एक किलो वर्क तैयार करने के लिये १२५०० पशुओ कि हत्या कि जाती है। हर साल ४० हजार किलो (४० टन) वर्क कि खपत केवल मिठठाईयो मे होती है।
इस उधोग से जुडे लोग उन्मुक्त तरीके से पशुओ कि हत्याओ मे लिप्त है। हृदय से सभी धर्मावलम्बी यह जानते है कि वर्क माशाहारी है, लिकिन लगातार निर्भिकता से सेवन करता है।
बिना क्रूरता सुन्दरता एक श्रमसाध्य कार्य है। पुरे देश मे या पृथ्वी पर ऐसा एक भी वर्क का टुकडा नही है जो मशीन मे बना हो।
[सामाजिक पहलु एवम चेतना, समाज हीत मे हे प्रभु पर ]भारत मे कानुन है कि हर शाकाहारी खाध पदार्थ को हरे चिन्ह से मॉसाहारी खाध पदार्थ मैरुन चिन्ह से चिन्हित किया जाये। अगर कोई निर्माता अपने उत्पादन मे हेराफेरी करता है तो तो उसे कई साल कि सजा हो सकती है।
तो मिठठाई निर्माता कानुन बनने से अब तक गिरप्तार कैसे नही किये गये ?
दुध को शाकाहारी माना जाता है। लेकिन मिठठाई पर लगे वर्क (सिल्वर फॉयल) को हटाये बिना मिठठाई को शाकाहारी नही कहा जा सकता है।
"ब्युटी विदाउट क्रू अल्टी" नामक पुणे के एक स्वमसेवी सस्था ने खाघ उत्पादो मे मिलाऐ जाने वाले अवयवो पर एक पुस्तिका का प्रकाशन किया था।जो वर्क उधोग के बारे मे बताती है। इस बुक मे वर्क कैसे बनाया जाता है बताया गया है। वर्क निर्माता वधशालाओ मे जाकर पशुओ का चयन करते है। चाहे नर हो या मादा उसका वध करने से पहले यह देखने के लिये उसकी खाल ट्टोली जाती है कि वह मुलायम है कि नही। इसका अर्थ है कि विशेष रुप से इस उधोग के काम मे लाने के लिये भारी सख्या मे भेड, बकरी, और मवेशियो कि हत्या कि जाती है। हत्या के बाद पशुओ की खाल को गन्दगी साफ करने के लिये १२ दिन तक टन्की मे डुबाया रखा जाता है। इसके बाद मजदुर खाल को छीलते है जिसे झील्ली कहा जाता है। खाल की निचली परत केवल एक टुकडे कि हि उतारी जाती है। इन्ह परतो को मुलायम करने के लिये ३० मीनट तक उबाला जाता है बाद मे सूखने के लिये लकडी के तख्तो पर डाल दिया जाता है।
सूख जाने के बाद १९*१५ वर्ग सेन्टीमीटर टुकडो मे काटते है। इन्ही टुकडो से थैली बनाते है जिसे ओजार कहा जाता है। बाद मे यही ढेर एक बडे चमडे के थैले मे भरा जाता है जिसे खोल कहते है। अब इस खोल मे चान्दी या सोने कि बिल्कुल झीनी पत्तिया रखी जाती है।औजार मे रखी जाने वाली चान्दी कि बारीक पत्तियो "अलगा" कहा जाता है।
अब इस अलगा को औजार मे रखकर फिर खोल मे भरा जाता है फिर घण्टो तक कारीगर लकडी के हथोडे से पीटते है। जिससे चान्दी का वर्क तैयार होता है । इसी वर्क को मिठाई कि दुकानो मिठाईयो एवम मन्दिरो मे भगवान को सजाने के लिये भेजा जाता है। एक पशु की खाल से केवल २०-२५ टुकडे तैयार होते है हर ढेर मे ३६० थैली होती है। एक ढेर मे ३० हजार वर्क के टुकडे बनते है। जो एक बडी मिठ्ठाई कि दुकान की आपुर्ति के लिये कम ही है।
एक किलो वर्क तैयार करने के लिये १२५०० पशुओ कि हत्या कि जाती है। हर साल ४० हजार किलो (४० टन) वर्क कि खपत केवल मिठठाईयो मे होती है।
यही मिठाई हमसभी खाते है। इस उधोग से जुडे लोग उन्मुक्त तरीके से पशुओ कि हत्याओ मे लिप्त है। हृदय से सभी धर्मावलम्बी यह जानते है कि वर्क माशाहारी है, लिकिन लगातार निर्भिकता से सेवन करता है।
विस्मयकारी है कि सभी प्राणीयो पर सभी प्रकार कि हिन्सा और अमानविय कृत्यो का विरोध करने वाले कत्लखानो से चमडी कि पर मे बने वर्को का धडेल्ले से इस्तेमाल कर रहे है। अनेक लोग झासा देकर खुद को यह समझाने का प्रयास करते है की यह मशीन से बना हुआ है। बिना क्रूरता सुन्दरता एक श्रमसाध्य कार्य है। पुरे देश मे या पृथ्वी पर ऐसा एक भी वर्क का टुकडा नही है जो मशीन मे बना हो।
जालन्धर से एक व्यक्ती ने मेनका गान्धी को मेल भेजकर २००७ मे दावा किया था कि उसके पास जर्मन से बनी स्वसालित मशीन है जो कागज मे कुटकर वर्क बनाती है। मेनका गान्धी ने पता लगाया तो इस तरह कि कोई फैक्ट्री नही मिली।
पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और गया, कानपुर मेरठ, और वराणसी, जयपुर ईन्दोर अहमदाबाद और मुम्बई ऐसे मुख्य नगर जहॉ वर्क का बडे पैमाने पर उत्पादन होता है।
दिल्ली, लखनाऊ, आगरा, और रतलाम, कि वधशालाओ से वर्क बनाने के लिये पशुओ कि नरम खाल से बनी थैलियो को इन शहरो मे भेजा जता है।
बजार मे उपलब्ध चान्दी के वर्क जहरीले ही नही कैसर कारक भी है।
आभार प्रेरणा,लेख- मेनका गान्धी
जैन समाज के लिये विशेष प्रस्तुती - हे प्रभू पर
सादर सहयोग राजस्थान पत्रिका, एवम महावीर बी।
विशेष सी टी यू पी
मैंने दो साल पूर्व ही इस विषय में एक लेख पढ़ा और तब से वर्क युक्त किसी भी चीज को खाना बंद कर दिया. मेरा सभी से अनुरोध है की इस विषय में जागरूक बने और वर्क युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें . ये सिर्फ पशुओं की हत्या के लिए ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि वर्क निर्माता ज्यादा मुनाफे और मिठाई विक्रेता कम लागत के चक्कर में घटिया धातुओं का इस्तेमाल वर्क बनाने में करते है जिसमे आर्सेनिक और लेड जैसे जहरीले पदार्थ होते है. कृपया अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता ना करें और पैसे देकर जहर खाने से बचें.....
ओर यह असली चांदी भी तो नही होती, आप का धन्यवाद इस ओर ध्यान दिलाने के लिये, एक अति सुंदर लेख
भाई सुना तो था पर इतनी डीटेल से आज ही मालूम पडा. आज से हम तो चांदी के वर्क लगी कोई भी वस्तु इस्तेमाल नही करेंगे.
पता नही कब से हमारा तो धर्म भ्रष्ट हो रहा था?
रामराम.
jaankari dene ke liye shukriya ......
धर्म रक्षक धर्म बचाओ
वर्क स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लेकिन यह कहना की १ किलो वर्क बानाने के लिए १२५०० पशुओं की हत्या की जाती है, सर्वथा अतिशयोक्तिपूर्ण होगा. वर्क बनाने के लिए चमड़े की थैलियों का प्रयोग होता है इस बात से भी इनकार नहीं है. क्या हम कह सकते हैं कि वर्क बनाना बंद कर दिया जावे तो पशु नहीं कटेंगे?
आपका यह आलेख पढ कर रोंगटे खडे हो गये. आज तक मुझे नहीं मालूम था कि वर्क कैसे बनता है. अब पता चल गया है तो हर तरह के वर्क का बहिष्कार करने का दृढ निर्णय कर लिया है.
इस विषय में लोगों को जागृत करना जरूरी है. अभियान जारी रखें, हम आपके साथ हैं.
दो चार दिन के बाद, जब आपको पर्याप्त पाठक यहां मिल जायें, इस आलेख की चर्चा सारथी पर करेंगे.
सस्नेह -- शास्त्री
हल्का फुल्का सुना था मगर कान नहीं दिये थे. आज विस्तार से जाना. अचरज हुआ. कभी इस दिशा में सोचा भी न था. आभार आपका.
aaj se workwali mithai khaana bandh.bahut achi jaankari mili.
i did not know that the food item i eat was not justified because i am a vegetarian anyways.but killing animals for such a useless cause is just not done.so i will now stop eating it.and thank you for the information.
@PN Subramanian
वर्क स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लेकिन यह कहना की १ किलो वर्क बानाने के लिए १२५०० पशुओं की हत्या की जाती है, सर्वथा अतिशयोक्तिपूर्ण होगा. वर्क बनाने के लिए चमड़े की थैलियों का प्रयोग होता है इस बात से भी इनकार नहीं है. क्या हम कह सकते हैं कि वर्क बनाना बंद कर दिया जावे तो पशु नहीं कटेंगे?
यह आकडा जस्टिफाईइ तो नही है, पर जैसा कि श्रीमती मेनका गान्धी के एक लेख पर से आधारित है। जब मैने तहकिकात कि तो मिलते झुलते आकडे प्राप्त हुऐ।
वरक बनाना बन्द नही करे उसे खाना बन्द करे तो शायद कुछ जीवो को जिने का हक मिल जाये।
और जो शाकाहारी है उन्हे यह पता नही कि यह चान्दी कि परत वो जो चाव से खाते है वह मिठाई पान इत्यादी मे वह शाकाहारी नही है। अब इस पर भी सवाल उठ सकता है कि चान्दी तो मेटल है शाकाहारी का प्रशन क्यो?
तो सर। विदेशो मे कही अफ्रिकन देशो मे और दुनिया मे कुछ देशो मे चावल खाने का प्रसचलन है वहॉ जिस पानी मे मच्छली बोईल करते है बचे हुए उसी पानी मे चावल को पकाया जाता है। हम तो चावल को वेज समझ कर वन प्लेट राईस प्लिज ! ओर्डर करते है पर जब इस तरह कि रेसिपि है तो उसे वेज नही कह सकते। विदेशो मे हमे (शाकाहारी लोग) वेजराईस बोलकर ओर्डर करने पर हमे वेज चावल बनाकर मिलेगा।
दुसरा यह चान्दी का वर्क मन्दिरो मे भगवान को सजाने मे उपयोग होता है, मेरा यह लेख शायद सभी ईन्शानो के काम का नही क्यो कि बहुधा लोग मासाहारी भी होगे किन्तु शाकाहारी ओर मासाहारी लोगो के भगावान शाकाहारी ही है तो सभी भगवान के लिये यह लेख उपयोगी हो सकता है।
aankhen khol dene wala lekh.
is jaanakri ke liye dhnywaad.
सच आपने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी दी की इसका कोई जवाब ही नहीं है.आपका लेखन हमेशा से ही लीक से हटकर रहा है !
आपको बधाई ..और इतने गहरे पहलु पर नजर डाली इससे यह सिद्ध होता है की आप बेहद जागरूख नागरिक है और ब्लॉगर भी !
आपका प्रयास अच्छा लगा ,लिखते रहिये !
बड़े दिनों के बाद यहाँ आने का समय मिला माफ़ करें!!
हो सके तो अपना मोबाइल नंबर मुझ तक पहुंचा दे मेरा नंबर है -09907048438
वर्षों पूर्व जब मुझे पता चला था कि एक प्राणी विशेष की आँतों में भरकर, कूट-कूट कर ये वर्क बनाये जाते हैं, तब से वर्क च्ढ़ी मिटाईयों का उपयोग ही बंद कर दिया।
बेशक, आज के माहौल में पीने का पानी तक प्रदूषित है, लेकिन आँखों देखी मक्खी निगली भी तो नहीं जाती (अब कोई निगलना ही चाहे, तो हम क्या कर सकते हैं, भई?)
मुझे यह बात आज ही पता चली। छिः सोचकर ही घिन आ रही है। मैं तो यह सोचकर वर्क वाली मिठाई नहीं लेती थी कि चाँदी की जगह न जाने क्या उपयोग किया जाता होगा। परन्तु यह बात तो बहुत ही विभत्स है। मैं शाकाहारी हूँ। विदेश में जब रही तो बाहर खाना नहीं खाया। शाकाहारी होना एक सुविधा या धर्म की बात नहीं है, एक विश्वास है। मुझे बहुत दुख है कि इस तरह से शाकाहारियों का मूर्ख बनाया जाता है। अब हर चीज़ के बनाने की विधि तो हम नहीं जान सकते। बताने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
ये सब भेड़ चाल है.एक ने कहा की ये गलत है.तो सब ही कहने लगे ये गलत है. हम मिठाई नही खायेगे .....
की घोषणा कर दी. (शायद इन को मदुमेह है )जानवर को मार कर क्या -क्या नही बनता है.क्या उन सब को पहना या उपयोग करना छोड़ दे.
कुछ लोगो की भावनाओ को भड़काने के आलावा और कुछ नहीं है इस लेख का अर्थ. जो कह रहे है ये गलत है वो झूट बोल रहे है.
सुब से ज्यादा मिठाई वो ही लोग खायेगे .
@बेनामी ने कहा…
ये सब भेड़ चाल है.एक ने कहा की ये गलत है.तो सब ही कहने लगे ये गलत है. हम मिठाई नही खायेगे .....
की घोषणा कर दी. (शायद इन को मदुमेह है )जानवर को मार कर क्या -क्या नही बनता है.क्या उन सब को पहना या उपयोग करना छोड़ दे.
कुछ लोगो की भावनाओ को भड़काने के आलावा और कुछ नहीं है इस लेख का अर्थ. जो कह रहे है ये गलत है वो झूट बोल रहे है.
सुब से ज्यादा मिठाई वो ही लोग खायेगे .
#बात शाह्काहारी या मॉसाहारी कि नही बात है आपके स्वास्थय पर पडने वाली असर की
वर्क केवल मॉसाहारी खाध पदार्थ ही नही है, वरन यह मानव शरीर के लिये काफी हानिकारक भी है
इन्शान चान्दी को हजम नही कर सकता और उसे खाने से कोई लाभ नही। नवम्बर २००५ मे लखनाऊ मे वर्क पर इण्डिस्ट्र्यल टॉक्सीकोलोजी रिसर्च सेन्ट्रर द्वारा किये अध्यन मे स्पष्ट रुप से कहॉ गया है कि बाजार मे उपलब्ध चान्दी के वर्क जहरीले ही नही बल्कि कैन्सर कारक भी है। जिसमे सीसा, क्रोमियम, निकिल और कैडमियम जैसी धातुए भी मिली हुई है। जब ऐसी धातुऐ शरीर मे खाधय पदार्थ के रुप मे जायेगी तो निशिचत कैन्सर का कारण बनेगी। रिपोर्ट मे यह भी कहा गया है कि इस उधोग मे काम करने वालो के स्वास्थय पर भी विपरित प्र भाव पडता है।
दुसरी बात मै माशाहारीयो का विरोध नही करता क्यो कि दुनिया भर मै मॉसाहारी५५%, शाकाहारीयो४५% से अधिक है; अगर कुछ प्रतिसत लोग शाकाहारी बन जाते है तो भी ससार भर मे दिक्क्त आ जाएगी शाकाहारी खाधय प्रदार्थो मे भारी किल्ल्त महसुस कि जाएगी। वैसे मेरा यह तर्क सिर्फ इतना है कि जो शाकाहारी है वो न खाऐ और जो मॉसाहारी बन्धुओ के लिऐ यह तर्क है करीब १२००० पशु कि हत्या होती है १ किलो वर्क मे उपभोग किसका हुआ वर्क या पशु का । पशुओ को तो आपने यूज ही नही किया (खाधय रुप मे )बेचारे इन्सानी फैशन के चक्कर मे मारे गऐ। वर्क आपके स्वास्थय के लिए भी हानिकारक है। चोथा तर्क है वर्क वाली मिठाई, पान, फल,पर रेड लेबल यानी मॉसाहारी लेबल लगाया जाऐ।
बहुत अच्छी जानकारी है, धन्यवाद | मैंने इस चिट्ठे को ब्लॉग-भारती पर लिंक किया है | यह देखिये
http://www.blogbharti.com/cuckoo/food/silver-lining-or-bloodshed/
is baat par yakeen karnaa bohot hi mushkil hai, ki koi dharm-viparit karya itney saalo se chalaa aa rahaa hai
is baat kaa kaoi kaise risk le saktaa hai, kyaa unhoney yeh sochaa nahee thaa key ek din kisi na kisi ko pata chal hi jayegaa
i find it difficult to beleive all this
fir pune ke us sansthaan ney apney research ki publication q nahee kee
jankari ke liye bahut bahut dhanyawad