास उपयोगी सिद्ध होगा।
अंत में मैं मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद्, का बहुत कृतज्ञ हूं, जिसकी प्रेरणा से मैं यह साहित्य-सेवा करने के लिए उद्यत हुआ।
हीरालाल जैन
व्याख्यान - १
जैन धर्म का उद्गम और विकास
व्याख्यान - १
जैन धर्म का उद्गम और विकास
सुज्ञ जी एवं सभी मित्र गण मेरी बातो से संतुष्ट हुए होगे ..
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मुझे इस विषय पर विस्तार से चर्चा करनी होगी।
मेरे मन में बहुत से प्रश्नो का उद्भव हुआ है।
यदि सम्भव हुअ तो कल मैं विस्तार से रखूंगा।
पर अभी एक प्रश्न है…
क्या यह ब्लोग 'तेरापंथ'का आफ़िसियल ब्लोग है।?
सम्मान्नीय ब्लोग लेखक को मैं किस नाम से सम्बोधित करूं?
आदरणीय सुज्ञजी!
यह ब्लॉग तेरापंथ धर्म संध का आफिसियल ब्लॉग नही है ! इसका संचालक जरुर तेरापंथी है . यह मेरा व्यक्तिगत ब्लॉग है !
विशेष तोर पर इस ब्लॉग में उन्ह आलेखों को संजोया जाता है जो नैतिकता भरे हो , शिक्षा के लिए उत्तम हो .. शत प्रतिशत प्रेम बढाने वाले हो ..
हमारा मकसद सभी धर्मो के आचार- विचार समान रूप से पढ़े जाए देखे जाए ! मै कोई विद्धवान या पंडित तो नही हु -साधारण व्यक्ति हु .
आप जरुर इस सम्बन्ध में और कोई सवाल पूछना चाहे तो वेलकम ..... कोशिश करूंगा की धर्मविज्ञो की मदद से समाधान आप तक पहुचा सकू !
आभार
महावीर बी जैन "भारती "
प्रबन्धक
हे प्रभु यह तेरापंथ
मुंबई टाइगर
चर्चा मुन्ना भाई की
द फोटू गैलेरी
माई ब्लॉग
महाप्रेम
सलेक्शन क्लेशंन
हिन्दुस्थान का दर्द ( सह सयोजक
महावीर जी,
आपका यह कार्य स्तूत्य है।
आपने बहुत ही बेशकिमती जानकारीयों का खाजाना जुटाया है।
इस सबके पिछे आपकी अतूल श्रद्धा, व अविराम श्रम लगा है।
इन्टरनेट माध्यम में जैन दर्शन पर बहूत ही कम सूचनाएं उपलब्ध है।
आपका यह ब्लोग जैन धर्म पर जानने का मील का पत्थर साबित होगा।
इसलिये आपका उत्तरदायित्व बहूत ही बढ जाता है।
हमारी अलग अलग मान्यताओं में आधारभूत कई विभिन्नताएं है,जो
जैन धर्म के बारे में विरोधाभाष का सृजन करती है।
यह सारे लेख जैन दर्शन की निधि बनेंगे,अतः लेख 'आगम प्रमाण'के परीक्षण पर तोल, श्रुतविज्ञों के निर्देश अनुरूप करें।
अल्पज्ञ हूं,मेरा मक़्सद कुछ दूरगामी प्रभावों पर आपका ध्यान ले जाना मात्र है।
बहुत उत्कृष्ट आलेख. आभार.
रामराम