सीना गर्व से तन जाता है कि मेरे गुरु आचार्य तुलसी जैसे महान योगी पुरुष हुऐ है।
मै तो खालीस एक सडक पर पडा हुआ पत्थर था, गुरु की कृपा रही की मे काबिल बना
उनका मनोबल इतना प्रबल था कि वे सूरज का रथ रोकने की क्षमता रखते थे।
अब तक हमे तेरापथ धर्म के सस्थापक आधप्रवतक प्रथमाचार्य भिक्षु स्वामी एवम तेरापन्थ के वर्तमान अधिष्टायक एवम दशमाचार्य श्री महाप्रज्ञजी के सम्बन्ध मे, उनके जीवनदर्शन व लोक-कल्याणक सन्देशो को लोकहित मे प्रकाशित करने का सोभाग्य मिला।
पाठको से हमे हमेशा प्रोहत्सान मिला। इसलिए हमारी पुरी टीम आप सभी का शुक्रिया अदा करती है।
तेरापन्थ घर्म सघ मे एक से एक महान आचार्य हुऐ है। उसमे नवम आचार्य अणुव्रत अनुशास्ता,युगप्रधान गणाधिपति आचार्य श्री तुलसी का नाम लिए बिना दुनिया के किसी भी धर्म की बात पुर्ण नही हो सकती।
नो वर्ष की उम्र मे दिक्षा और 22 वर्ष की उम्र मे आचार्य पद यह उनकी विलक्षणता का प्रमाण है। लगातार 52 वर्षो तक धर्मसघ के आचार्यपद को शुसोभित करते हुऍ देश एवम विदेशो मे जैन धर्म को वो ऊचायो पर पहुचाया जिसकी आप और हम कल्पना भी नही कर सकते।
वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञ, युवाचार्य श्री महाश्रमण मुदित कुमारजी जैसे दो महान सन्तो के गुरु आचार्य तुलसी के बारे मे कोई भी शब्द उनकी आध्यतमिक जीवनचर्या के सामने बोना बन जाता है।
यह बाते मै नही तो ग्रन्थो को पढकर बता रहा हू नही सुनी-सूनाई कोई बात।
आज यह लिखते हुए मेरा सीना गर्व एम फक्र से से तन जाता है कि मेरे "गुरु" आचार्य तुलसी जैसे महान योगी पुरुष थे।
1982-83 के चातुर्मास मे पहली बार आचार्य तुलसी जी के दर्शन करने का सोभाग्य मिला। मेरी मॉ ने मुझे उस दिन प्रेरित नही किया होता तो महान गुरु का शिष्य बनेने से वचित रह जाता। सन्त लोगोवाल एवम राजीवगान्धी को पन्जाब समझोता करवाने वाले दशको से ऑतकवाद से जलते हूए पन्जाब को अमन एवम शान्ति की राह दिखाने वाले आचार्य श्री तुलसी जो मेरे गुरु भी थे को बडे ही करीब से देखा हू , उनको धारण करते हुऍ उनके आर्शिवाद से मैने तेरापन्थ सघ मे काम किया। आचार्य श्री की विशेष अनुकम्पा मेरे पर बनी रही की मै समाज एवम धर्म सघ की विभिन्न गतिविदियो से लोगो की सेवा मे लगा रहा।
मै तो खालीस एक सडक पर पडा हुआ पत्थर था यह तो महान गुरु की कृपा रही की मे काबिल बन सका। आचार्य श्री तुलसी का मेरे प्रति विशेष स्नेह था। मेरा सोभाग्य कि मैने ऐसे महान धर्मगुरु के सघ मे रहकर कार्य किया।
अनन्त और विशाल आकाश को शव्दो मे समेटना और परिभाषित करना बहुत ही कठिन कार्य है।
आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी, आचार्य श्री महाप्रपज्ञजी,अपने अपने समय के महान आचार्य एवम स्वय पद यात्री के साथ शब्द यात्री भी है। उनकी दर्शन साधना-शब्द साधना- आत्म-सयम साधना की तुलना किन्ही के साथ नही की जा सकती। मेरे जैसे लोगो के लिए तो और भी मुश्किल है कि ऐसे महान आचार्यो पर कुछ सोचे और लिखे। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व मे इतनी गहराई है कि उसमे डुबने के लिए कई जन्म लेने होगे।
गुरु की कृपा रही की मुझे विभिन्न धर्माआचार्यो, धर्मगुरुओ, साधु-सन्तो के सग रहने का एवम करीब से अध्यात्म करने का सुअवसर मिला।
कुछ बाते इसलिए लिखनी पडी की हम १ अगस्त से आचार्य श्री तुलसी के बारे मे विस्तृत रुप से जानेगे भी ओर पढगे भी।
मै तो खालीस एक सडक पर पडा हुआ पत्थर था, गुरु की कृपा रही की मे काबिल बन सका।
Posted:
28 जुलाई 2009 –
3:38 pm
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बस आपकी इन पोस्टों से मानवता लाभान्वित हो रही है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
जानकारी के लिये बहुत धन्यवाद जी।
राजा राणा छत्रपति ,हाथिन के असवार
मरना सबको एक दिन ,अपनी अपनी वार
दल,बल देवी देवता ,मात पिता परिवार
मरती विरिया जीव को ,कोई न राखनहार
(जैन धर्म )प्रार्थना की कुछ पंक्तिया है
Good article. I am experiencing many of these issues as well.
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