हाथ की दस अगुलियो मे दस चक्र थे
आचार्य भिखणजी के
कटालिया (मारवाड) के कमधज (राठोड वन्शी क्षत्रिय) वखतसिहजी अधिकारी थे। स्वामीजी के पिता का नाम शाह बल्लुजी और माता का दीपाबाई था। वे जाति से ओसवाल (जैन) थे। भिक्षु जब गर्भ मे आये तब उनकि माता ने तेजस्वी सिह का स्वप्न देखा था। स्वामी जी का जन्म मूल नक्षत्र के चोथे पाये मे हुआ। उनकी जन्म कुण्डली का विवरण गाथाओ मे इस तरह है- "मीन लग्न, लग्नेतमगुरु रे, तृतीय भ्रृगु पचम रवि बुध्द। भोम छठे शिखि सप्त मे रे लाल, दशमे चन्द्र एकादशम शनि शुध्द। मूल ऋष्य तूर्य पाद मे रे, हरष्यो सहु परिवार । भीखण नाम दियो भलो रे लाल, कर उत्सव विस्तार॥" (शासन प्रभाकर ढा२ गा १४-१५ शासन समुन्द्र ६९) शाह बल्लुजी ने दो बार शादी की। प्रथम पत्नि का नाम लाछडदे था। उनके पुत्र होलोजी थे। प्रथम पत्नि का वियोग होने पर बल्लुजी ने दुसरी बार शादी दिपादे(दिपाजी)से की। उनके पुत्र भिखणजी थे। बल्लुशाह कि मृत्यु के बाद होलोजी अलग रहने लगे। भिखणजी माता दीपादे के साथ रहने लगे। स्वामी जी का शरीर दीर्घ,वर्ण श्याम, आखे लाल,और गति श्रेष्ट हाथी के समान थी। अनेक सामुद्रिक शुभ लक्षण थे। २ सवतः१८४८ मे आचार्य भिखणजी जयपुर पधारे। उस समय वहा के समुन्द्र - शास्त्र- वेता पडित देवकीनन्दनजी बोहरा (ब्राह्मण) ने स्वामीजी के विलक्षण शरीर को देखा ओर कहा- जीवणा पग मे उडद रेखा। (बाया पैर) जीवणा हाथ मे मच्छ के आकारे रेखा पोहचा ऊपर नीन रेखा मणिबन्ध की जीवणा हाथ मे हाथ की दस अगुलियो मे दस चक्र गुदी नाड री तिण मे तीन रेखा लम्बी लिलाट मे तीन रेखा लम्बी कान उपर बाल पेट के उपर तीन रेखा बराबर की पेट के उपर धजा को आकार |
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नोट- अर्थ है उपरोक्त शुभ लक्ष्णो वाले व्यक्ति का दो हजार वर्षो तक नाम रहे।(शा,स ७०-७१) स्वामीजी बचपन से ही बडे निपुण और कुशाग्र बुध्दि के धनी थे। महाजनी हिसाब मे बहुत दक्ष थे । पचायत आदि के कार्य इतने चातुर्य से करते कि जिसका पुर जन पर अच्छा प्रभाव था। |
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"मजन्ना तो मेरे बकरे का नाम है।
स्वामीजी के गृह्स्थ वास की घटना है कि एक बार कटालिया ग्राम मे किसी व्यक्ति के गहनो कि चोरी हो गई। तब उनके पास के गाव बोरनदी से एक अन्धे कुम्हार को बुलाया गया। वह कुम्हार कहा करता था कि मेरे शरीर मे देवता आते है। अतः उसे गहना चुराने वाले का नाम बताने के लिये बुलाया गया। कुम्हार दिन मे स्वामी जी के पास आया और इधर- उधर की बाते कर चोरी के प्रसग को छेडते हुए पुछने लगा -"यहा किस पर सन्देह किया जाता है? स्वामीजी ने उसकी ढ्ग बिधा को समझ गये और बोले --"सन्देह तो मजन्ने पर किया जाता है।" रात को चोरी वाले घर लोग एकत्रित हुए। वह कुम्हार भी आया। उसे पुछा गया कि गहने किसने चुराये है ? तब अपने पुर्व निश्चय के अनुसार शरीर को अकडाता हुआ बोला -"डाल दे रे डाल दे गहने डाल दे," मगर इस तरह कहने से गहने कोन डालता।लोगो ने चोर का नाम बताने के लिये कहा तब वह तडकता हुआ बोला-"चोर मजन्ना है, उसी ने गहने चुराए है।"
घर के मालिक ने कहा-"मजन्ना तो मेरे बकरे का नाम है।उस पर झुठा आरोप क्यो लगाते हो ? यह सुनकर लोग उसके प्रपन्च को समझ गये।स्वामी जी ने दिन मे कुम्हार से हुई बात को सुनाते हुऐ कहा-" तुम लोगो कि बुध्दि कहा गई है जो आखो वाले से चुराये गये गहनो का पत्ता इस अन्धे आदमी से लगाते हो। अतः वे कैसे मिल सकेगे।" इस तरह स्वामी भिखणजी ने कुम्हार की पोल खोल कर सारे गाव को उसके दम्भ से बचा लिया।
अच्छा लगा पढ़कर !
कहानी अच्छी है..
बहुत बढिया आलेख.
रामराम.