मै मेरी पत्नि के साथ शादी नही करना चाहता । दुबार मेरी पत्नी के साथ शादी के डर से पहाडो मे जाकर छुप के प्यार का इजाहर करना चाहता हु जहॉ (प्रमोद मुतालिक) नाम का डाकु ढुढते रह जायेगा।
मै गुलाबी रन्ग देख के घबराने लगता हु। शाम को दफ्तर से लोटते समय तब बिल्कुल ठीक रहता है। नार्मल हो जाता हु। लेकिन सुबह ऑफिस के लिये निकलते समय पत्ता नही मुझे क्या हो जाता है- जैसे मुझे कसाईखाने मे ले जाया जा रहा हो। कही भी गुलाबी रन्ग देखते ही मेरी घिग्घी बन्घने लग जाती है।अपनी गुलाबी टाई मुझे फन्दे जैसी लगने लगती है। इस रन्ग के शर्ट से मेने तोबा कर ली है। बेडरुम के पिन्क पर्दे बदल दिये है।कार का कलर चेन्ज कराने का सोच रहा हू। और बालकानी मे लगे गुलाब के पोघे को टोटके की तरह पडोसी को गिफ्ट कर दिया है। मै वेतन भोगी युवक हु।
बेहद मेहनती और अनुशासित। दफ्तर मे हर मोर्चे पर दोनो हाथ जोडे एक खुर पर खडा रहता हु। हमारे वेतन भोगी को रोमान्टिक होने का नैतिक अधिकार नही होता है। तीस दिन के बाद तो हमे चॉन्द दिखाई देता है ओर वह भी दो हफ्ते के भीतर लघु तर होता हुआ लुप्त हो जाता है।फिर ईन्तजार कि राते।
चोर छिपे जब भोर भए, अरु मोर छिपे रृतु फागुन आए>>।" भोर हुई और फागुन भी आ गया, पर ना जाने क्यो, लाल और गुलाबी रन्ग मुझे नही सुहाता। पत्नी ने सोचा शायद कोई चिन्ता लग गई हो।
कई रोज से पत्नि जिद्द कर रही है वैलन्टाइन डे के दिन जुहचोपाटी पर जायेगे। वहॉ पर जाकर रेत मे बैठकर वो मेरे से गुलाबी फुल के साथ प्यार का पुन इजाहर करना चाहती है। उस दिन मेरी पत्नि का जन्म दिन भी है।
गुलाबी फुल देना ? इस बात पर तो मेरे तोते उडने लग गये । क्यो कि बेचारी को पता नही है प्रमोद मुतालिक श्री राम सेना के सेनापती वेलन्टाईन डे पर शादि करायेगे जो भी लडका लडकी साथ मे दिखेगे।(चट मगनी पट्ट ब्याह) वो ताड से शादिया करा देगे। कोई साया नही निकलेगा। कोई जन्म पत्री नही देखी जायेगी। कोई ग्रह नक्षत्र गोत्र नही देखे जायेगे, और मै मेरी पत्नि के साथ शादी नही करना चाहता । दुबार मेरी पत्नी के साथ शादी के डर से पहाडो मे जाकर छुप के प्यार का इजाहर करना चाहता हु जहॉ (प्रमोद मुतालिक) नाम का डाकु ढुढते रह जायेगा।
प्रेम का महादिवस यानी वैलन्टाइन डे आ गया। मुझे देख कर सन्त वैलन्टाइन की आत्मा दुखी होगी। कही भगवा रन्ग वालो ने तो मुझे आन्तकित नही कर रखा है ?
फिर नागार्जुनकी एक कविता याद आ गई- रुस कि नाक लाल , चीन कि देह लाल। लिखते लिखते बाबा यह भी लिख गये है कि - छोकरे कि टाई लाल, छोकरी के गाल लाल। क्या बाबा यह नही जानते थे कि गाल गुलाबी होते है, लाल नही। क्या गुलाबी का खोफ उन जैसे फक्कड कवि पर भी हावी था। यह कोई रहस्य है या गुलाबी कलर का अपमान ? इस रन्ग पर दुसरो ने भी बहुत अनयाय किया है। या तो उस पर लुट ही पडे या फिर उसी के सहारे दुसरो को लुट लिया।
इस कमबख्त आर्थिक स्लोडाउन ने ही मेरा यह हॉल किया है कि गुलाबी रन्ग देखते ही घिग्घी बन्घ जाती है।
२५ हजार कि गुलाबी पगार पहले ही १५ हजार हो गई है चेहरा लाल सुर्ख तो देख ही रहे है फिर गुलाबी गाल कैसे गुलाबी रह सकते है।
बल्टियान बाबा की जय हो. शायद पूरा कुआं ही भांगमय हो या है.:)
सुंदर पोस्ट.
रामराम.
bahut lajawab.
gar kabhi waqt mile to mere blog par aayen.
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पता नहीं कि बाल्टियाना-बाबा क्या क्या गुल खिलायेंगे !!
सस्नेह -- शास्त्री