
तुम योग्य हो
भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यो से पुछा- तुम धर्म प्रचार के लिए जा रहे हो. तब कोई गालिया देगा तो क्या करोगे ? "हम सोचेगे, गालिया ही तो दी, पीटा तो नही."
यदि कोई पीटेगा, तब तूम क्या करोगे ?"
"हम सोचेगे, पीटा ही तो है, प्राणो से तो नही मरा."
कोई तुम्हे प्राणो से ही मारेगा तब तुम क्या करोगे?
"उन्होने हमारे प्राण ही तो लूटे, हमारा धर्म तो नही लूटा."
भगवान बूद्ध ने कहा-"तुम धर्म प्रचार के योग्य हो.
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महाप्रग्य की कथाऎ-2

तर्क का चमत्कार
अदालत मे चोरी का केस चल रहा था. चोर के वकील ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा-"जज महोदय! चोरी तो हाथ ने की है, इसलिए समूचे शरीर को क्यो दण्ड दिया जाए ?"दण्ड उसीको दिया जाए जिसने यह चोरी कि है. इसलिए दण्ड का भागी हाथ है, न कि शरीर."
न्यायाधीश को तर्क अच्छा लगा. उसने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा-" मै वकील के इस तर्क को स्वीकार करता हू और हाथ को दण्ड देना चाहता हू. जिस हाथ ने चोरी की है, उसे दस वर्ष के सश्रम कारावास की सजा भुगतनी पडेगी."
तत्काल चोर आगे आया और बोला-"मै न्यायप्रिय न्यायाधीश के निर्णय को सहर्ष स्वीकार करता हू. मेरे बाये हाथ ने चोरी की थी, उसे सजा मिलनी ही चाहिए." यह कहकर चोर ने अपना कृत्रिम हाथ, जो लकडी का बना हुआ था, जज कि टेबल पर रख दिया. सब देखते रह गए, . जज
स्वय अवाक रह गया.
सार-: जब हम खण्ड मे उलझ जाते है, समग्रता को भूला देते है, वहा निर्णय गलत हो जाता है. हाथ ने चोरी की, दण्ड हाथ को ही मिलना चाहिए-यह तर्क सुनने मे बहुत अच्छा लगता है,पर सही नही है. यहा अखण्ड की विस्मृति कर खण्ड मे उलझना पडता है.
बहुत आभार!!
दोनों कथाएँ, बोध कराती हैं। सुंदर!
दोनो कथाये बहुत अच्छी लगी,
आप का धन्यवाद
bahut sundar!
चोर चतुर है - पर चतुर की चतुराई अखण्ड पर नहीं चलती। अन्तत: वह दण्ड पायेगा ही!