(नवम आचार्य श्री तुलसी ने महाप्रज्ञ का, आचार्य पद पर मनोयन करते हुऐ)
( भारत के राष्ट्र्पति श्री कलाम आचार्य महाप्रज्ञ से मिलने उदयपुर पहुचे)
जैन योग मे ध्यान का विशेष महत्व है । भगवान महावीर ध्यान योग के प्रकृष्ट साधक थे। उनके शासन मे ध्यान की विशिष्ट विभूतियॉ हो चुकी है। जैन शासन के युग प्रधान आचार्यो की श्रृखला मे एक नाम आचार्य महाप्रज्ञ का है। ध्यान योग की विलुप्तप्राय परम्परा का पुनरुदधार करने का श्रेय आचार्य महाप्रज्ञ को है। अध्यन मनन प्रयोग और अनुभव की चतुष्पदोसे उन्होने जो कुछ पाया, उसकी निष्पति है प्रेक्षाध्यान।
आचार्य तुलसी द्वारा युवाचार्य के रुप मे मनोनीत और तेरापन्थ के दशम आचार्य के रुप अभिषिक्त आचार्य महाप्रज्ञ अहिसा यात्रा के माध्यम से जन जन मे अहिसक चेतना के जागरण और नैतिक मुल्यो के विकास हेतु निरन्तर पुरुषार्थ कर रहे है। ऐसे महान प्रतापी आचार्य के १४ वर्ष पुर्ण होने के उपलक्ष मे "हे प्रभु यह तेरापन्थ" हिन्दी ब्लोग पर अभिवन्दना विशेषाक प्रसारित कर रहे है। यह श्रृखला बद्ध तरीके से आचार्य श्री के व्यक्तित्त्व मे अवगाहन करने के लिए अपने पाठको के सामने प्रचुर और ठोस सामग्री प्रस्तुत कर सकु यही अभीष्ट है।
आचार्य महाप्रज्ञ |
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दर्शन क्षेत्र मे कोई आचार्य महाप्रज्ञ की तुलना विवेकानन्द से करते है तो कोई सर्वपल्ली राधाकृष्ण्न से। किन्तु प्रबधन के क्षेत्र मे आचार्य महाप्रज्ञ की तुलना सम्भव नही, आपका प्रबन्धन कोशल अद्वितीय है, अनुपमेय है। |
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ज्ञान-दर्शन और चरित्र की आराधना के द्वारा समूचे सघ को अध्यात्म निष्ठ बनाने और उसकी आत्म चेतना के सन्दर्भ मे समुन्न्त करने के लिऐ मेरी सारी शक्ती सघ को समर्पित रहेगी। -आचार्य महाप्रज्ञ |
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मेरी कलम से
महावीर बी सेमलानी जीवन के कई रन्ग है। कब कोनसा चट्क रन्ग प्रभावित कर जाता है। पता ही नही चलता। आज से चार वर्ष पुर्व चाणोद तेरापन्थ युवक परिषद मुम्बई का मन्त्री पद का दायित्व भार सभालने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पुर्व मैने तेरापन्थ टाइम्स को लुणकरणजी छाजेड बीकानेर के सग मिलकर आचार्यश्री तुलसी की कृपा दृष्टी पाकर १९८४ मे शुरु किया था। आज तेरापन्थ टाइम्स देश विदेश मे तेरापन्थ धर्म सध का मुख्य अखबार है जो पढा जाता है। मै महाराष्ट्रा ब्योरो प्रमुख था। पत्र पत्रिकाओ मे लिखने का मुझे मोका मिला। हे प्रभु तेरापन्थ ब्लोग का सफर को अभी एक वर्ष भी पुर्ण नही हुआ है पर आपके प्यार ने मेरे होसले मे कई गुना वृद्धि कर दी। चुकी है प्रभु तेरापन्थ ब्लोग का उदभव इसी मन्शा से हुआ था कि धार्मिक-आध्यात्मिक- विचारोतेजक लेखो का सशक्त माध्यम रहे,= "हे प्रभु"। जिसके समुचित परिचय व पहचान का सामर्थय न तो शब्दो मै है नही किसी और भुमिका मे। " किसी भी दर्शन को बुद्धिगम्य करने के लिए साहित्य की अहम भुमिका होती है और साहित्य का सहज माध्यम है- ॰ चिठ्ठाजगत। गतिशील चिठ्ठा और साहित्य की एकमात्र पहचान है- "परिवर्तन"।परिवर्तन" आज "हे प्रभु" ब्लोग पर हम परिवर्तन करने जा रहे है। इसके जन्म के समय हमारा जो मुल मकसद था उसे पाने के लिऐ परिवर्तन"। |
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badhiya likha hai aapne. hum hbi jain hai lekin aachay mahaprgnaji ke baare mai hame itni baatein pata nhai thi. sirf naam suna tha, aapse kafi jankari mil gai.
Mahavi Jayanti paas aa rhai hai, ussi avsar pe badhiya post hai aap ka
Jai Jinendra...!!!
आचार्य श्री के बारे मे आपने बहुत अच्छी जानकारी दी. धन्यवाद आपको.
रामराम.
जानकारी अच्छी लगी,
विशेषांक की प्रतीक्षा रहेगी.
आचार्य श्री के चरणों में
कोटिशः नमन.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सुन्दर पोस्ट। आप जैन धर्म के विषय में आगे भी जानकारी दें - यह अनुरोध है।