पिछले कुछ वर्षो से पश्चिमी मीडिया मे( खासकर अमेरीका मे) भारत कि आर्थिक प्रगति के बारे मे इतना कुछ कहा जा चुका है कि वहॉ के जनमानस मे इस मूल्क (भारत) की खास तस्वीर बन गई। जहॉ कभी शहरो मे सडको पर गाये, सपेरे और हाथी घुमा करते थे, ऐसे गरीब देश मे हजारो-लाखो के करीब आई टी एक्सपर्टस का होना किसी चमत्कार से कम नही समझा गया।
मुम्बई हमलो के कुछ ही दिनो बाद झोपडपट्टी की जिन्दगी मे गरीबी और बदहाली कि नई परिभाषाए दर्शाती हुई चमक-दमक वाली फिल्म स्लम+डॉग+मिलिनेअर= झुग्गीबस्ती का करोडपती कुत्ता ( फिल्म का हिन्दी नाम यही होता )
झुग्गी-करोडपती शब्दो से तो किसी का विरोध हो नही सकता। पश्चिमी देशो को इन्ह शब्दो से सन्तुष्टी नही मिलती है। हमे दर्द है कुत्ते शब्द से, पश्चिमी देशो का भारत के गरीबो को कुत्ता कहना इतना भाया कि गोरी चमडी के दो टके के लोगो ने ऑस्कार से नवाज कर उनकी अपनी छाती को ठण्डक पहुचाने का काम किया। कलेजा हमारा (भारतीय जनमानस) चीर कर हथेली मे दे दिया। इस फिल्म को अमेरिका, ब्रिटेन के कई शहरो मे रिलीज कर दि गई। जब इस फिल्म को आठ ऑस्कर नामकन मिले एवम ऑस्कर पुरस्कारो से सम्मानित किया गया तो ऐसा लगा जैसे अमेरिकी दिलो मे इण्डिया कि हर चीज के लिये प्यार उमड आया है। हमारी गरीबी और बदहाली के लिये भी।
जब अंग्रेजों को इस से भी संतुष्टि नहीं हुई तो उन्होंने अपने पालतू कुत्तों को “टीपू” कहना शुरू कर दिया.
आज भी कई साम्राज्यवादी यूरोपीय लोग है जो हिन्दुस्तानियों को कुत्ता समझते हैं, एवं कुत्ता कहते हैं. स्लमडॉग (गली का कुत्ता, सडकछाप कुत्ता) को आज ऑस्कर मिला तो देश भर में यही पागलपन दिख रहा है. विडम्बना की बात यह है कि कम से कम जिन भारतीयों को अंग्रेजी उपन्यास लिखने के लिये विदेशियों ने पुरस्कार नवाजे हैं इन में से कई के उपन्यास भारतविरोधी कथनों से भरे पडे हैं."
आखिर इस फिल्म मे कोनसी बात जिसने गोरी चमडी के दर्शको और दीवालिया दिमाग के समीक्षको का मन मोह लिया ? स्लम+डॉग+मिलिनेअर= "झुग्गीबस्ती का करोडपती कुत्ता ।" कहानी है, गरीबी और अमीरी के भेदभाव की। यह कहानी है गरीबी और आपराधिक दुनिया के बिच सम्बन्धो की। यह कहानी है भाई-भाई के बीच धोखेबाजी की। लेकिन यह कहानी एक अनाथ बच्चे की मेहनत या प्रतिभा की उतना नही है जितनी कि एक सयोग कि है। जिसके कारण वह कोन बनेगा करोडपती के सवालो का उत्तर दे पाता है। यह उस जीवट या आत्मविशवास कि कहानी नही है, जिसके लिये सिनेमा हॉल मे तालिया बजे।
"स्लमडॉग"-=(वह निचे पाखाने के गहरे कुण्ड कि ओर देखता है ,नाक दबाकर डुबकी लगा देता है और दुसरी तरफ से से बाहर निकलता है । सिर से पाव तक पाखाने (शिट) से लिपटा हुआ। उसी गन्दगी मे सना वह अमिताभ के सामने जाकर ऑटोग्राफ मागता है।)
"स्लमडॉग" एक निष्ठुर फिल्म है, जिसके निर्देशक गरीब के सपनो का मजाक उडाते हुये अनाथ बालक को पाखाने से भरे कुन्ड (वेल) मे डुबकी मारते हुये दिखाता है। एक दृश्य मे अमिताभ बच्चन के झुग्गी झोपडीयो (कॉलानी) मे हेलिकॉप्टर से उतरने कि खबर बस्ती मे आन्धी कि तरह फैल जाती है । लोग पागलो कि तरह हेलिकॉप्टर कि ओर दोडते है। उसी वक्त बालक जमाल को उसके दोस्त शोचालय (पाखाना) मे बन्द कर देते है। जमाल करे तो क्या करे । वह निचे पाखाने के गहरे कुण्ड कि ओर देखता है ,नाक दबाकर डुबकी लगा देता है और दुसरी तरफ से से बाहर निकलता है । सिर से पाव तक पाखाने (शिट) से लिपटा हुआ। उसी गन्दगी मे सना वह अमिताभ के सामने जाकर ऑटोग्राफ मागता है। जरा सोचिये यह कैसी कल्पना है ?
बालिवुड के पलायनवादी डायरेक्ट्र मनमोहन देसाई ने भी ऐसे सिन कि कभी कल्पना नही कि होगी।
"अपुर-ससार" मे सत्यजित रॉय ने "मेघे ढाका तारा" और " ऋत्विक घटक", और अकुर मे श्याम बेनेगल ने अपनी कलात्मक और तीखी शैली मे गरीबी और सामाजिक अन्याय का गहरा रिस्ता दिखाया था। लिकिन सत्यजित रॉय को उनकी मृत्यू शैया पर पहुचने के बाद ही हॉलिवुड ने ऑस्कर के योग्य समझा।
ब्रिटिश राज के दोरान सामन्य भारतीयो का स्वाभिमान दिखाने वाली बॉलिवुड फिल्म "लगान" भी ऑस्कर के शमियाने मे पहुच नही पाई।
शीशे कि तरह पारदर्शी हृदयहीन फिल्म "स्लमडाग" हमे यह याद दिलाती है कि भारत मे अनाथ बच्चो के लिये एक ही जगह है जहॉ उन्हे अन्धा बनाकर भीख मॉगने के लिये मजबुर किया जाता है। भारत मे पले बढे बच्चे के लिये करोडपति होना सजोग ही हो सकता है।
डेनी बॉयल कि जगह कोई भारतिय डायरेक्टर्स यह फिल्म बनाता तो उसे ऑस्कर के पजायमे का नाडा भी नशीब नही होता जैसे "तारे जमी पे" को बैरन्ग लोटना पडा।
डेनीबॉयल चुकी: विदेशी है, और गोरी चमडी कि मानसिकता वाला है उसने दुनिया को यह कहकर दिखा दिया कि यह "भारतीय गरीब, कुते है"उनके आकाओ के कलेजे मे इस बात कि जोरदार ठण्डक पहुची कि हम भारत को फखिरो मदारियो का देश कहते थे- वो यही है । आस्कर देकर इसबात पर मोहर लगाने एवम मनोवैज्ञानिक “गहन-पैठ” वाली बात चरितार्थ करने कि कोशिश कि गई।
क्या हमे भारत कि इस गरीबी के जश्न मे शामिल होना चाहिये?
अगर फिल्म का नाम होता
"अमेरिकि डॉग मिलेनियर" या ब्रिटीश कुतीया तो क्या उसे ऑस्कर मिलता ???
ऑस्कर का मच गोरी चमडीवालो का या डेनी बॉयल जैसे उनके दलालो का मनोवैज्ञानिक तरीके से अपनी मानसिकता को दुनिया मे परोसना है।
एशिया का सबसे बडा स्लम क्षेत्र धारावी मुम्बई जहॉ"स्लमडॉग" कि सुटी हुई
"समय आ गया है दोस्तों कि हम विदेशियों की मानसिक गुलामी से ऊपर उठकर देशनिर्माण का कार्य करें. इसके लिये पहला काम जो हर देशभक्त को करना है वह है कि इन लोगों की, उनके कृति की, प्रशंसा न करें. उनके प्रचारक न बनें--शास्त्री फिलिप"
न्यु जर्सी से अशोक ओझा का विचार एवम आभार।
शास्त्री फिलिप से प्रेरणा
प्रस्तुती -हे प्रभु !
फिल्म को देखने, लिखने व आकलन करने का नजरिया प्रभावित कर गया। हम अक्सर ही बेगानी शादी में दीवाने बने जाते हैं।
Raj Bhatia to me
show details 2:18 am (1 hour ago)
महावीर जी मै तीन चार बार आप के ब्लांग पर गया लेकिन कुछ सेकिंडो बाद ही ब्लांग अपने आप बन्द हो जाता है, आप का धन्यवाद आप ने मेल से यह लेख भेजा, मेने ले कर रखि है यह फ़िल्म लेकिन इस के बारे सुन कर नफ़रत हो गई है, इस फ़िल से जिस मे हमे कुता कहा हो उसे केसे देख सकते है, लेकिन कई सर फ़िरे बधाईयां दे रहे है.
आप ने बहुत सही ढंग से इस फ़िल्म का चित्रंण किया है.
धन्यवाद
भाटीयाजी आपका शुक्रिया टीपणी मेल द्वारा भेजने के लिये। शायद टेकनिक्क्ल प्रोबलम कि वजह से ब्लोग खुल नही रहा होगा। सुबह तक ठिक हो जाना चाहिये।
आप जरुर इस लेख को पढे व मुझे बताये कि क्या मैने जो लिखा वो भारतीय लोगो के विचारो अनुकुल नही है । या कुछ लोग राष्ट्रयता के नाम ढोग करते है। मै इस बात को लेकर निराश हु कि उन्ह लोगो ने इस पोस्ट को सहराने से किनारा किया जो देश कि बात करते है। खेर । चलता रहता है। इण्डिया इज ग्रेट।
आप कुशल रहे भगवान से यही प्रार्थना करता हु। गलतियो के लिये क्षमा चाहता हु।
नोट- आपका ई मेल को टिपणी के रुप मे प्रकाशित कर दि गई है।
बहुत अच्छा लिखा है -दरअसल स्लमडाग अंगरेजी के शब्द अंडरडाग और स्लम को मिला कर चतुराई से बनाया गया है ! पर भावना तो वही है -भारतीयों को कुत्ता कहने की !
आपने बहुत अच्छा लिखा है। ये उन भारतीयों के दिल की बात है जो थोड़े-बहुत भी समझदार हैं।
महाबीर जी आपके ब्लॉग बंद होने की समस्या तो है,कुछ कीजिये!
देखिये हमारा देश आज विरोधी हो गया है उसकी फितरत विरोधी हो गयी है कोई अच्छा करता है तो विरोध है ,और बुरा करता है तो विरोध ही है !
अगर हम गरीब है तो उसके ऊपर सफ़ेद चादर डालकर उसे ढंकते क्यों है उसे मिटाते क्यों नहीं?
और अगर भारत की गरीबी को बेचकर ऑस्कर मिलते होते तो हर डारेक्टर गरीबी पर फिल्म बनाता!
अब ऑस्कर मिल गया है तो लोगों को गरीबी दिख रही है बाल उत्पीरण दिख रहा है,इससे पहले उस झोपडी के बच्चों की कभी फ़िक्र नहीं की गयी !
हिन्दुस्तान को अपनी प्रकृति सुधारनी चाहिए !
महावीर जी आपने अच्छा लिखा बधाई हो !
संजय सेन सागर
हिन्दुस्तान का दर्द द्वारा आयोजित बहस मे भाग लीजिये
आपके जेहन मे सवाल तो बहुत है पर कोई सुनने वाला नहीं,आपके पास आतंकवाद को कुचलने की तरकीब तो बहुत है पर कोई समझने वाला नहीं !
या फिर इन मुद्दों के बारे मे अपनी राय रखने चाहते है,तो दिल मे दबे शब्दों को होठों तक लाइए यह मंच आपका है,हम आपके साथ है
''मुंबई पर हमला और अब पकिस्तान की सरजमीं पर श्रीलंका टीम पर आतंकी हमला,क्या इस तरह के हमलों का कोई हल है ?
यदि हां तो आखिर क्या है वे कदम जिससे आतंकवाद को कुचला जा सकता है ? क्या पाक अपने बलबूते पर आतंकवाद का सफाया कर सकता है ?
यदि नहीं तो दुनिया को क्या कदम उठाने चाहिए आतंकवाद और उसके पोषक पकिस्तान के खिलाफ ?''
ये वे सवाल है जो हर जेहन मे गूँज रहे है अगर आप की कलम मे है वो धार जो लिख सके इन सवालों पर एक गहरी और सार्थक राय तो आज ही हमें लिख भेजिए अपनी राय,अपनी एक फोटो और अपने मोबाइल नंबर के साथ !
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संजय सेन सागर
संपादक
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सजयजी कुछ लोगो को मेरा यह देश प्रेम अच्छा नही भी लगा हो, पर मै तो ऐसा ही हु।
ब्लोग न खुलने कि समस्या बडी ही गम्भीर होती जा रही है। क्या किया जाये सुझाऐ।