आज सुबह कोईम्बटूर वाले चाचा चाची जो चार मुमुक्षु बहनो (साध्वी या समणी दीक्षा के पुर्व अध्ययन करने वाली ) को पर्यूषणकाल मे दस दिन के लिऎ लाडनु (राजस्थान) से कोईम्बतुर धर्म आराधना हेतु आचार्यमहाप्रज्ञजी से निर्देश पाकर ले गए थे. चुकी चाचाजी श्री अचलमलजी सेमलानी कोईम्बतुर तेरापन्थ सस्थान के अध्यक्ष है और वहा कि सारी जवाबदेही उनके जिम्मे है .पर्यूषणकाल समाप्त हुए. चारो मुमुक्षु बहनो को पुन: लाडनु छोडने के लिए चाचा अचलमलजी एवम चाची सायरबाई दोनो ही कोईम्बटूर से मुमुक्षु बहनो की सेवा मे है. कल दोपहर वे सभी मुम्बई पहूचे. चाचा का फ़ोन आया की आज यानी 28 अगष्ट को दोपहर तीन बजे बान्द्रा बीकानेर एक्सप्रेस से चारो मुमुक्षु बहनो के साथ मुम्बई से दो समणीवृन्द समणी मलीप्रज्ञाजी एवम समणी निर्मलप्रज्ञाजी भी है , जो पर्यूषणकाल मे धर्म आराधना के लिऎ इस्ज्राईल देश गए थे. वे सभी पुन: आचार्यमहाप्रज्ञजी के पास लाडनु (तेरापन्थ का केन्दिय कार्यालय) जा रहे.
मै अपनी घरवाली प्रेमलता के साथ आज दोपहर समणी मलीप्रज्ञाजी एवम समणी निर्मलप्रज्ञाजी एवम मुमुक्षु बहनो के दर्शन हेतु एवम विदाई हेतु रेल्वे स्टेशन पहुचे. समणी निर्मलप्रज्ञाजी को देखते ही मेरा मन प्रसन्न्ता से भर उठा. समणी निर्मलप्रज्ञाजी हमारे परिचित निकले है. 2005 मे भिक्षु स्थल केलवा (राजस्थान) मे मुम्बई से हमारी सस्था सीटीय़ूपी के 100 सदस्यो का एक दल दर्शनार्थ गया था तब समणी निर्मलप्रज्ञाजी का चातुर्मास केलवा मे था और हमे एक घन्टा सेवा करवाई थी.(सेवा= घर्म आराधना). भिवानी (हरियाणा) दिल्ली उदयपुर,जयपुर हमारी सस्था सीटीय़ूपी आचार्यमहाप्रज्ञजी के दर्शन हेतु गए तब तब समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने आचार्यमहाप्रज्ञजी के दर्शन सेवा करवाने मे सहयोगरत्त रही. जयपुर मे ने एक बार आचार्यप्रवर ने समणी निर्मलप्रज्ञाजी को कह भी दिया -चाणॊद वाले तुम्हारे जान पहचान वाले लगते है"
मुम्बई के रेल्वे स्टेशन पर हम दोनो पति-पत्नि कुछ खाने-पीने की वस्तुओ के साथ पहुचे, समणी मलीप्रज्ञाजी एवम समणी निर्मलप्रज्ञाजी को "वन्दामी-नममसामी" (मै आपकॊ वन्दन करता हू) किया. समणीवृन्द को कुशलक्षेम पुछा. समणीवृन्द से इस्र्राईल यात्रा का वृतान्त सुना.समणीजी ने बताया की -"समणीश्रीऋतुप्रज्ञाजी अमेरिका गऎ हुऎ है." (समणीश्रीऋतुप्रज्ञाजी मेरी पत्नी के मोसी की ससारपक्षिय बेटी है)
मुझे यह जानकर हैरानी हूई की एक मुस्लिम देश मे जैन धर्म को बडे ही सहज रुप से वहा के लोग अपना रहे है. आचार्यतुलसी ने 1980 मे एक कल्पना थी एवम उसका यह साकार रुप है "समणी श्रेणी".जैन साधु-साध्वी पॉच महाव्रत धारी होते है. वे पैदल यात्रा करते है. वाहन का उपयोग नही कर सकते है. मोबाईल कम्पुटर जैसे वस्तुओ का उपयोग नही कर सकते है. पक्कापानी(गर्म करके) पीते है. यहा तक की दवाई भी रात को अपने पास नही रखते श्रावको को छोप देते है.बहुत ही कठोर है पॉच महाव्रत की पालना. पर जैन साधु-साध्वी इसका सहजता से पालन करते हुऎ अपना धर्म रथ को सिचते है.
आचार्य तुलसी ने एक बार सोचा समय बदल रहा है. लोग बदल रहे है, लोगो को के काम करने का तरिका बदल रहा है. अगर जैन साधू-साध्वी हवाई जाहज, ट्रेन वहान इत्यादी का उपयोग नही करते है ऎसॆ मे हम जैन धर्म को कैसे विदेशो मे पहुचाएगे ? भगवान महावीर की धारणाओ मे समय के साथ चलने की सोच का यह अवतरण था. 1980-82 मे ही "समण-समणी श्रेणी". की सवसे पहली दीक्षा समण सिद्धप्रज्ञजी की हुई.
"समण-समणी हवाई जाहज, बस, ट्रेन, जहाज का उपयोग कर सकते है. बाहर का खाना(सात्विक हो) ले सकते है. फ़ोन पर बात कर सकते है. कम्पुटर रख सकते है. क्यो की यह समण-समणी चार महाव्रतधारण करते है. यह पॉच महाव्रतधारी जो जैन साधु साध्वी से एक पायदान कम होते है. चार महाव्रतधारण वाले गुरु आदेश के बाद पॉच महाव्रत को धारण कर सकते है, किन्तु पॉच महाव्रतधारी साधु साध्वी की दीक्षा होने वाद पुन:
चार महाव्रतधारण ("समण-समणी ) नही किया जा सकता।
समण-समणी हाईली एज्यूकेटेड होते है एमऎ, डब्बलऎमे, डाक्टरेट प्राप्त समण-समणी अग्रेजी के अलावा देश विदेश की कई भाषाऎ फ़र्राटेदार बोलते है. सम्पुर्ण शिक्षा-दीक्षा तेरापन्थ के आचार्य के सानिध्य मे होती है। कई सालो की कठॊर अध्यन के बाद ही तेरापन्थ धर्म मे साधु साध्वी समण-समणी दीक्षा का आदेश आचार्यवर देते है. जैन विश्वभार्ती लाडनू एवम परमार्थीक शिक्षण केन्द्र मे वर्षो वर्ष अध्यन करवाया जाता है.
"समण-समणी श्रेणी जैनो मे तेरापन्थ धर्म सघ मे ही है. सभी 8०० साधु-साध्वी,कई समण-समणी, कई मुमुक्षु एक आचार्य के अनुशासन मे रहते है, एवम सबके लिए एकसा नियम है.
वैसे काहवत भी "तेरापन्थ की क्या पहचान, एक गुरु एक विधान" आज विदेशो मे भगवान महावीर, आचार्यभिक्षु, आचार्य तुलसी, एवम वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञजी के विचार दर्शन को जन जन तक पहुचाने मे तेरापन्थ समण-समणीयो का विशेष योगदान है.
ट्रेन स्टेशन पर पहूच चुकी थी. सभी चारित्रिक आत्माऎ ट्रेन मे बैठ गऎ थे. हमने खाने पीने का बैग चाचा-चाची को दे दिया था. समणीजी को पुन वन्दन किया एवम मगल पाठ सुना. हमने समणीजी से कहा -
"हम 20 अक्टुम्बर को ही लाडनु आकर आपके दर्शन करेगे. ट्रेन रवाना हो चुकी थी .
आधे घण्टा का समय धर्म आराधना सेवा मे कैसे व्यतित हुआ पत्ता ही नही चला.
21.08.2008 ►Global Celebrations of ParyushanaSamanijis will lead the celebration of Paryushana at various Jain centers all around the world.
USA | ||
Tampa | Samani Madhur Pragya and Parimal Pragya | |
JVB New Jersey | Samani Mudit Pragya and Shukla Pragya | |
JVB Orlando | Samani Param Pragya and Jayant Pragya | |
Connecticut | Samani Akshay Pragya and Vinay Pragya | |
Cincinnati | Samani Mangal Pragya and Ritu Pragya | |
Sacramento | Samani Riju Pragya and Satya Pragya | |
Miami | Samani Charitra Pragya and Unnat Pragya | |
UK | Navnat Association & Jain Association | Samani Chaitanya Pragya and Agam Pragya |
JVB London | Samani Prasanna Pragya and Rohit Pragya | |
Birmingham | Samani Jyoti Pragya and Him Pragya | |
Israel | Samani Malli Pragya and Rohini Pragya | |
Indonesia | Samani Shreyas Pragya and Ramaniya Pragya |
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interview samani akshay pragya.avi
समण बनाने की अवधारणा शानदार थी. समण/णी को और अधिक छूट मिलनी चाहिए. इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का उपयोग स्वयं करने की छूट और मूद्रा रखने की छूट.
अच्छा - मुझे तो यह पता ही न था! धन्यवाद जी।
bahut bahut shukria. aapka blog dekh kar aur padh kar bahut accha laga.
अति सुन्दर जानकारी! हे प्रभू ब्लोग के माध्यम से बडी ही जीवन उपयोगी जानकारीया मिलती रही है. आज समण समणीयो की उपयोगता देख लगता है तुलसी महाराजजी ने लम्बी दुर की सोची !
मै भी वन्दामी नमामी करता हू समणीवर्ग के समाज उत्थान के कार्यो को देख.
द फोटू गैलेरी
इस सुंदर जानकारी के लए हार्दिक धन्यवाद।
{ Treasurer-S, T }
सुंदर जानकारी के लए
हार्दिक धन्यवाद
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