"अरिहन्त" शान्ति की मिशाईल का प्रतिक बनेगा इसका हम स्वागत करे- प्रभु यह तेरापन्थ
प्रधानमन्त्री श्री मनमोहनसिह ने परमाणु पनडुब्बी "अरिहन्त" का कल मुम्बई मे लोकार्पण कर ढाई दशको का सपना भारतीय वैज्ञानिको का साकार किया। "अरिहन्त" के नाम को लेकर एक जैन मुनि ने इसलिए विरोध किया क्यो कि "अरिहन्त" जैन धर्म के प्रथम देव माने गये है, और जैन धर्म अहिन्सा मे विश्वास करता है। तो आज इस लेख का मकसद साफ है कि हमे लकिर का फकिर नही बनके "अरिहन्तो" द्वारा बताई गई समग्र "अहिन्सा" के मुल रुप को समझना होगा। देश की सरहदो की, नागरीको की रक्षा मे उठाए गए किसी भी कदम को अहिन्सा नही माने। अर्हतो का एवम आचार्य महाप्रज्ञजी का मत इस और है। यह एक लोकिक व्यव्स्था है। भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध को "राजधर्म" ही बताया था।
आज मै आपके सामने 'अर्हत' कोन थे ? परमाणु पनडुब्बी पर "अरिहन्त" के नाम के पिछे भारतीय वैज्ञानिको का मकसद क्या है ?
'जैन तीर्थकरो' के नाम लिखना अर्थात भगवान महावीर-'दर्शन के 'सार; को विज्ञानिको ने अपनाया, एवम मिशाइल मेन डॉ अबदुल कलाम एवम जैन तेरापन्थ के आचार्य श्री महाप्रज्ञ की बातचीत, यह तीनो बातो को क्रमश पढने के बाद हम समझ पाएगे की भले ही "अरिहन्त",
परमाणु, पनडुब्बी है, इस पर "अरहन्त" नाम लगते ही "शीतल तेजोलेश्या" - "शान्ति की मिसाइल" बन गई। हमे गर्व होना चाहिए की भारत कि सामरिक रक्षा मे अरिहन्त देव के सन्देशो को अपनाया गया।
"अरिहन्त" नाम से इस बात के स्पष्ट सकेन्त है की हमारा (भारत) मकसद साफ है यह पण्डुब्बी विश्व मे शान्ति एवम सअस्तित्व का मार्ग को प्रसस्त करेगी। हमारे अरिहन्त देवो के मतो एवम विचारो को देश और दुनिया मे प्रतिकात्मक दर्शन के लिए भारत की परमाणु पनडुब्बी "अरिहन्त" अपने लक्ष्यो के लिए सफल होगी। शायद यह अणुबम के जनक डॉक्टर अबदुल कलाम व आचार्य महाप्रज्ञ कि वार्तालाप का सात्विक रुप की साकार प्रतिक्रिया.........
"शान्ति की मिसाइल" या भगवान महावीर द्वारा गोशाला को बचाने के लिए छोडे गए "शीतल तेजोलेश्या" की शुरुआत भर का प्रतिक है। हमे गर्व होता है की जैनो के तीर्थकर जिन्हे हम 'अरिहन्त' के नाम से पुकारते है इस विश्व शान्ति के प्रतिक के रुप मे यह परमाणु पनडुब्बी "अरिहन्त" भारत का शान्ति सन्देस का दुनिया भर मे प्रतिनिधित्व करेगी।
"अर्हत" जैन धर्म के मुख्य धुरी होते है।
"णमो अरिहन्ताणम", अर्थात अरिहन्तो को नमन। जैन धर्म मे सर्वथा कर्ममुक्त आत्म-शक्ति- सम्पन्न विभूति सिद्ध है। जैन साधना पद्धति का चरम लक्ष्य सिद्धत्व प्राप्ति है। "अर्हत" जैन धर्म के मुख्य धुरी होते है। वे चार कर्म का क्षय कर सर्वज्ञ की भुमिका पा लेते है। अर्हत जन-कल्याण के महनीय उपक्रम के मुख्य सवाहक होते है। उनके द्वारा बोले गए हर बोल छदमस्थ मुनियो व धर्म शासन के लिए पथ-दर्शक बन जाते है। इसी वजह स "नमस्कार महामत्र" मे "अर्हतो" को सिद्धो की अपेक्षा (सम्पुर्ण आत्म-उज्ज्वलता होने पर भी) पहले नमस्कार किया गया है। अर्हत, तीर्थकर, जिन,आदि पर्यायवाचीशब्द है। सर्वज्ञ व तीर्थकर मे आत्म-उपलब्धि की दृष्टी से कोई अन्तर नही है। दोनो केवल ज्ञान व केवल दर्शन को सम्प्राप्त है। फिर भी कुछ मोलिक अन्तर है
तीर्थकर पहले पद मे होते है सर्वज्ञ पॉचो पदो मे होते है। तीर्थकर शब्द जैन साहित्य का पारिभाषिक शब्द है। जैन आगमो मे इसका प्रचुर मात्रा मे उल्लेख हुआ है। जो तीर्थ का कर्ता होता है उसे तीर्थकर कहते है। जो ससार -समुन्द्र से तिरने मे योगभूत बनता है वह तीर्थ अर्थात प्रवचन होता है। उस प्रवचन को साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका धारण करते है। उपचार से इस चतुर्विध सघ को भी तीर्थ कहा गया है। इसके निर्माता को तीर्थकर कहा जाता है। जिनके तीर्थकर नामकर्म का उदय होता है वे तीर्थकर बनते है। इन्हे जैन धर्म की भाषा मे अर्हत देव कहा गया। तीर्थकर अहिसा,सत्य,आदि रुप धर्म की प्ररुपणा करते है। तीर्थकर १२ विशेष गुणधारी होते है।
कुल चोबीस तीर्थकर हुए है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने डॉ, कलाम को "शान्ति की मिसाइल" बनाने की प्रेरणा दी"
नई दिल्ली मे ४ नवम्बर १९९९९ मे अणु वैज्ञानिक श्री डॉ अब्दुल कलाम ने आचार्य महाप्रज्ञजी के प्रथम बार दर्शन किये।
वैज्ञानिक डॉ,वाई एस राजन, डॉ, सेल्वमुर्ति, श्री एम पी लेले आदि कलाम के साथ थे। उसी वार्तालाप मे आचार्य महाप्रज्ञ ने डॉ, कलाम को "शान्ति की मिसाइल" बनाने की प्रेरणा दी"
१३ अगस्त २००२ को राष्ट्रपति डॉ, अब्दुल कलाम एक बार फिर आचार्यप्रवर के दर्शनार्थ आए।
वार्तालाप का कुछ भाग-:
आचार्य श्री -" आज भय का वातावरण बन गया है। अणु अस्त्रो का प्रयोग मनुष्य के लिए चिन्ता का विषय है। क्या ऐसी कोई शक्ति है, जिससे उसका प्रयोग न हो पाए ?"
डॉ, कलाम -" अणु अस्त्रो के प्रयोग को रोकने की शक्ति नही है। इस स्थिति मे उन्हे विरोधि तत्व से नष्ट कर सकते है।"
आचार्य श्री-" महावीर के समय का प्रसग है । वैश्यायन बाल तपस्वी था। उसे "तेजोलब्धि" प्राप्त थी। उसने गोशालक को मारने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। भगवान महावीर ने देखा- गोशालक को जलाने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया जा रहा है। महावीर ने तत्काल "शीतल तेजोलेश्या" का प्रयोग किया उष्णतेजोलेशिया समाप्त हो गई।" विज्ञान ने "विध्वसक एटम बम" का निर्माण किया है। क्या आज विज्ञान विध्वसक एटम बम को निरस्त करने के लिए "शीतल एटमबम" का निर्माण कर सकता है ?"
डॉ, कलाम -" ( विस्मय-विमुग्ध होते हुए) आचार्य श्रीजी ! आप क्या कह रहे है ?"
आचार्य श्री -"! विनाशक एटम बम का निर्माण अनेक देशो ने कर लिया है। भारत को शान्ति का एटम बम का, शान्ति की मिसाइल का निर्माण करना चाहिए। क्या आप कर सकते है ?"
राष्ट्रपतिजी -"(श्रद्धा भरे स्वर मे) आचार्यश्री! यह अपुर्व कन्सेप्ट है। केवल भारत ही यह कार्य कर सकता है। महावीर, बुद्ध,और गान्घी का देश आध्यात्मिक रुप से मजबुत हो जाए तो हम इस मिशन को स्टार्ट कर सकते है।"
आपका बहुत आभार. इस लेख द्वारा आपने बहुत सी नवीन बातों को बताया है और आचार्यश्री की देशनाओं को समझाया है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह .. बहुत बढिया आलेख है ये तो .. आशा है आगे भी ऐसी ही जानकारियों से रूबरू कराते रहेंगे .. बहुत बहुत धन्यवाद !!
अच्छा लगा पढ़ना. बहुत जानकारी मिली.
अरिहंत का एक अर्थ "शत्रु का नाश करने वाला " भी होता है. पनडूब्बी को उसी अर्थ में लें. दशरथ को भी अरिहंत कहा गया है, तो क्या वे तिर्थंकर थे? जैन इसे समझे...
बहुत सही जी। विध्वंस को रोकने का औजार चाहिये और भारत वही कर रहा है।
आपने बहुत अच्छा लिखा है किन्तु यहाँ कुछ बातें जो कि मन में उठ रही हैं,उनके बारे में आपसे जानना चाहूंगा।
पहले तो ये कि आज ही समाचार पत्र में पढा था कि इस पनडुब्बी का नामकरण (अरिहन्त) प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी की धर्मपत्नि द्वारा किया गया है।
दूसरी बात ये कि जैन समाज ने इस नाम पर आपत्ती जताई है। मुम्बई के जैन मुनि सूर्योदय सागर सूरीश्वर जी ने इस पर विशेष रूप से अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
तीसरी बात ये कि उनके अनुसार अरिहन्त नाम का अर्थ है काम,क्रोध,लोभ इत्यादि दुर्गुण रूपी शत्रुओं का नाश करने वाला, जब कि आपके अनुसार इसका अर्थ है "शान्ती"। एक ही शब्द के दो धुर विरोधी अर्थ कैसे?
@Pt.डी.के.शर्मा"वत्सजी"
सर! मुनिवर सत्य ही कह रहे है-"अरिहन्त नाम का अर्थ है काम,क्रोध,लोभ इत्यादि दुर्गुण रूपी शत्रुओं का नाश करने वाला,
और मैने भी उसका अन्तिम परिणाम "शान्ती" बताया। काम,क्रोध,लोभ इत्यादि दुर्गुण रूपी शत्रुओं का नाश होने के बाद शान्ति की स्थापना ही होगी। नाश के पिछे अरिहन्तो का मुलउद्देश्य को मैने प्रकट किया-"शान्ती"।
बेहद उपयोगी जानकारी। साथ में कलाम के वार्तालाप का स्त्रोत देते तो अच्छा रहता।
@प्रबुद्ध ने कहा…
बेहद उपयोगी जानकारी। साथ में कलाम के वार्तालाप का स्त्रोत देते तो अच्छा रहता।
जागरुकता के लिए धन्यवाद!
हे प्रभु यह तेरापन्थ ब्लोग तेरापन्थ आचार्य महाप्रज्ञजी के श्रावक द्वारा लिखा जाता है। अतः नि:सन्देह इसमे लिखी सभी बात सत्ययुक्त होती है। प्रमाणिक होती है। हमारा कोई खोजी स्त्रोत तो नही है पर प्रामाणीक जरुर है।
उपर प्रसारित डॉ, कलाम एवम आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की बातचीत के अन्श पुस्तक "विज्ञान अध्यात्म की और" इसके लेखक है आचार्य महाप्रज्ञजी के विद्ववान सन्त मुनि धनजय कुमारजी एवम जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा कलकता द्वारा प्रकाशन हुआ है। यह सस्था तेरापन्थ धर्म सघ की समस्त गतिविघियो का सचालन अथवा आयोजन करती है।
आप आगे डॉ, राजेन्द्रप्रसाद, वी वी गिरी, नेहरु, इन्दिराजी , विनोबा, अब्दुल गफार खॉ, मोररजी एवम अन्य की अन्तरग वार्ता आचार्य तुलसी के साथ भी पढ पाएगे।
आभार