बडे ही सरल ढग से प्रशनो के माध्यम से बालको को जैन कोन ? पर समझाने कि कोशिश की।
प्रशनः- तुम कोन हो ?
उत्तरः- हम जैन है।
प्रशनः- तुम्हारा धर्म कोनसा है ?
उत्तरः- हमारा धर्म जैन धर्म है।
प्रशनः- जैन धर्म किसको कहते है?
उत्तरः- जो जिन देवो ने बताया उसे जैन कहते है।
प्रशनः- जिन देवो ने क्या सिखाया ?
उत्तरः- किसी को दुख न दो। सदा सच्च बोलो।लोभ लालस मे मत पडो।सबके साथ प्रेम से रहो।
प्रशनः-जिन देव कोन होते है ?
उत्तरः- जो मन के विकारो को जीतते है।किसी भी तरह का कपट नही करते है, वे महान आत्माऐ जिन कहलाती है।
प्रशनः-ऐसे जिन कोन हुऐ है?
उत्तरः- भगवान ऋषभदेवजी, पार्शवनाथजी, महावीर आदि।
जैन कोन है ?
जैन वह है जो मन के विकारो को जीतने की कोशिश करता है तथा जो सदा भले काम करता है।
भले काम कोनसे है ?
1 किसी भी जीव को दु:ख नही देना
2 किसी जीव की हत्या नही करना।
3 किसी को गाली नही देना।
4 झुठ नही बोलना।
5 चोरी नही करना।
6 सबके साथ अच्छा व्यवहार रखना।
7 सबके साथ प्रेम का वर्ताव करना।
8 क्रोध नही करना।
9 किसी से लडाई,झगडा ना करना आदि आदि कोई काम है।
जैन को क्या करना चाहिऐ ?
1 समय निकाल कर ज्यादा से ज्यादा समय सामायिक सवर मे लगाना चाहिऐ।
2 प्रतिक्रमण करना चाहिऐ।
3 पन्च परमेष्ठी का ध्यान करना चाहिऐ।
4 देव गुरु धर्म पर श्रद्धा रखनी चाहिऐ।
5 सभी धर्मो को सम्मान आदर से देखना , एवम अनेकान्तवाद को अपनाना चाहिऐ।
6 अपने से बडो का आदर एवम छोटो को स्नेह करना चाहिए।
7 अपने पास जो है बॉट कर खाना चाहिऐ
8 रोगियो व दु:खी व्यक्तियो कि सेवा मे मन को लगाना चाहिए।
जैन धर्म मे जन्म से अधिक कर्म को महत्व दिया गया है। भले ही कोई व्यक्ती किसी जैनपरम्परा वाले परिवार मे जन्म लिया हो । व्यक्ति के कर्म- बताये गये है- होने चाहीऐ तभी वह सही मायने मे जैन है। इसलिऐ जैन तेरापन्थ धर्म सध मे कर्मणा जैनो के हजारो परिवार है, जैसे सरदार,सिन्धी, राजपुत, हरिजन, मुस्लमान,अग्र्वाल, सहित विभिन्न परम्पारो के सैकडो परिवार जैन धर्म को अपने व्यहवारिक जीवन मे अपना रखा है। |
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देखे एक ब्रिटेनी बच्चा कैसे नमकार महामन्त्र को बोल रहा है.
बचपन में चौक था, चौक में एक कुआँ था और दोनों और अग्रवाल समुदाय के स्वामित्व के दो मंदि्र थे। एक वैष्णव जिस में हम अपने परिवार सहित रहते थे, दाज्जी पुजारी थे। दूसरा जैन मंदिर। जैन धर्म को बहुत नजदीकी से देखा है। मध्यवर्ग के लिए उत्तम जीवन शैली का प्रारूप है। इस वर्ष मैं ने देवशयनी एकादशी से देव उठनी तक चातुर्मास में रात्रि भोजन का त्याग कर दिया है। बहुत अच्छे फल दिए हैं। कब्ज, अतिसार, अपचन, गैस आदि पेट के रोगों से स्वतः ही छुटकारा मिल गया है। एक जैन मित्र को पता लगा तो कहने लगे- किसी दिन चिकित्सक प्रेस्किप्शन के रूप में रात्रि भोजन का त्याग लिखा करेंगे।
achha laga padhkar
सही है.. माहावीर के दिये सुत्र अहिंसा, अपरिग्रह, अचोर्य आदि भी काफी समसामयिक है..
संग्रहणीय पोस्ट !
बहुत सुंदर लिखा आपने. मुझे लगता है भगवान महावीर की शिक्षा सर्वकालिक मानव हित मे है जो हर काल मे प्रासंगिक रहेगी. आभार आपका.
रामराम.
Bada pyara bachcha hai ji Pavitr NAVKAAR Mantr ka path ker raha hai -
Jain Dharm per sunder post
[ Mera PC band hai eesliye Lap top se meri comment bhej rahee hoon - wo bhee angrezi mei
so, maafi chahti hoon ]
बहुत बढ़िया ,और प्रेरणादायक भी
bhagwan mahavir is grate.unki har bat aaj 100% sach hoti najar aarhi hai .jase,,satya.ahisa....in.ke bina admi ka jina hi bekar hi. madan chhajer....editor daily hindustan border.jodhpur raj.
jain.hona.thik.hai.per.jaintvvhona bari bat hai .aham.ka.tyag....vira mora gaj thi utro...jis ne upnaya,wo dhanya ho gaya.aap,bhi.aham.ko.tyag.de.fir.deke.jene.ka.annad.thank.09413526581 madan chhajer barmer.hindustan border.