खमत खामणा का महत्व
अमेरिका के राष्ट्रपति को परामर्श दिया गया की -"अभी आपके पास सत्ता है, क्यो नही अपने शत्रुओ को मिटा दे ?" राष्ट्रपति महोदय ने कहा-"यही काम तो कर रहा हू."परामर्शक का प्रति कथन था-"शत्रुओ को कह्ना मिटा रहे है,आप तौअके साथ अच्छा व्यवहार कर रहे है."राष्ट्रपति महोदय ने कहा-" मै अपनी मित्रता के द्वारा उनकी शत्रुता को मिटाने का प्रयास कर रहा हू." ऎसा चिन्तन किसी विरले व्यक्ति को ही आ सकता है. अपने प्रति प्रतिकुल व्यवहार करने वालो के प्रति भी मित्रता का, स्नेह का, करुणा का व्यवहार विशिष्ट व्यक्ति ही कर सकता है.
जैन वाड्यम मे प्रशन किया गया -
"खमावणयाए ण भन्ते! जीव कि जणमई ? भन्ते."
क्षमा करने से जीव क्या प्राप्त करता है ? समाधान दिया गया-क्षमा करने से जीव मानसिक प्रसन्नता को प्राप्त करता है. मानसिक प्रसन्नता से वयक्ति सब प्राण,भूत जीव और सत्वो के के प्रति मैत्रीभाव रखता है. मैत्रिभाव सम्पन्न व्यक्ति भावना को शुद्ध बनाकर निर्भय हो जाता है.
भय के मुल दो हेतु है - राग और द्वैश. राग-द्वैश से वैर विरोध बढता है. जिससे मानसिक प्रसन्नता नष्ट होती है. और सबके साथ मैत्री भाव भी नही रहता. जो व्यक्ति निर्भिक होता है, वह सभी के साथ मैत्रीभाव रखता है.व सह्ज प्रसन्न होता है. उससे प्रमादवश कोई अनुचित व्यवहार जाता है तो वह अपने प्रमाद के लिए क्षमा माग लेता है.
महाश्रमण मुदितकुमारजी
युवाचार्यश्री
तेरापन्थ धर्मसघ
प्रस्तुति साध्वी सुमतिप्रभाजी
आदरणीय मेरे शुभचिन्तकगण मित्रो एवम भाईयो
जय जिनेन्द्र
आमोद प्रमोद के तो बहुत से पर्व है. पर ससार मे यह ऎसा एकमात्र पर्व है, जहॉ किसी अन्य भगवान, देव, पुजा, प्रसाद, मण्डप,या आडम्बर को माध्यम ना बनाकर व्यक्ती स्वय अपने कल्याण के लिऎ, आत्मकल्याण के लिऎ, आत्मलोचन करके प्रसन्न भाव से पर्युषण पर्व को मनाता है. यह पर्व चेतना को जागृत करता है. जिसमे उपशम की बात सिखाई जाती है.
भगवान महावीर के समग्र जैन घर्म को एक ही शब्द मे समाहित कर सकते है-"आत्मकल्याण और आत्मलोचन." इसलिये पर्युषण को पर्वाघिराज पर्व अर्थात सभी पर्वो का राजा कहा जाता है. इसमे आठो ही दिनो मे विविध आध्यात्मिक अनुष्ठानो का आयोजन होता है, जिसके अन्तिम दिन को सवत्सरी पर्व कहा जाता है. इस दिन दुनिया भर के करोडो लोगो उपवासमय रहते है. बच्चे-बच्चे को उपवास रहता है.
खामेमि सव्व जीवे सव्वे जीवा खमन्तु मे.
मित्ति मे सव्व भूयेषु वैरन मज्झ न केणई
"विगत 365 दिनो मे जाने अनजाने, अपके दिल को दुखाया हो तो मै पर्युषण महापर्व का आज सवत्सरी का प्रतिक्रमण करते हूऎ मन से वचन से काया से सरल हर्दय से खमत-खामणा करता हू, क्षमा मागता हू."
महावीर बी सेमलानी और परिवार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मैं भी खमत-खामणा करता हूँ, क्षमा मागता हूँ..
शिक्षाप्रद आलेख के लिए शुक्रिया।
बहुत ही सार्थक आलेख !!
जी वैसे तो आपने प्रत्यक्ष कोई ऐसा काम नही किया..फ़िर भी अन्जाने मे हुआ हो तो यह बहुत ही सुंदर बात है. हम भी हमारे ऐसे किसी क्रूत्य के लिये आपसे क्षमा याचना चाहेंगे.
रामराम.
क्षमा मांगने में ज्यादा वीरता और ज्यादा समझदारी लगती है - यह तो अनुभव जन्य सत्य है!
हमारी भी क्षमाप्रार्थना.. हैपी ब्लॉगिंग
बहुत ही ज्ञानवर्धक और अनुकरणीय पोस्ट
आभार
कृपया फोंट साईज बड़ा कर दें
जिससे पढने में सहूलियत हो
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