जैन बाल दिक्षा के ओचित्य पर आज डा.रूपेश श्रीवास्तव का सवाल

Posted: 09 मई 2009












डा.रूपेश श्रीवास्तव ने एक प्रशन भेजा।

प्रशन:- हाल ही में उठे बच्चों को बचपन में ही दीक्षा देने के कानूनी विवाद का संदर्भ लेकर अवश्य लिखिये प्रतीक्षा रहेगी
महामहीम आचार्य महाप्रज्ञ के  सन्देश
महामहिम राष्ट्रपति डॉ,कलाम के पुछे बाल मुनि के प्रशन उत्तर के हवाले
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रट उदयपुर  के ऐतिहासिक फैसेले को लोगो कि जानकारी के लिऐ, माध्यम बनाया गया इसका प्रसारण "हे प्रभू यह तेरापन्थ" द्वारा प्रसारित एवम डॉ रुपेश श्री वास्तव एवम अन्य मित्रो के सवाल एवम उसके समाधान हेतू -आभार
जय जिनेन्द्र


इस पर सबसे पहले हम महामना आचार्य महाप्रज्ञजी के विचार आम जन के समाधान हेतु प्रसारित कर रहे है।
आचार्य महाप्रज्ञ -"बाल दीक्षा या वृद्ध दीक्षा के विचार अलग अलग है, अनुभव अलग है। विचार तो यह है कि छोटा बालक क्या समझता है ? क्या दीक्षा लेगा ? अनुभव यह कहता है कि दीक्षा के लिये जो समय चाहिऐ वह शायद बालक मै अच्छी होती है। बूढे मे कमजोर होती है क्यो कि मै देख रहा हू कि हमारी (तेरापन्थ घर्म सघ) आचार्य परम्परा मे आचार्य तुलसी ११-१२ वर्ष मे दीक्षित हुये। मै साढे दस वर्ष की अवस्था मे दीक्षित हुआ। हमारे पुज्य गुरुवर कालुगुणी जी भी १०-१२ मे दीक्षित हुऐ। आचार्य मघवागणी, एवम चोथे आचार्य जयचार्यजी भी जो शक्ती शाली आचार्य हुऐ  नो वर्ष कि आयु मे दीक्षा ली। तो अनुभव यह है केवल बोद्धिक दृष्टि से देखते है तो कहते है छोटा बालक  क्या समझताहै,,,,, दुसरा तर्क यह भी है वैदिक आचार्यो ने, जैन आचार्यो ने दिया है कि कपडे को मैला करके धोने की अपेक्षा कपडे को मेला ही न करे,गन्दा भी न बने तो रागात्मक सस्कार एक युवा है, बडी अवस्था मे है, रागात्मक सस्कार बढ गऐ तो उन्हे तोडना बहुत मुश्किल है। जिनके नही बढे वे तो अलिप्त है। अनुभव और परम्परा के तो अलग - अलग बयान है तथा बोद्धिक ता के स्थर पर सोचने वाले अलग बोलते है ये तो अपना स्तर है।"
आचार्य महाप्रज्ञ  (प्रज्ञा कि यात्रा)

दिनाक १४ फरवरी २००३ को भारत के महामहिम राष्ट्रपति डॉ,कलाम ने तेरापन्थ भवन कान्दिवली मे अचार्य महाप्रज्ञजी के दर्शन किऐ। मुम्बई हवाई अड्डे से सिधे आचरप्रवर के चरणो मे पहुचे। आचार्य श्री से वार्तालाप समाप्त हुई राष्ट्रिपती जैसे ही खडे हुऐ , अनेक बाल मुनि कक्ष मे आ गये। राष्ट्रपति  महोदय  बाल मुनियो के बीच मे चले गये। मुनि मुदित, मुनि महावीर,मुनि मनन, आदि प्रसन्न चेहरो पर दृष्टिपात करते हुए राष्ट्रपति ने बाल मुनियो से पुछा कि-" आप प्रसन्न रहते है। आपकी प्रसन्नता का रहस्य क्या? " बाल मुनि मनन कुमारजी ने कहा-" कि मै साधू हू इसलिऐ प्रसन्न हू।" बाल मुनि मनन कुमारजी  ने कहा-" यह आचार्यवर के आशीर्वाद का फल है।" बाल मुनि के इस उत्तर राष्ट्रपति  महोदय  प्रभावित हुऐ। और एक अग्रेजी कविता भी सिखाई। १४ फरवरी को तेरापन्थ भवन शाम को आऐ राष्ट्रपति  महोदय   १५ फरवरी तक यही रुके।

कल आप पढे इसका भारतीय कानुनी पहलू क्रमश: कल भी जारी॥

4 comments:

  1. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 09 मई, 2009

    चित्रों के साथ लेख प्रेरणादायक और रोचक लगा।
    बधाई।

  2. ताऊ रामपुरिया 09 मई, 2009

    बहुत रोचक जानकारी ..आगे का इंतजार करते हैं.

    रामराम.

  3. योगेन्द्र मौदगिल 09 मई, 2009

    वाह... बहुत अच्छा लेख...

  4. News4Nation 09 मई, 2009

    [b]मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत कविता पढें और अपनी माँ के प्यार,अहसास और त्याग को जिंदा रखें
    कविता पढने नीचे क्लीक करें
    सताता है,रुलाता है,हाँथ उठाता है पर वो मुझे माँ कहता है

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