जैन शासन के युग प्रधान आचार्यो की श्रृखला मे एक नाम आचार्य महाप्रज्ञ का है।

Posted: 03 अप्रैल 2009

(नवम आचार्य श्री तुलसी ने महाप्रज्ञ का,  आचार्य पद पर मनोयन करते हुऐ) 

तेरापन्थ धर्म सघ की एक आचार्य परम्परा आज तक अक्षुण चल रही है। भावी आचार्य का मनोयन करने का अधिकार वर्तमान आचार्य को होता है। तेरापन्थ के नवम आचार्य श्री तुलसी ने अपने इस अधिकार का उपयोग कर धर्म सघ के दशम आचार्य के पद पर युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी (मुनि नथमल) का मनोयन किया। तेरापन्थ के २५० सालो मे यह विरली घटना थी कि एक आचार्य के जिवनकाल मे नव आचार्य का मनोयन हुआ। तेरापन्थ के वर्तमान मे दशम आचार्य महाप्रज्ञजी है और गुरु (नवम आचार्य श्री तुलसी ) के विधमानता मे आचार्य बनने वाले प्रथम आचार्य है।

 

( भारत के ‍‍राष्ट्र्पति श्री कलाम आचार्य महाप्रज्ञ से मिलने उदयपुर पहुचे)

जैन योग मे ध्यान का विशेष महत्व है । भगवान महावीर ध्यान योग के प्रकृष्ट साधक थे। उनके शासन मे ध्यान की विशिष्ट विभूतियॉ हो चुकी है। जैन शासन के युग प्रधान आचार्यो की श्रृखला मे एक नाम आचार्य महाप्रज्ञ का है। ध्यान योग की विलुप्तप्राय परम्परा का पुनरुदधार करने का श्रेय आचार्य महाप्रज्ञ को है। अध्यन मनन प्रयोग और अनुभव की चतुष्पदोसे उन्होने जो कुछ पाया, उसकी निष्पति है प्रेक्षाध्यान।

चार्य तुलसी द्वारा युवाचार्य के रुप मे मनोनीत और तेरापन्थ के दशम आचार्य के रुप अभिषिक्त आचार्य महाप्रज्ञ अहिसा यात्रा के माध्यम से जन जन मे अहिसक चेतना के जागरण और नैतिक मुल्यो के विकास हेतु निरन्तर पुरुषार्थ कर रहे है। ऐसे महान प्रतापी आचार्य के १४ वर्ष पुर्ण होने के उपलक्ष मे "हे प्रभु यह तेरापन्थ" हिन्दी ब्लोग पर अभिवन्दना विशेषाक प्रसारित कर रहे है। यह श्रृखला बद्ध तरीके से आचार्य श्री के व्यक्तित्त्व मे अवगाहन करने के लिए अपने पाठको के सामने प्रचुर और ठोस सामग्री प्रस्तुत कर सकु यही अभीष्ट है।


आचार्य महाप्रज्ञ

जन्मः- आषाड कृष्णा १३ सवत १९७७, टमकोर (राजस्थान)

दीक्षा:- विक्रम सवत १९८७ माध शुक्ल १०

महाप्रज्ञ अलकरण:- विक्रम सवत, २०३५ कार्तिक शुक्ल १३

आचार्य पद धोषणा :- विक्रम सवत, २००५, माध शुक्ल ७

आचार्यपदाअभिषेकः- विक्रम सवत, २०५१, माघ शुक्ला ६




दर्शन क्षेत्र मे कोई आचार्य महाप्रज्ञ की तुलना विवेकानन्द से करते है तो कोई सर्वपल्ली राधाकृष्ण्न से। किन्तु प्रबधन के क्षेत्र मे आचार्य महाप्रज्ञ की तुलना सम्भव नही, आपका प्रबन्धन कोशल अद्वितीय है, अनुपमेय है।





ज्ञान-दर्शन और चरित्र की आराधना के द्वारा समूचे सघ को अध्यात्म निष्ठ बनाने और उसकी आत्म चेतना के सन्दर्भ मे समुन्न्त करने के लिऐ मेरी सारी शक्ती सघ को समर्पित रहेगी। -आचार्य महाप्रज्ञ



मेरी कलम से 


                                                     

                                                            महावीर बी सेमलानी 

जीवन के कई रन्ग है। कब कोनसा चट्क रन्ग प्रभावित कर जाता है। पता ही नही चलता। आज से चार वर्ष पुर्व चाणोद तेरापन्थ युवक परिषद मुम्बई का मन्त्री पद का दायित्व भार सभालने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पुर्व मैने तेरापन्थ टाइम्स को लुणकरणजी छाजेड बीकानेर के सग मिलकर आचार्यश्री तुलसी की कृपा दृष्टी पाकर १९८४ मे शुरु किया था। आज तेरापन्थ टाइम्स देश विदेश मे तेरापन्थ धर्म सध का मुख्य अखबार है जो पढा जाता है। मै महाराष्ट्रा ब्योरो प्रमुख था। पत्र पत्रिकाओ मे लिखने का मुझे मोका मिला। हे प्रभु तेरापन्थ ब्लोग का सफर को अभी एक वर्ष भी पुर्ण नही हुआ है पर आपके प्यार ने मेरे होसले मे कई गुना वृद्धि कर दी। चुकी है प्रभु तेरापन्थ ब्लोग का उदभव इसी मन्शा से हुआ था कि धार्मिक-आध्यात्मिक- विचारोतेजक लेखो का सशक्त माध्यम रहे,= "हे प्रभु"। जिसके समुचित परिचय व पहचान का सामर्थय न तो शब्दो मै है नही किसी और भुमिका मे।

" किसी भी दर्शन को बुद्धिगम्य करने के लिए साहित्य की अहम भुमिका होती है और साहित्य का सहज माध्यम है- ॰ चिठ्ठाजगत। गतिशील चिठ्ठा और साहित्य की एकमात्र पहचान है- "परिवर्तन"।परिवर्तन" आज "हे प्रभु" ब्लोग पर हम परिवर्तन करने जा रहे है। इसके जन्म के समय हमारा जो मुल मकसद था उसे पाने के लिऐ परिवर्तन"।

अबसे "हे प्रभु' पर केवल धार्मिकता- आध्यात्मिकता, धर्मगुरुओ के सन्देश, उच्च कोटि के दार्शिनिक, वक्ता, साहित्य, सर्जक, लोगो के सम्बन्ध मे ही बात होगी। इससे पुर्व मे हे प्रभु पर अन्य विषयो पर भी चर्चा होती थी जो अब नही होगी। यह निर्णय हमने कुछ विशेष कारणो से ले रहे है। चुकि ब्लोग का नाम "हे प्रभु यह तेरा-पथ" यह नाम लोगो कि आस्था से जुडा हुआ है अत इस नामके साथ कोई तरह का विवाद न जुडे इसके मध्य नजर हम उपरोक्त फैसला लेने जा रहे है कि हे प्रभु अपनी वास्तविक भूमिका मे आऐ एवम लोगो को अपना बनाऐ।

आप लोग निराश नही हो, अन्य विषयो पर आप खुली चर्चा के लिए मुम्बई टाईगर ने जन्म ले लिया है। जहॉ पर आप अपने को हे प्रभु के विचारो के समीप पाएगे। तो देश के ज्वलन्त मुदो को जॉसने-परखने के लिऐ, एवम साफ सुथरी छवि मे मुम्बई टाइगर को देख,पढ पाएगे।

इस तरह ठहर कर, अलग होकर देखना थोडा चोकाता है, हतप्रत करता है। देखा जाऐ तो वे सारी चीजे, जो हमारे होने का, असितत्व का, विचारो का, आत्मछवि के आधार है । असल मे दुनिया परिवर्तनशील है। और तो और , अपने स्वभाव, मान्यताओ, और विचारो को भी देखे तो पाऐगेकी नित्यप्रति हमारे अनुभव हमे बदल रहे है। हम दस साल पहले जो थे- निशिचय ही आज हम वह नही है। चाहे मामूली-सा परिवर्तन हो, लेकिन परिवर्तन तो है।

इसी सन्दर्भ मे हे प्रभु यह तेरापन्थ कि यह नई भूमिका , यानि पुरानी भूमिका से नई भूमिका। धर्मजनो से सवाद एवम साक्षातकार का साझॉ मन्च।   



4 comments:

  1. * મારી રચના * 03 अप्रैल, 2009

    badhiya likha hai aapne. hum hbi jain hai lekin aachay mahaprgnaji ke baare mai hame itni baatein pata nhai thi. sirf naam suna tha, aapse kafi jankari mil gai.
    Mahavi Jayanti paas aa rhai hai, ussi avsar pe badhiya post hai aap ka

    Jai Jinendra...!!!

  2. ताऊ रामपुरिया 04 अप्रैल, 2009

    आचार्य श्री के बारे मे आपने बहुत अच्छी जानकारी दी. धन्यवाद आपको.

    रामराम.

  3. Dr. Chandra Kumar Jain 04 अप्रैल, 2009

    जानकारी अच्छी लगी,
    विशेषांक की प्रतीक्षा रहेगी.
    आचार्य श्री के चरणों में
    कोटिशः नमन.
    ====================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

  4. Gyan Dutt Pandey 04 अप्रैल, 2009

    सुन्दर पोस्ट। आप जैन धर्म के विषय में आगे भी जानकारी दें - यह अनुरोध है।

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आपकी अमुल्य टीपणीयो के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।
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