चाय कि केतली बनी ११ लाख की देवी

Posted: 16 दिसंबर 2008
चिट्ठाजगत
क लावारिस पत्थर मे भी आस्था के फुल खिलाया जा सकता है इस बात को सत्य घटित होते हुऐ मेने उसे साकार रुप दिया। पिछले चार वर्षो से मै CTUP MUMBAI नामक सस्था के मन्त्री के रुप मे काम कर रहा हु। इस सस्था मे हमारे पेतृक गॉव के 150 परिवार के 1000 लोग सद्स्य है। तेरापन्थ जैन धर्म एवम आचार्य महाप्रज्ञजी के विभिन्न कार्यो मे सामुहीक रुप से भाग लेने अथवा धार्मिक, सामाजिक गतिविधयो मे योगदान हेतु सस्था कि स्थापना 19 फरवरी 2005 को मुम्बई मे कि गई । सस्था प्रति वर्ष जहॉ भी आचार्य महाप्रज्ञजी का चातुर्मास होता है वहॉ, दर्शनार्थ मुम्बई से सघ का आयोजन करती है। अहमदाबाद (गुजरात), भिवानी (हरियाणा), महरोली (नई दिल्ली), सिरियारी (राजस्थान), उदयपुर (राजस्थान), इसबार जयपुर कि यात्रा का आयोजन कर चुकि है। इसके अलावा आचार्य महाप्रज्ञजी का अवदान जिवन-विज्ञान विभीन्न स्कुलो मे सस्था द्वारा कक्षा 1 से 8 तक शिक्षा मे सम्मिलित करवाकर प्रायोजित किया जा रहा है इस समय मे विभीन्न स्कुलो मे सैकडो बच्चे जिवन विज्ञान शिक्षा को ग्रहण कर रहे है। हमारी सस्था इसके अलावा शिक्षा के अलावा कम्पुटर सेट, नोट बुक, टेबल कुर्सी , खेलने का समान भी अपने विवेक से प्रदान करती है।
ह सब तो ठिक है मजे कि बात तो यह है कि इस बार 30 oct।2008 को आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के दर्शन हेतु जयपुर जाने का कार्यकम सुनिश्चत किया। सदस्यो को सुचित किया गया कि 30 oct.2008 से 04 Nov 20087 को गुरु दर्शन हेतु जयपुर यात्रा का आयोजन किया गया है अतिशिघ्र अपने परिवार के सदस्यो का नाम दे ताकि ट्रेन मे आरक्षण हो सके। दो चार दिन मे ही 103 यात्रियो के नाम आ चुके थे। आवास- प्रवास हेतु अलग अलग व्यवस्थापको कि नियुक्तियॉ कर दि गई।
मेरे जिम्मे था मच सचालन, एवम सस्था की त्रिमासिक मेगजिन चाणोद-दर्पणा का प्रकासन करना।
मेरी पत्नि को कार्य मिला था सास्कृतिक कार्यकर्मो को विभीन्न आयु वर्गो के हिसाब तैयार करवाना।
मुम्बई मिटीग मे सस्था सदस्य जयप्रकाशजी को कहा गया कि आपके घर से 100 कप चाय वाली केतली लेकर आना ताकि ट्रेन मे चाय देने को काम आऐगी। तब उन्होने कहा रोज रोज चेम्बुर घर से उठा कर लाने मे तकलिफ होती है, सस्था को नई केतली खरीद लेनी चाहिये। निर्णय लेकर सस्था के अन्य सदस्य गोतमजी को नई चाय कि केतली लाने को कहा गया। (गोतमजी के भुलेश्वर मुम्बई मे स्टील की दुकान है।)
30 oct.2008 मुम्बई सेन्ट्र्ल से शाम 7 बजे जयपुर सुपरफास्ट से रवाना हुऐ। दुसरे दिन दोपहर को गुलाबी नगरी पहुच गये। वहॉ से बस द्वारा हमारे निवास के लिये आरक्षित अग्रवाल भवन मे पहुचे। दस रुम और दो बडे हॉल मे हम सभी रुके। हमारा अपनी केटरिग व्यवस्था थी। क्यो कि हमे यहॉ चार दिन ठरना था। यही पर खाना नास्ता बनता था। आचार्य महाप्रज्ञजी जी का चातुर्मासिक स्थल अणुविभा केन्द्र यहॉ से 1 km दुर था। हमने जयपुर पहुचते ही गुरुदेव के दर्शन हेतु गये। हजारो लोग कतार मे थे। उसमे हमारी सस्था CTUP के 100 लोग भी थी। कतार आगे बडती गई हमारा नम्बर आया हमे सेवा दर्शन का 15 मिनट का समय दिया गया। मेने मच को सम्भाला और गुरुदेव कि तरफ मुखातिब होते हुऐ सस्था सदस्यो का सस्था के कार्यो का विवरण पेश किया।
चार्य महाप्रज्ञजी जी ने कहा ctup के कार्यकर्ता धर्म सघ एवम गुरु के प्रति निष्टावान है। सामाजिक क्षेत्र मे भी अच्छा कार्य कर रहे है।"
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पिस आवास स्थल अग्रवाल भवन पहुचे। सभी ने खाना खाया सबसे पहले महिलाओ ने एवम बच्चो ने खाना खाया। उसके बाद हम सभी हॉल मे एकत्रित हुऐ।
गोतम भाई ने नई नवली चाय केटली कि बात छेडी। अभी तक सिल पेक थी। उसके उपर का फुटे का कवर ज्यो का त्यो था। मैने कहॉ कि चाय कि केटलि कि मोहर्त बोली लगाई जाये जो भी २१००/ या २५००/ रुपया आयेगा तो सस्था को फायदा होगा। और जो सबसे ऊची बोली लगायेगा उस सदस्य का नाम या उनके माता पिता का नाम अकित होगा। मैने कहा -" जो भी भाग्यशाली होगा वो ही ईस पर अपना या अपने पुर्वजो का नाम लिखा पायेगा। व्यक्ति ससार से चला जायेगा किन्तु यह नाम अमर हो जायेगा। यह केटलि कई वर्षो तक सस्था कि यात्राओ मे चाय पिलाती रहेगी। तब लोग दानदाता को याद याद करते रहेगे।
भी लोगो मे उत्साह का सचार करना मेरा मकसद था। लोगो मे जोश चढ आया। प्रकाश भाई १०१ से बोली चालु कि। किसीने ५०१, फिर महेन्द्र ने direct Rs11000/ .कि बोलि लगाई लोगो ने सोचा नही था कि 1500/ कि चाय की केतली 11000/ कि बोली मे चली जायेगी। लोगो मे जोश हिलोरे खाने लगा। बिच बिच मे मै बोलता रहा आप अमर हो जायेगे इस पर नाम मेरी बात आग मे घी का कार्य किया। अशोक कोठारी ने Rs, 13,313/ कि बोलि लगाई (तेरह का अक हमारे मे शुभ मानते है) मेरे बडे भाई राजेन्द्रजी सुरत ने 35000/ कि बोलि लगाकर लोगो को केतलि कि शक्ति का अभास होने लगा। केतलि कि महिमा फैलने लगी। दिनेश 51000 / - प्रकाशजी 55000/
दिनेश फिर से 81000 / लोग भोचक्के रह गये। अब यह महज 1500/ कि चाय की केतली नही रही अब तो महिमा मण्डित केतली-देवी के रुप मे प्रतिष्टित हो हो गई। रात के 11:30 बज रहे थे लोगो का उत्साह बड रहा था।
मैने आव देखा न ताव मोके का फायदा उठाकर केतलि-माता को शॉल ओडा दि एवम माला पहना कर लोगो मे केतलि-माता के प्रति आस्था कि नीव ओर गहरी करने कि कोशिश कर रहा था। मैने कहा बोलो "केतली-देवी कि जय" पुरा अग्रवाल भवन जय जयकारो से गुजित था। सदस्यो के बढते उत्साह को देख मेरे मन मे आया कि केतलि देवी कि बोली को थोडे समय रोक कर सस्था के दुसरे खर्चो के लिये भी धन ईकठा किया जाये।
मुम्बई मे सम्मेलन के लिये मोतिलालजी ने 255000/
ओर भिकमचन्दजी ने 105000/
कुल 360000/रुपया एकत्रित हुऐ।
अन्य कार्यकर्मो के लिये सदस्यो द्वारा 415025/ रुपया एकत्रित हुऐ।
केतलिदेवी कि बोलि फिर से शुरु कि गई।
केतलि देवि पर नाम लिखाने के लिये बोलि फाईनलि प्रकाश़जी ने 101000/ मे ली।
अब तक आठ लाख 76 हजार सस्था की झोलि मे आ गये थे। एक महज चाय कि केतली कि महिमा मण्डित करके लोगो को उत्साहीत करने का कार्य मेने किया वो ठीक था या नही पर मैने सामाजिक सेवाओ के अन्तर्गत इस कार्य को पुरा किया। पर मेरे मन मै एक टीस थी मैने सोचा एक लाख देनेवाले के पुर्वजो का नाम एक चाय कि केतली पर नाम लिखाना उचित सम्मान नही लगा। अत मेरे दिमाग मे ओर आईडियॉ आया । अध्यक्ष से सलाह करके लोगो कि भावनाओ का आदर करते हुऐ केतलीदेवी पर जो नाम लिखने वाले थे वो अब सस्था के चाणोद भवन मे एक नया कमरा निर्मित कर के प्रकाशजी मोहनराजी का नाम सुनहरे अक्षरो मे लिखा जायेगा यह घोषणा करते ही अशोक ने एक लाख चाणोद भवन के लिये देने कि घोषणा कि, तुरन्त ही अमृतजी ने भी ईक्कावन हजार चाणोद भवन के लिये देने कि घोषणा कि। अब तक कुल दस लाख 28 हजार सस्था के खाते मे मेने झोड दिये थे।
वा तीन बजे थे। लोग -बाग चाय पि रहे थे। मैने लोगो कि आस्था के प्रति अपना सम्मान दर्शाते हुये एक बार जोर से बोला -
" बोलो, केतली-देवी की-जय हो।"


2 comments:

  1. Unknown 16 दिसंबर, 2008

    bahut khub rahi...chaliye ye sab aapne samaaj seva ke liye kiya yeh jaankar kaafi khusi hui...

  2. नवनीत नीरव 20 दिसंबर, 2008

    aapka prayas achha hai.asha hai aage bhi aap ise niyamit rakhenge.
    Dhanywad

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