"प्लीज यूज मी"
निंदा में बड़ा रस है. यदि हमारे घर के सामने कोई कचरा डाल जाए तो हम उससे झगडा करने को तैयार हो जाते है. लेकिन जब कोई व्यक्ती हमारे कानो में किसी अन्य व्यक्ति की निंदा स्वरूप निंदा का कचरा भरता है तो हम बड़े खुस होकर उसकी बातो को सुनते है . अगर निंदा ही सुननी है तो फिर यो करे - अपने कान पर ऊपर लिखे "" डस्टबिन"" और नीचे "प्लीज यूज मी".निंदा करना, सुनना दोनों ही पाप है.
निंदा, निंद्रा से जितना दूर रहे उतना ही अच्छा है.
मुनि श्री तरुण सागर जी कड़वे प्रवचन, 4 - 111
आभार सदविचारों के लिए.
आपने वाकई बहुत गहरी बात कही है..
हिंदी ब्लोगिंग में इस तरह की पोस्ट कम ही दिखती है.. ऐसी और पोस्ट्स की दरकार है.. अध्यात्मिक विषयों पर लिखने के लिए आप निश्चित ही बधाई के पात्रहै
निंदा से दूर रहने का प्रयास कर सकते है, मगर निंद तो चाहिए ना जी.
बहुत सही सलाह है जी! बहुत छोटी पोस्ट और बहुत गहरे से घर कर जाने वाली पोस्ट!
धन्यवाद।
आप का विचार बहुत सुंदर लगा.
धन्यवाद
आप हमेशा ही ज्ञान दायिनी बाते लिखते हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut bahut dhanyavad.
main aapke vicharon se puri tarah sahamat hoon,koi hindi ke mutalliq aashawan ho ya na ho hum to ummid ka daman nahin chodenge.
aur apki post pl.use me to kamaal ki hai! "dekhan mein chhoti lage ghaav kare gambhir"!
इष्टमित्रों और परिवार सहित आपको, दशहरे की घणी रामराम.
रामराम.