चाहे आपने लाखो रुपये दान किये हो, फिर भी मै आपको कंजूस ही कहूगा-यदि आप समवेदना और सहानुभूति बॉटना नही जानते। ये केवल धनिको पर नही, हर किसी पर लागू होती है। दुसरो कि वेदना और क्लेश को कोई ऐसा मसीहा ही अपने उपर ले सकता है: किन्तु अपनी समवेदना से दुसरे के घावो पर मरहम लगाने का प्रयत्न तो आप और हम कर ही सकते है।
माना, आप इस स्थिति मे नही है कि आर्थिक सकन्ट मे घिरे अपने मित्र,रिस्तेदार को उधार दे सके, उसके लिऐ मकान की तलाश कर सके, या उसे कोई अच्छी -सी नोकरी दिला सके। परन्तु अपनी साहनुभूति देकर उसे टूटने से बचा सकते है। बीमार व्यक्ति के लिए दवा खरीदने की स्थिति मे न होते हुए भी आप मीठे बोल और दिलासा का अमृत-पान तो उसे करा ही सकते है।
आप सोच रहे होगे, "हे प्रभु" बिन मोसम के विषय पर क्यो डायरी लिख रहे है ? तो मै साफ कर देता हु कि जब मै अमिताभ का ब्लोग पढ रहा था तो मै स्वय पढते-पढते भावुक हो गया। पिछले दिनो मुम्बई मे कैंसर से पीडित प्रमोद नामक किशोर ने अमिताभ से मिलने की इच्छा जाहीर की तो बिग बी खुद मिलने गये। इन दिनो बान्द्रा के माउन्ट मेरी रोड स्थित शांति अवेदना आश्रम मे प्रमोद कि देखभाल कि जा रही है।
"बिग बी ने ब्लोग मे लिखा है कि "मुझे देखकर इस किशोर के चेहरे पर हैरानी और अविश्वास का मिलाजुला भाव था। उसके शरीर का आधा हिस्सा अजीब तरीके से सूजा हुआ था। उसने किसी तरह अपनी नम ऑखो को पोछा और बस वह केवल इतना कह पाया थैक्यू !!! बिग बी ने ब्लोग मे आगे लिखा कि जब उन्होने प्रमोद से पुछा, "क्या उसे अपनी जिन्दगी मे कोई पछतावा है, तो उसने कहा दो बातो का। "एक तो वह बाहर जाकर अन्य बच्चो के साथ खेलना चाहता था। दुसरा इस बात का कि वह अपने पिता कि देखभाल नही कर सका।" प्रमोद कि दुसरी बात सुनते ही बिग अपनी भावनाओ पर काबू पाने के लिए उसके कक्ष से तुरन्त बाहर निकल आऐ। बिग बी ने लिखा कि "मुझे अपने बीच पाने कि खुशी उनकी ऑखो से झलक रही थी। यह बात मुझे अन्दर तक झन्झोरकर रख दिया कि मनुष्य सहानुभूति के भुखे होते है। दुख के समय मे प्यार के दो बोल कोई बोल आऐ तो बिमार, संकटग्रस्त मनुष्य फिर से उठ खडा हो जाता है। अमितजी ने हमेशा कि तरह मनुष्यता का वह फर्ज अदा किया जिसके लिऐ वह जाने जाते है।" |
---|
सविधान मे भले ही इसका उल्लेख ना हो, मगर शोक-क्लेश के क्षणो मे मित्रो, स्वजनो से सात्वना की आशा करने का सभी को बुनियादी अधिकार है। और अनुभूति के धरातल पर आप भी इस बात को जानते-मानते होगे।
मेरे गाव मे एक वृद्ध है, सबके दुख सुख मे हमदर्दी बॉटते है। किसी के यहॉ बिमारी हो या गमी, वे तुरन्त वहॉ जाते है और उसे सात्वना के दो बोल बॉट आते है।
सहानुभूति टूटते हुए आदमी को सक्षम बनाने वाली सजीवानी -बुटी है, सात्वना हृदय कि धधकती अग्नि को शीतल करने वाली अमोध जल-धारा है। वह व्यक्ती, जिसके प्रति आप सहानुभूति व्यक्त कर रहे है, आपके प्रति गहरी आत्मीयता अनुभव करने लगता है।
तो आज से हम यह शुभ कार्य अपने घर से शुरु करे अपने वृद्ध मॉ बाप कि सेवा करके, उनकी भावनाओ का आदरता पुर्वक निर्वाह करके, उनके साथ कुछ पल बैठकर प्यार से अपना सिर उनकि गोद मे रखकर, उनको मान सम्मान देकर। |
---|
(सभी फोटुओ को बडा करने के लिऐ उसपर चटका लगाऐ)
हे प्रभु यह तेरा-पथ, मुम्बई-टाईगर, माई-ब्लोग, दि फोटु-गेलेरी पर हिन्दु नव वर्ष एवम गुडी पाडवा कि हार्दीक शुभकामनाऐ समस्त हिन्दी चिठाकारो को, |
---|
किसी की पँक्तियाँ याद आ रहीं हैं कि-
आदमी होना कहाँ शर्त है अजमत के लिए।
हुस्न-ए-किरदार जरूरी है शराफत के लिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsoman@gmail.com
यह संवेदना और सहानुभूति कम होती जा रही है, जैसे जैसे आदमी व्यस्त होता जा रहा है।
आपने अच्छे विषय पर ध्यान खींचा।
..... आँखे यह वृत्तान्त पढ़ कर नाम हो आयी हैं -मनुष्य सचमुच विधाता की कितनी श्रेष्ठ कृति है ! उसमें भावनाएं ,परोपकार ,कृतज्ञता कूट कूट कर भरी हुयी है ! इस पोस्ट के लिए आपका बहुत आभार !
संवेदनाएं या तो खत्म होती जा रहीं हैं ,या फिर धन प्राप्ति की दौड़ ने हमारी संवेदनाओं को लील लिया है जो भी हो आज सुख -दुःख में सहभागिता मानव का पहला धर्म होना चाहिए .आपका लेखन लोंगों को अवश्य इस दिशा में सोचने पर विवश करेगा .
बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास।
इस पोस्ट के लिये आप मेरी तहेदिल से बधाई कबूल करें , बहुत ही प्रसंशनिय पोस्ट.
रामराम.
बहुत ही सही बात आप ने लिखी है कि हम सब सहानुभुति भुलते जा रहे है... सिर्फ़ ओर सिर्फ़ अपने बारे मै ही ज्यादा सोचते है...
धन्यवाद
किसी की मुस्कुराहटोँ पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल मेँ प्यार,
जीना उसीका नाम है ..
कितनी अच्छी बात पर आज आपने ध्यान दिलाया है आभार !
- लावण्या
:-)