हमे महिला और पुरुष में कोई मतभेद नही करना चाहिए, वे सिर्फ शारीरिक रूप से अलग है. बापूजी कि बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी पहले थी. आज भी हमारे समाज में महिलाए कई तरह के भेदवाव का शिकार होती है. मै बापू के विचारों कों एवं उनके अर्थो कों घटनाओं के रूप में देखता हू . बापू के शब्दों में -" पत्नी, पति की कोई गुलाम नही बल्कि एक साथी और मददगार है. वह पति के सुख दुःख की बराबर कि भागीदार होने के साथ साथ अपने रास्ते खुद चुनने के लिए भी स्वतंत्र है."
स्त्री- जीवन के समस्त धार्मिक और पवित्र घरोहर क़ी मुख्य संरक्षिका है. इसका सीधा-सा अर्थ है क़ी औरत इंसानियत गढ़ती है. उसके व्यक्तित्व में प्रेम, समर्पण, आशा और विशवास समाया हुआ है. खासकर यदि हमे एक अहिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं क़ी क्षमता पर भरोसा करना जरूरी है. सबसे पहले तो स्त्री कों अबला कहना अपराध है . यह अन्याय है. यदि शक्ति का मतलब बर्बर शक्ति है, तो अवश्य ही स्त्री पुरुष क़ी अपेक्षा कम बर्बर है. यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है, तो स्त्री पुरुष से कई अधिक श्रेष्ठ है. यदि हमारे अस्तित्व का नियम अंहिसा है तो भविष्य स्त्री के हाथ में है .
नारियो का संसार केवल घर तक सीमीत क्यों ? यह प्रश्न मेरे दिल में कई बार उठता है . रुढ़िवादी समाज में महिलाओं क़ी घुटन कों आजदिन तक हम लोग एवं हमारा समाज समझ ही नही पाया इसका मुझे मलाल है . आचार्य महाप्रज्ञजी चाहते है क़ी हर स्त्री अपना जीवन सम्पूर्णता से जिए . उन्होंने इस बात क़ी पुर जोर वकालत क़ी कि महिलाओं कों सिर्फ चूल्हे चोके तक ही सीमीत नही रहना चाहिए . वे महिलाओं क़ी शिक्षा के भी प्रबल समर्थक है. इसलिए उनके अथक प्रायसो से दो दशक में तेरापंथ समाज क़ी महिलाओं में जोरदार परिवर्तन देखने कों मिला. घुघट-प्रथा , दहेज-प्रथा, पल्ला-प्रथा, जैसी कुरीतियों को समाज से खत्म करवाया बल्कि घर परिवार को संभालते हुई तेरापंथी समाज की नारिया देश एवं समाज में कई उच्च पदों पर आसीन है.
आचार्य श्री ने समाज में व्याप्त रूढ़ीवाद एवं कुप्रथा को खत्म करने तक सिमित नही रहे वे अपनी साध्वी एवं श्रमणी समाज कों भी उच्च स्तरीय शिक्षा दे रहे है. अब तेरापंथ समाज क़ी साध्वीया- श्रमणी उच्च शिक्षा प्राप्त होती है. ..कोई साध्वी डाक्टरेट है तो कोई प्रोफेसर तो कोई लेक्चरार तो कोई कुलपति . साध्वी एवं श्रमणीयो के सांसारिक जीवन से त्याग करने के बाद शिक्षा-दीक्षा अनिवार्य कर देना इसके पीछे आचार्य श्री ने महिलाओं की कार्य क्षमता को पुरुषो से अधिक समझा है.
इस बात का उल्लेख करना महज सन्दर्भ नही माना जाना चाहिए .इस बात से मेरा उद्देश्य साफ़ है उच्च शिक्षा का यह कतई मतलब नही की आप (नारी/ पुरुष) मर्यादाओं को लांघ कर संस्कार संस्कृति को तिलांजली दे व "मेन एंड वुमन पावर" की प्रतिशप्रद्धा के चक्कर में कही हमारा बेडा गर्ग ना हो जाए . समाज एवं घर परिवार की बनाई व्यवस्थाओं में विघ्नह ना पड़े .... इस बात का ख्याल रखा जाए. सरकार समाजिक व्यस्थाओ का सचालन नही करती है... ना ही सरकार को नैतिकता अनैतिकता की चिंता रहती है . नारी-पुरुष की समानता का कोई प्रकार से विरोध नही होना चाहिए. बस अपेक्षा मात्र इतनी सी है की नारी वर्ग समानता-असमानता के चक्कर में ना फसकर अपने दायित्वों को भली भाति से समझे व निभाए. एवं एक सुंदर घर परिवार एवं संसार के निर्माण में अपनी शक्ति को लगाए. .....
आप सभी महिलाओ को प्रणाम करते हुए वुमन डे पर मंगल कामनाए शुभकामनाए .
महावीर बी सेमलानी
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Shashakt Aalekha....Dhanywaad!
बेहतरीन आलेख...
विश्व की सभी महिलायों को अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत सुन्दर और रोचक आलेख आभार....
regards
bahut sargarbhit aur anupam aalekh.......
badhaai !
dehnyavaad !
bahut hi sashakt lekhan..........purush aur nari dono hi ek doosre ke poorak hain aur dono ke bina kuch bhi sambhav nhi hai sirf itna dhyan mein rakhakr aage kadam yadi badhaya jaye to ek swasth samaj ka nirman sambhav hai.
naaari ki sthiti tbhi sudhar saktihai, jab har stri doosri ki ijjat kre..."janni"par mene kuchlikha hai.on prars.blogspot.com
मुझे एक कथ्य याद आ रहा है " एक पढ़ी लिखी स्वस्थ विचारों की लड़की एक सभ्य समाज का निर्माण करती है......बिलकुल सत्य है ये पर इसका ये मतलब कदापि नहीं की यथाकथित नारीवाद का झंडा लेकर निरर्थक घूमा जाये और बिना वजह की बहस की जाये...बहुत अच्छा लगा आपका लेख..