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Posted: 10 सितंबर 2008
नमस्कार॥ प्रिय मित्रो,कुछ समय से मैं सोच रहा था कि ब्लॉग की दुनिया का मैं भी एक हिस्सा बनू ! गहन अध्ययन किया, कई विचारधाराओ को पढ़ा, सैकडो पन्नो को देखा, कई प्रकार के ब्लोगों को विस्तार से पढने का प्रयास भी किया ! प्रत्येकब्लोग्कर्ता ने अलग अलग विषयों को चुनने की ईमानदारी से कोशिश की, ऐसा मैंने पाया ! सैकडो "ब्लॉग-चैनल" कई पहलु लिये हुए थे, उदाहरण के लये, चुटकले, मनोरंज, व्यंग, आत्म-कथा, गपशप, कविता, गजल, समाचार-जगत पर टिका- टिपण्णी, या किसी को बधाई, सभी ने अपनी शक्ति एवं ज्ञान अनुरूप ब्लॉग जगत के श्रावको को मनोरजन के साथ ज्ञान-वर्धक बातें बताई ! मुझे अच्छा लगा !आपके आशीर्वाद से मैने फ़ैसला किया हैं, की मैं कुछ अलग, कुछ नया, धार्मिक आध्यात्मिक एवं महापुरुषों के विचारो, उनके मार्गदर्शनों एवं कुछ घटनाओं के माध्यम से मेरे पाठको का मानसिक , शारीरिक, धार्मिक, मनोबल मजबूत करने आ रहा हूँ!भरपूर उर्जा, उत्साह एवं सरल भाषा मैं मेरा ब्लॉग "हे प्रभु यह तेरापथ" पूर्णतय सत्य, अहिंसा, जीवन-विज्ञानं, प्रेक्षा-ध्यान द्वारा अपने दर्शको को अवगत कराने का प्रयास करता रहूँगा !जैन धर्म के २४ वे तीर्थंकर भगवान महावीर ने २५०० वर्ष पूर्व जो बाते कही वो आज के युग में सार्थकता लिये प्रतीत होती हैं! भगवान महावीर के बाद भी जैन संप्रदाय में महापुरुषो ने जन्म लिया और उन्होने मानव जाती के लिए कई कल्याणकारी संदेश प्रस्तुत किए! जो आज के युग में प्रासंगिक हैं! अहिंसा -अपरिग्रह, और आपसी प्रेम भाई चारे की जो मिसाल भगवान् महावीर ने पेश की वो मार्ग जैन तेरापंथी आचार्य श्री भिक्षु ने ठीक २५० वर्ष पूर्व साधू जीवन में (तब केवल मुनि भिकन थे) बड़ी बड़ी तकलीफों को सहा , घोर विरोधो एवं कष्टो का सामना किया ! तब उन्होंने भगवान महावीर के बताएं मार्गः को अपनाया और आज वो महामना लाखो लोगो के आराधीय बने ! आचार्य श्री भिक्न्जी (भिक्षु) रहस्यमय पुरुष थे ! अनेक लोगो की धारणा हैं, की उन्होंने वेसा कहा हें , जो पहले कभी नही कहा गया! उनके विचारो में विश्वास न रखने वाले कहते है --"उन्होंने ऐसी मिथ्या धारणाऐ फेलाई है जो सभी धर्मो में निराली है !"उनके विचारो में विश्वास रखने वाले कहते है -" उन्होंने वह अलोक दिया है ,जो धर्म का वास्तविक रूप है!" इसमे कोई शक नही की वे आलोकिक पुरुष थे !उनका तत्व - ज्ञान और उनकी व्याखयाऐ आलोकिक है ! आचार्या भिक्षु ने यह सूत्र प्रसतुत किया- "अहिंसा के साधन उनके अनुकुल हो तभी उनकी आराधना कि जा सकती है, अन्न्य्था वह हिसा मे परिणत हो जाती है!॥>>>>>> भिक्षु विचार -दर्शन कव्य रचना, व्याकरण, न्यायसशास्त्र, सिध्दान्त,बीज-शास्त्र ,ज्योतिष- विधा मे निपुण अनेक आचार्य होते है, किन्तु चारित्र मे निपुण हो वैसे आचार्य विरले होते है! आचार्य श्री भिक्न्जी उन विरले आचार्यो मे थे ! उन्होने चारित्र शुध्दि को उतना मह्त्व दिया जितना देना चाहिए! ज्ञान, दर्शन -चारित्र ईन्ह तीनो कि आराधना ही मुक्ति का मार्ग है! परन्तु परिस्थिति वश किसी एक को प्रधान और दुसरो को गोण करने कि स्थिति आ जाती है!
आचार्य श्री भिक्षु ने ऐसा नही किया! वे जीवन भर ज्ञान कि आराधना मे निरत रहे और उनका चारित्र शुध्दि का घोष ज्ञान- शून्य नही था! क्रमश॥॥॥॥॥ दोस्तो, जल्दी ही आपके सामने विस्तार पुर्वक प्रस्तुति पेश करने आ रहा हू! आप अपना मत वचार जरुर दे! मेरी हिन्दि मे अगर कोई त्रुटि हो तो माफ कर देना,
आपका प्रिय 

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