पर्यूषण पर्व एक आलोकिक पर्व है. इसकी आराधना विधि भी आलोकिक है. पर्यूषण पर्व आने से पहले ही लोगो मे नई चेतना का जागरण होने लगता है, जो जीवन मे चालू व्यवहारो से हटकर कुछ नया सोचने व करने की प्रेरणा देता है. वर्तमान जीवनशैली सुविधा एवम स्वार्थ प्रधान है, वहॉ यह पर्व प्रदर्शन से दूर रहकर आत्म-दर्शन की बात बतलाता है. पर्यूषण पर्व आते ही अबाल, वृद्धो मे नया उत्साह जागृत होता है. साधाक गण प्रवचन श्रवण एवम आध्यात्मिक उपासना करते. यही इस पर्व की अलोकिकता है.
जैसे मन्त्रो मे नमस्कार महामन्त्र, तीर्थो मे शत्रुन्जय पर्वत,रत्नो मे चितामणी रत्न, केवलज्ञानी मे तीर्थकर सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, वैसे ही पर्वो मे पर्यूषण पर्व सर्वोत्तम है. इसे पर्वो का राजा पर्वाधिराज भी कहते है. सवत्सर वर्ष मे एक बार मनाने के कारण इसे "सवत्सरी" पर्व भी कहते है .
पर्यूषण का अर्थ - आत्मा के परिपार्श्व मे रहना. जो अपनी आत्मा के परिपार्श्व मे रहना सीख लेता है वही वीतरागता की साधना मे सफ़ल हो सकता है. राग-द्वैष से उपरत होते ही ईर्ष्या और घर्णा मे परमाणु बिखर जाते है, नष्ट हो जाते है. भगवान महावीर चातुर्मास मे पचासवे दिन स्थिरवासी बने और पर्यूषण मनाया. पचमी को सवत्सरी का दिन स्थापित करने के पर्यूषण पीछे एक मनोविज्ञान भी है.
पर्यूषण पर्व महापर्व के रुप मे प्रतिष्ठित है. पहले यह पर्व एक दिन मनाया जाता था. बाद मे इसकी अराधना मे सात दिन और जोड दिये गये. जो विकास समान परम्परा का घोतक है. यह कब और कहा से आरम्भ हुआ , अन्वेषण का विषय है. किन्तु इतना जरुरी है की आठ दिन मनाने की परम्परा उत्तरवर्ती आचार्यो ने की है. भावी पीढी के लिए उन्होने इस विस्तार क्रम को अति आवश्यक समझा तथा आठ दिन की परम्परा के पीछे अनेक कारणो मे एक कारण यह भी हो सकता है कि यह पर्व आत्म शुद्धि का प्रेरक है. गुरुदेव श्री तुलसी ने इन आठ दिनो को विशेष साधना की दष्टि से आठ विषय जोड दिए. जप, स्वाध्याय, घ्यान, मोन, सामायिक, आदि की साधना तथा कुछ नियम जो सवर धर्म की पुष्टि करते है.
पर्यूषण पर्व के आठ दिनो मे जैन लोग ससारिक कार्यो से यथासम्भव निवृत होते है. स्वाध्याय, घ्यान,जप तप, की आराधना करते है. इन दिनो भगवान महावीर के जीवन दर्शन को पढा जाता है जीया जाता है. आठ वे दिन सवत्सरी महापर्व के दिन करोडो व्यक्ती एक साथ उपवासव पोषण के साथ निश्चित होकर धर्माअराधना करते है. स्थान स्थान पर आचार्यो,साधू-साध्वीयो,समण-समणीयो व उपासको की प्रवचन मालाऎ होती है. महापर्व की महत्ता को समझकर कभी नही आने वाले व्यक्ती भी आत्मोन्मुखी बन जाते है.
रात्रि मे सवत्सरी प्रतिक्रमण करते है. नवे दिन मैत्री पर्व के रुप मे मनाया जाता है.
उस दिन मन मे जमी हुई मनोमालिन्य की परतो को उतारकर पुरे हलकेपन के साथा क्षमा-याचना (खमत-खामणा)(मिच्छामी दुक्डम) की जाती है. क्षमायाचना यानी वर्ष भर मे जाने अनजाने मे हुई भूलो को स्वीकार करना. यह कलह एवम बैर निवारण का अचूक मन्त्र है. भगवान महावीर का सन्देश मानवता का सन्देश है. यदि इसे सम्पुर्ण मानव जाति स्वीकार कर ले तो अनेक समस्यायो का निवारण समाधान सहज ही हो जाए. मैत्री पर्व को मनाने की परम्परा केवल जैन समाज मे ही प्रचलित है, पर यह पर्व यदि राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाऎ तो हिन्सा, आतक, आपसी बैर भावकी सम्स्या स्वत: समाहीत हो सकती है.
तेरापन्थी एवम स्थानकवासी "सवत्सरी" पर्व को २४ अगस्त को मनाऎगे
मुर्तीपुजक सम्प्रदाय २३ अगस्त को "सवत्सरी" पर्व को मनाऎगे
दिगम्बर सम्प्रदाय श्वेताम्बर सम्प्रदाय के "सवत्सरी पर्व के दस दिन बाद मनाते है.
"सवत्सरी" पर्व के दिन समस्त भारत के कत्लखानो को बन्द रखवाया जाता है (भारत सरकार- राज्य सरकारो के निर्देश अनुसार)
साध्वी श्री कनकरेखा जी
शिष्या आचार्यमहाप्रज्ञजी
लेख प्रस्तुति हे प्रभू यह तेरापन्थ
शिष्या आचार्यमहाप्रज्ञजी
अच्छी जानकारी मिली. हमारे जैन दोस्त इस पर्व पर क्षमा याचना करते हैं. अब इस जानकारी के बाद हम भी करेंगे.
बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
आज ही दस दिनों की टेक्सस यात्रा से लौटा. अब सक्रिय होने का प्रयास है.
अब लगातार पढ़ना है, नियमित लिखें..
सादर शुभकामनाऐं.
बहुत सुंदर जानकारी दी आपने.
रामराम.
खम्मत खामणा करने फिर आयेगें..
बहुत ही सुन्दर जानकारी!! क्षमा याचना की इस परम्परा के बारे में जाना!
आभार्!
संवत्सरी पर्व पर सब जीवों से क्षमा याचना करते हुए
" मिच्छामी दुक्कडम "
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
ओह, मुझे रतलाम में जैन मित्रों के साथ पर्यूषण के दिन याद हो आये।
It's hard to find knowledgeable people on this topic, however, you sound like you know what you're talking about!
Thanks
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