बहुत हो चुकी यह बकवास; उठो! आँख खोलो!

Posted: 07 अक्तूबर 2009
बहुत हो चुकी यह बकवास; उठो! आँख खोलो!
सूफी कहानी है -- कि घर में आटा है, चावल है, दाल है, लकडी है, चुल्हा है, आग है - ओर तुम भूखे बैठे हो. आग कों जलाओ. चूल्हे पर  बर्तन चढाओ. चावला पकाओ. आटे पर पानी मिलाओ. घी  मिलाओ.  नमक डालो.  गून्थो;  रोटी बनाओ;  रोटी कों पकाओ;  तुम्हारे भूखे होने का कोई कारण नहीं है.  
सब मोजूद है, मगर तुम बैठे हो.  ओर रो रहे हो!  तुम बैठे हो ओर कोस रहे हो संसार कों.  तुम बैठे हो परमात्मा कों शिकायत कर रहे हो. तुम बैठे हो ओर अपने कर्मो के लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हो.
बहुत हो चुकी यह बकवास. न तुम्हारे कर्मो कि कोई जिम्मेवारी है, न कोई परमात्मा तुम्हे परेशान कर रहा है, न तुम्हारे भाग्य में दुख है, न विधाता ने तुम्हारा भविष्य सुनिशिचत किया है. 
उठो! आँख खोलो! सब तुम्हे दिया गया है. 
ओशो 

7 comments:

  1. Udan Tashtari 07 अक्तूबर, 2009

    आभार सदविचारों का...जय ओशो!!

  2. ताऊ रामपुरिया 07 अक्तूबर, 2009

    बहुत सुंदर विचार.

    रामराम.

  3. संजय बेंगाणी 07 अक्तूबर, 2009

    प्रेरणादायी.

  4. baljikapegam 07 अक्तूबर, 2009

    ha ha n koi pamatma paresan karta hai na hi koi karm bus aap ki soch se dukhi ho soch badloge to abhi haal sukhi ho jaoge . or agar aapko sahayta chahiye to meri sewaye aapke liye hai.sada nisulk.9414002930

  5. निर्मला कपिला 07 अक्तूबर, 2009

    सुन्दर सत्य विचार आभार्

  6. राज भाटिय़ा 08 अक्तूबर, 2009

    बिलकुल सही कहा, अति सुंदर विचार

  7. बेनामी 14 अक्तूबर, 2009

    IT IS OUR STORY

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