हिन्दुस्थान सहित कई गरीब मुल्को में आज भी जाति के अनुशार लोकव्यवहार में भेद-भाव दर्शता है . शहरों कों छोड़ दे तो बदस्तूर यह प्रथा आज भी गावो में धडल्ले से चल रही है ! शिक्षित ओर क्या अशिक्षित सभी ऊँची जाति का होने का दम्म भरते है, ओर छोटी जातियों के लोगो के वास्ते हीनता के भाव साफ़ झलकते है. इस सन्दर्भ में मुझे आज आचार्य कृपलानीजी का वह वाक्या याद आया जिसका यहा जिक्र करना जरूरी समझता हू !
एक बार क़ी बात है कि आचार्य कृपलानी रेल यात्रा के रहे थे . डिब्बे में भद्र महिला उनके पास बैठी थी . उस महिला ने कृपलानी जी से पूछा लिया -" श्रीमानजी ! आप किस जाती से है ?
कृपलानिजी एक क्षण सोच कर बोले -" बहिन ! मै जब सुबह सों कर उठता हू तो हरिजन जाती का होता हू फिर ब्राह्मण जाति का, फिर वैश्य जाति का ओर रात के समय में क्षत्रिय जाति का होता हू .
बहिन असमंजस में पड़ गई . उसने अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु फिर पूछा -" महोदय ! मै कुछ नही समझ सकी , आप बात कों जरा स्पष्ट करे . "
कृपलानी ने कहा -" सुनो बहिन! सुबह उठते ही मै अपने शरीर क़ी शुद्धि करता हू , उस समय मै एक हरिजन होता हू . शरीर शुद्धि के बाद मै पूजा-पाठ में बैठता हू , उस समय में एक ब्रहामण बन जाता हू . पूजा पाठ के बाद नास्ता एवं आवश्यक काम सम्पन्न करके मै व्यवसाय में लग जाता हू उस समय मै एक वैश्य होता हू . रात में अपने घर क़ी सुरक्षा का दायित्व सम्भालता हू , उस समय एक क्षत्रिय होता हू. इस तरह चारो ही जातिया मेरे में सन्निहित है .
कृपलानी का यह जीवनप्रसंग कितना ह्रदयस्पर्शी है .
गंदगी साफ़ करने के कारण अगर हरिजन घृणास्पद है तब तो सारी माँऐ घृणास्पद बन जाएगी क्यों कि हर माँ अपने बच्चे कि गंदगी साफ़ करती है. हमारे शरीर में कही कोई प्रकार क़ी गंदगी होती है, एक क्षण भी विलम्ब किये बिना उसे साफ़ करते है .
क्या हम स्वय दुसरो के प्रति घृणास्पद नही बन जाते है..?
आचार्य कृपलानी हमारे देश के मूर्धन्य चिंतक थे . व्यक्ति जाति से नही, घृणित कार्यो से घृणा के पात्र होने चाहिए . मै कृपलानी जी के इस प्रसंग से काफी प्रभावित हुआ ओर लोकहित मै इस ब्लॉग पर प्रसारित कर रहा हू
महावीर बी सेमलानी "भारती "
आचार्य कृपलानी एक परिचय
आचार्य कृपलानी खुद एक समाजवादी नेता थे एवं सुचेता कृपलानी के पति !
सुचेता कृपलानी को देश की पहली महिला मुख्य मंत्री थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद करीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई।
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बहुत आभार इस वृतांत को जनहित में प्रसारित करने का.
व्यक्ति जाति से नही, घृणित कार्यो से घृणा के पात्र होने चाहिए .
-बिल्कुल उचित सलाह!
इस प्रकार के प्रसंग अबोधता के संग से निजात दिलवाने के लिए सराहनीय प्रयास हैं। सहज बोध जागृत होना ही चाहिए।
आचार्य कृपलानी जी के संस्मरण का सुंदर प्रस्तूतिकरण
बहुत सुंदरतम.
रामराम
वाह सही कहा जी, जाति तो एक पहचान होती है, उस से घृणा केसी?
अगर मैं लूट-खसोट कर नहीं कमाता, जितनी आय हो उसके एवज में उससे अधिक या बराबर काम करता हूं, किसी के साथ दुर्व्यवहार करना मेरा सहज स्वभाव नहीं, अपनी सामर्थ्य भर मदद के लिए तत्पर रहता हूं और अपने संस्कारों की आजादी के नाम पर दूसरों की आजादी में दखल नहीं देता - तो मेरी जाती से किसी को क्या फर्क पडता है?
पडता है - वोट किसे दूंगा, यहाँ अनुमान लगाने वाले आएंगे और उनके समीकरण गडबड होने लगेंगे - तो वे जाति का पता काबा तक लगाएं...