विनम्र,अभिवदना, महामानव के प्रति हमारे बीच मे से उठा एक इन्सान असाधारण व्यक्तितव के रुप मे नगे पॉव से पथरीली राहो पर अपने पद चिन्ह बनाता हुआ असाधरण सफलताओ के शिखरो पर आरोहण करते हुऐ ८९ वर्षो की यात्रा पुर्ण कर ९० वे वर्ष मे प्रवेश कर रहा है। उनकी सफलता के अनेक आयाम है - अहिसा यात्रा, अहिसा समवाय, अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान,और उन्ही आयामो मे हम "हे प्रभु यह तेरापन्थ हिन्दी ब्लोग" रचनात्मक वर्धापन के रुप मे "आचार्य महाप्रज्ञ विशेषाक" काफी दिनो से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। जिसमे आचार्य महाप्रज्ञ के यशस्वी, तेजस्वी, और वर्चस्वी आचार्य और उनके विराट व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। विनम्र,अभिवदना, वर्धापनाएवम नमन एक महामानव के प्रति। आचार्य महाप्रज्ञ जो भारत के ही नही, अपितु सम्पुर्ण विश्व के शीर्षस्थ दार्शनिको मे से एक है वे जैन न्याय के क्षैत्र मे राधाकृष्णन है ने ससार को अपने दर्शन से अवगत कराया। उनके द्वारा हिन्दी अग्रेजी गुजराती भाषाओ मे लिखी सैकडो पुस्तको का सार हम आपके लिऐ यहॉ क्रमश दो सप्ताह तक देगे। आप दुनिया के महान दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञजी को पढे तथा अपने जीवन मे क्रान्ती लाऐ। शायद यह हम सभी के लिऐ महान अवसर होगा कि हम उनके द्वारा लिखीत साहित्यक, धार्मिक,दर्शनशास्त्र को पढे -समझे और ग्रहण करे।
विधवान कोन?
विघा और अविघा मे जो अन्तर है, उसे समझ लेना ही जीवन की सर्वोपरि साधना है। साधना केवल योगियो के लिये नही है, जो भी व्यक्ति अपना जीवन शान्तिपूर्वक ढग से बिताना चाहे उन्हे साधना का अवलबन लेना चाहिए। जो सब किछ जानकार भी अपने आपको नही जानता, वह अविघावान है। विघावान वही है, जो दूसरो को जानने से पूर्व अपने आपको भली-भॉति जान ले.
आचार्य महाप्रज्ञ, चिन्तन का परिमल, पृष्ट५१
परिवारिक जीवन और अहिसा
एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ती के साथ सम्बन्ध और व्यवाहर का तात्पर्य है, समाज। मानवीय सम्बन्ध और निश्छल व्यवाहर का प्रशिक्षण सामाजिक स्तर पर अहिसा का प्रशिक्षण है उसकी पहली प्रयोगभूमि है, परिवार। हिसा को, युद्ध और आतकवाद तक सीमित करना हमे इष्ट नही है युद्ध कभी-कभी और किसी भू-भाग मे होने वाली घटना है। पारिवारिक जीवन मे हिसा की घटनाऐ प्रतिदिन या बहुत बार होती रहती है। वे मानसिक शान्ति मे बाधा डालती है, व्यापक हिसा की पृष्टभूमि तैयार करती है। पारिवारिक जीवन मे शान्तिपुर्ण सह-अस्तित्व का होना अहिसा के प्रशिक्षण का महत्वपुर्ण कार्य होगा। असहिष्णुता,असयम और महत्वकाक्षा - ये पारिवारिक जीवन मे अशान्ति का विष घोल देते है। सहिष्णुता और सयम का अभ्यास, महत्वकाक्षा का परिसीमन-ये प्रयोग पारिवारिक जीवन मे होने वाली हिसा का वातावरण बदल देती है।
आचार्य महाप्रज्ञ, विश्वशान्ति और अहिसा,पृष्ट४१
विनम्र,अभिवदना, महामानव के प्रति।
विनम्र,अभिवदना, नमन एक महामानव के प्रति: ८९ वर्षो की यात्रा पुर्ण कर ९० वे वर्ष मे प्रवेश
aap bahut hi achha karya kar rahe hai...jaari rakhen..
आदरणीय महावीर जी, हाल ही में उठे बच्चों को बचपन में ही दीक्षा देने के कानूनी विवाद का संदर्भ लेकर अवश्य लिखिये प्रतीक्षा रहेगी
मैं नवी मुंबई में रहता हूं यदि कभी इस तरफ़ आना हो तो दर्शन की आकांक्षा है मेरा मोबाइल नं. है 9224496555
सादर
डा.रूपेश श्रीवास्तव
इस महान आत्मा के बारे में जानकर अच्छा लगा. आभार.
विद्या और अविद्या में अन्तर बहुत सही बताया आपने। इस कसौटी पर अपने को सतत तोलने की जरूरत है।
बहुत सुंदर ्जानकारी दी आपने.
रामराम.
इतनी अच्छी जानकारियाँ देने के लिये आभार जी ! आचार्य श्री को सादर प्रणाम !