कुछ जैन प्रेमियो ने जिज्ञासा जाताई थी जैन धर्म के बारे मे। लगता है सात्विक मन से कुछ प्रशन रखे थे जैन परम्परा को एवम जैन धर्म हिन्दू धर्म से अलग कैसे ? के बारे मे जानने को इच्छुक लगे।
दोस्तो पुर्णतया जानना चाहते होगे कि जैन धर्म क्या है ? उसके मत क्या है? यह सभी जानने के लिऐ आपको और हमको इतिहास के ज्ञान कि जरुरत पडेगी अथवा शास्त्रार्थ कि, और उसके लिऐ आपको और हमे महापुरुषो कि चरण मे जाना होगा।
हमारे अजिज मित्र से, उनके एक मित्र ने उनसे कुछ प्रशन पुछे थे वो सवालो का समाधान हे प्रभु से चाहते है, हालाकि यह आलेख इससे पुर्व हमारे सहवर्ती ब्लोग मुम्बई टाईगर पर प्रसारीत हो चुका है। उसे फिर से हे प्रभु पर प्रसारीत करने का मुल कारण यह सवेदनपुर्व सवाल था और तथ्यो से फिर से अवगत कराना।
क्या जैन हिन्दु है?
आधुनिक युग मे धर्म का वर्गीकरण सनातन, वैष्णव, जैन्, बोद्ध,शैव,शाक्त, आदि रुपो मे रहा। हिन्दु धर्म कि व्याख्या वैदिक धर्म के रुप मे की गई, तब जैन, बोद्ध्,शैव्,सिख आदि उस धारा से भिन्न हो गऐ।
हिन्दु शब्द अगर राष्ट्र और जातिवाचक रहे तो जैन, बोद्ध,आदि सभी हिन्दु शब्द के द्वारा वाच्य हो सकते है। किसी के सामने कोई उलझन नही होनी चाहिए।
आचार्य श्री तुलसी ने एक बार कहा था -"हिन्दुस्थान मे रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दु है। धर्म और महजब कि दृष्टि से भले ही वह ईसाई हो, इस्लाम का अनुयायी हो,पारसी अथवा और कोई भीहो।
"हिन्दु धर्म"इस शब्द ने हिन्दुत्व को सकुचित बना दिया है।
आचार्य श्री तुलसी से पुना के कुछ पण्डितो ने पुछा-"जैन हिन्दु है या नही?'
आचार्य श्री ने उत्तर मे कहा-" यदि आप हिन्दु का अर्थ वैदिक परम्परा का अनुयायी से करते है तो जैन हिन्दु नही है और यदि आप हिन्दु का अर्थ राष्ट्रीयता से है तो जैन हिन्दु है।"
हे प्रभु यह तेरापंथजी,
"मेरे एक मित्र द्वारा पुछा गया-" तीन छोटे सवाल जो कि मुझसे करे गए थे परन्तु मेरे पास उत्तर नहीं था अब आपसे जान सकता हूं---
१. भारत के स्वाधीनता संग्राम से जुड़े दस जैन क्रान्तिकारियों के नाम बताइये।
२.मुसलमान कुरान शरीफ़,हिन्दू भगवदगीता, क्रिस्तान बाइबिल की अदालतमें सत्य बोलने के लिये शपथ लेते हैं जैन किस ग्रन्थ की शपथ लेते हैं यदि भगवदगीता की ही शपथ लेते हैं तो क्यों हिंदुओं से अलग मानते हैं खुद को?
३.www.jagathitkarni.org नामक वेबसाइट चलाने वाले क्या कह् रहे हैं और कोई इनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं करवाता? मेहरबानी करके इन शंकाओं का समाधान करें।"
१. पहली बात का जवाब=" स्वाधीनता संग्राम से जुड़े दस जैन क्रान्तिकारियों के नाम जिसने आपसे पुछा उसके पिछे उनकी भावना क्या रही होगी ? यह मै नही जानता हू। ना ही इस बात से यह साबीत होता है कि जैन जाती में डरपोक किस्म के लोग है। और लोगो को ऐसा प्रशन करने कि आवश्यकता ही क्यो पडी ? समझ के परे है
चुकि मै जैन हू सत्य अहिसा, अस्तेय सयम्, सेवा के सिद्धान्तो कि पालना करता हू इसलिऐ मेरा फर्ज होता है जिन लोगी ने भी आपसे इसे सवाल किए उनको अच्छे मन से सन्तुष्ट करु।
सैकडो जैनी है जिन्होने स्वाधीनता संग्राम मे जेल भी गऐ और बलिदान भी दिया। गुजरात महाराष्ट्र्, राजस्थान्, मध्यप्रदेश बिहार अन्य क्षैत्रो से जैनी लोगो ने स्वाधीनता संग्राम मे हिस्सा लिया। पुरुषो को छोडो महिलाओ ने भी इस मे भाग लिया।
रिषब दास राकॉ ( कई जैल यात्राऐ एवम मात्मा गान्धी विनोबा के साथ कई वर्ष रहे,) रमणीक् मेहता, (तीन बार जैल) अमर शहिद हुकमिचन्द जैन ने (बिहार हिसार के कानुगा परिवार से ) १८५७ कि क्रान्ति मे तात्या टोपे के साथ कुद पडे। १८ जनवरी १८५८ को लालाजी को फॉसी पर लटका दिया। अग्रेजो कि कृरता तो देखिऐ लालाजी के भतिज फकिरचन्दजी जैन जिसे अदालत ने रिहा कर दिया था उसे भी पकडकर फॉसी दे दी गई। लाला हुकमिचन्द के नाम से हासी मे एक पार्क भी बनाया है।
अमर शहीद अमरचन्द बॉठीयॉ (तत्कालिन गवालियर राज्य के कोषा अध्यक्ष) रानी लक्ष्मीबाई कि क्रान्ति सेना मे शामिल हुऐ।२२ जून १८५८ को ग्वालियर मे ही अग्रेजो ने राष्ट्र द्रोह का सवाग रचके भिड भरे सर्फा बाजार मे पेड से लटकाकर अमरचन्द बॉठीयॉ को फॉसी दे दी। इस तरह मोहन राज जैन ( बाली पुर्व विधायक्) मुलचन्द डागा ( २ बार सॉसद पाली से ) सहीत हजारो जैन लोगो है से इस लडाई मे शामिल हुऐ थे।
"जैन ही क्यो पुरा देश ईस लडाई मे भाग लिया। जिन्होने किसी न किसी रुप मे स्वाधीनता संग्राम मे अपना योगदान दिया, जैल गये, फॉसी पर लटक गऐ, ऐसे महान सपुतो को मै और पुरा देश सलाम
करता है ।"
२. आपके दुसरे सवाल का जवाब इस तरह से दुगा- भारत का अन्य देश के साथ युद्ध हो रहा हो भारत कि जीत हो जाती है पुरा देश खुशी से झुमता है तब आप कहते हो -
" आपभी ( जैन्, सिख, इसाई) खुश लगते हो, तो हिन्दु क्यो नही बन जाते ?
भाईसाहब -"इस खुसी में अर्थ राष्ट्रीयता से है......
अरे भाई गीता जब रची गई उसमे कोई हिन्दु या जैन का उलेख नही है, भगवतगीता मे जो कहा गया वो हे "सर्वे जना: सुखिना भवन्तु" सभी सुख से रहे यही मुल मन्त्र का जैनो मे अर्थ दिया गया-
"जियो और जिने दो"
"बाकी इसका सम्पुर्ण ज्ञान ससार के महान विदुषक, ज्ञाता धाता, महान सन्त ७८ वर्षो से साधुत्व का पालन करने
वाले महान योगी पुरुष आचार्य महाप्रज्ञ जी के विचार भी लोगो को पढने चाहीऐ तब साफ हो जाता है"
जैन कोन ?
"आज जिस भूख खण्ड का नाम हिन्दुस्थान है, प्राचीन काल मे उसे भारत या भारतवर्ष कहा जाता था।ऋषभपुत्र भरत के नाम पर भारत नामकरण हुआ। पारस (वर्तमान ईरान्) आदि मध्य एशियाई देशो के सम्पर्क के कारण इसका नाम हिन्दु देश प्रचलित हुआ।
आचार्य कालक ने कहा- " आओ ! हम हिन्दु देश चले-एहि हिन्दुकदेशम वच्चामो। "
यह निशीथ चूर्णि का प्रयोग है। भारतीय साहित्यो के उलेखो मे यह सबसे प्राचीन है। पारसी सम्राट द्वारा महान(छठी शताब्दी ई,पू,) के अभिलेखो मे सिन्धु प्रदेशो के लिऐ हिन्दु शब्दो का प्रयोग मिलता है। जैसे राजस्थान आदि कुछ प्रदेशो मे "स" का उच्चारण "ह" किया जाता है वैसे प्राचीन फारसी बोली मे भी "स" का उच्चारण "ह्" होता था। फारसी लोग "सप्तसिन्धु" का उच्चारण हप्तहिन्दु" कहते थे।
मुल प्रकृति के अनुशार हिन्दु शब्द देश या राष्ट्र का वाचक है।
वह किसी धर्म का वाचक नही है।
भारत मे धर्म की दो धाराये प्रवाहित रही - श्रमणऔर वैदिक। श्रमण परम्परा का तन्त्र क्षत्रियो के हाथ था, वैदिक परम्परा का सुत्र धार ब्राहृमणो वर्ग था। साख्य, जैन, बोद्ध और आजिवक- ये सभी श्रमण परम्परा के धर्म है। मीमास, वेदान्त-ये वैदिक परम्परा के धर्म है। हिन्दु नाम का कोई भी प्राचीन धर्म नही है। मुसलमानो के आगमन के बाद हिन्दु और मुसलमान पक्ष और प्रतिपक्ष बन गये। प्राचीन काल मे श्रमण ब्राहृण पक्ष प्रतिपक्ष हुआ करते थे। इसका उल्लेख सस्कृत व्याकरणकारो ने उल्लेखित किया है। एक श्रमण ब्राहृण धर्म मे दिक्षित हो जाता है और एक ब्राहृण श्रमण धर्म मे दिक्षित हो जाता, उसे कोई जाति परिवर्तन नही होता।
प्रस्तुत है आचार्य महाप्रज्ञ जी के विचार
(पुस्तक लोकतन्त्र - नया व्यक्ती नया समाज }
आपका ३. सवाल www.jagathitkarni.org नामक॥॥॥॥॥।
www.jagathitkarni.org के बारे मे चर्चा करना हमारा लक्ष्य नही।
आपका आभार मेरे मित्र , जहॉ तक हो सका मेने समाधान कि कोशिश कि अगर भुल चुक हुई हो तो क्षमा करे।
आपने सही कहा है. हिन्दू कोई धर्म नहीं है. परन्तु हिन्दुओं का धर्म होता है.
हिन्दू धर्म नहीं राष्ट्रीयता ही है। इसे धर्म की संज्ञा दे कर राजनीति की जा रही है।
बात तो पते की है.
रामराम.
बहुत सुन्दर। और किसी असहमति कि कोई गुंजाइश ही नहीं।
बिल्कुल सही लिखा है।
"मुल प्रकृति के अनुशार हिन्दु शब्द देश या राष्ट्र का वाचक है।
वह किसी धर्म का वाचक नही है।"
आपने बहुत सही विश्लेषण किया है आशा है जिज़्ञासुओँ के मन मेँ उठे प्रश्नोँ का
आपके सही उत्तरोँ से समाधान हुआ होगा -
- लावण्या
agar jain hindu he to unhe alag hone ke piche ka karan kya he?