नारी के दुर्लभ कार्य क्षेत्रो की चर्चा करते हुए एक सस्कृत श्लोक मे कहा है-
"कार्येषु मन्त्री करणेसु दासी भोज्यषु माता शयनेषु रम्भा
दर्म$नुकूला क्षमया धरित्री भार्या च षाडगुणवतीह दुर्लभ"
समाज के दो घटक है-स्त्री और पुरुष। इन दोनो धटको का स्वतन्त्र अस्तित्व है। एक नारी को पुरुष कि जितनी जरुरत है उतनी जरुरत पुरुष को महीला की होती है क्यो कि वे दोनो एक दुसरे के पुरक होते है ।
आचार्य श्री तुलसी के शब्दो मे "दोनो हाथ एक साथ "।
गृहस्थ जीवन मे तीन बाते घर की शोभा है - लक्ष्मी - शिक्षा - शासन, सोभाग्य से ये तोनो ही रुप नारी के है, लक्ष्मी, सरस्वती, ओर दुर्गा। इन तीनो देवियो को ससार पुजता है। समाज मे लक्ष्मी सरस्वती का जितना महत्व है, दुर्गा का भी उससे कम महत्व नही है। वर्तमान मे नारी ने अपनी अलग पहचान बनाई है यह उसी का सुपरिणाम । आज महिलाये ऐसा कोई कार्य नही जो नही कर सकती- चाहे वह समाज से सम्बन्धित हो। घर परिवार, देश, धर्म, राजनिति, एवम विभिन्न कार्य क्षेत्र से हो उसने अपनी दक्षता दिखाई है।
वैज्ञानिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिये पुरुष और नारी दोनो का अपना मुल्य है। अपनी अस्मिता है। एक दोनो के बिना दोनो अधूरे है। इसलिये किसी एक का अस्तित्व को नकारने का अर्थ है, सृष्टि के सन्तुलन को नकारना है।
मेरा मानना है, जहॉ मानव का गरिमामय इतिहास प्रारम्भ होता है वही से नारी समाज शास्त्र का प्रथम पृष्ट है नारी समाज का सर्वोपरी श्रृगार है।
मुझे तकलिफ है समाज कि उन्ह कुछ समाननिय महिलाओ से जो अपना खाली समय व्यतित करने के लिये नारीसमाज का उथान्न करने कि दुकाने खोल रखी। मुझे आज तक यह बात समझ नही आई कि, कुछ समाननिय महिलाओ द्वारा, पुरुष सभ्यता और संस्कृति के मामले में यदि महिलाओं को पुरुषों से आगे दिखाने कि होड्ड वाली कुछ बातें स्वाभाविक रूप से अपने मन मे लिये बैठी हुई हैं।
"महिलाये पुरुषो से कम नही," "स्त्री सशक्तीकरण के जोश में पुरुषों कि सभ्यता से होड़ लगाना", यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता ?
स्त्री पुरुष की बराबरी क्यों करना चाहती है ? कोनसा क्षेत्र ऐसा है जो नारी के हाथ से छुट गया है ?
मैने पिछले दिन एक महिला ब्लोग पर एक पोस्ट देख रहा था हेडीग था -
"पुरुष अपने वाहियातपने या पतितावस्था को सगर्व स्वीकार क्यों करता है?शर्मिन्दा क्यों नहीं होता? पिछली पोस्ट "क्या भाषा और व्यवहार की सारी तमीज़ का ठेका स्त्रियों ने लिया हुआ है?" इस तरह कि बात क्यो ? और कोन कर रहा है ? किसके लिये कर रहा है ?
"कार्येषु मन्त्री करणेसु दासी भोज्यषु माता शयनेषु रम्भा
दर्म$नुकूला क्षमया धरित्री भार्या च षाडगुणवतीह दुर्लभ"
समाज के दो घटक है-स्त्री और पुरुष। इन दोनो धटको का स्वतन्त्र अस्तित्व है। एक नारी को पुरुष कि जितनी जरुरत है उतनी जरुरत पुरुष को महीला की होती है क्यो कि वे दोनो एक दुसरे के पुरक होते है ।
आचार्य श्री तुलसी के शब्दो मे "दोनो हाथ एक साथ "।
गृहस्थ जीवन मे तीन बाते घर की शोभा है - लक्ष्मी - शिक्षा - शासन, सोभाग्य से ये तोनो ही रुप नारी के है, लक्ष्मी, सरस्वती, ओर दुर्गा। इन तीनो देवियो को ससार पुजता है। समाज मे लक्ष्मी सरस्वती का जितना महत्व है, दुर्गा का भी उससे कम महत्व नही है। वर्तमान मे नारी ने अपनी अलग पहचान बनाई है यह उसी का सुपरिणाम । आज महिलाये ऐसा कोई कार्य नही जो नही कर सकती- चाहे वह समाज से सम्बन्धित हो। घर परिवार, देश, धर्म, राजनिति, एवम विभिन्न कार्य क्षेत्र से हो उसने अपनी दक्षता दिखाई है।
वैज्ञानिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिये पुरुष और नारी दोनो का अपना मुल्य है। अपनी अस्मिता है। एक दोनो के बिना दोनो अधूरे है। इसलिये किसी एक का अस्तित्व को नकारने का अर्थ है, सृष्टि के सन्तुलन को नकारना है।
मेरा मानना है, जहॉ मानव का गरिमामय इतिहास प्रारम्भ होता है वही से नारी समाज शास्त्र का प्रथम पृष्ट है नारी समाज का सर्वोपरी श्रृगार है।
मुझे तकलिफ है समाज कि उन्ह कुछ समाननिय महिलाओ से जो अपना खाली समय व्यतित करने के लिये नारीसमाज का उथान्न करने कि दुकाने खोल रखी। मुझे आज तक यह बात समझ नही आई कि, कुछ समाननिय महिलाओ द्वारा, पुरुष सभ्यता और संस्कृति के मामले में यदि महिलाओं को पुरुषों से आगे दिखाने कि होड्ड वाली कुछ बातें स्वाभाविक रूप से अपने मन मे लिये बैठी हुई हैं।
"महिलाये पुरुषो से कम नही," "स्त्री सशक्तीकरण के जोश में पुरुषों कि सभ्यता से होड़ लगाना", यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता ?
स्त्री पुरुष की बराबरी क्यों करना चाहती है ? कोनसा क्षेत्र ऐसा है जो नारी के हाथ से छुट गया है ?
मैने पिछले दिन एक महिला ब्लोग पर एक पोस्ट देख रहा था हेडीग था -
"पुरुष अपने वाहियातपने या पतितावस्था को सगर्व स्वीकार क्यों करता है?शर्मिन्दा क्यों नहीं होता? पिछली पोस्ट "क्या भाषा और व्यवहार की सारी तमीज़ का ठेका स्त्रियों ने लिया हुआ है?" इस तरह कि बात क्यो ? और कोन कर रहा है ? किसके लिये कर रहा है ?
बिन्दु जो मेरे जेहन मे आ रहे है, कि महिलाये कहॉ-कहॉ क्या है- देखे।
(१) एक महिला महारानी- एलिजाबेथ,अन्य (२) प्रधानमन्त्री - ईन्दराजी, मार्ग्रेट थैचर, बैनजीर, शेख हसिना, अन्य, (३) राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, चन्दिका कैनिया,अन्य (४) विरागनाये- झॉसी कि रानी लक्ष्मी बाई, सहित अनेक, (५) सरकारो मे मुख्यमन्त्री राबडी देवी, जयललिता, मायावती, वसुन्द्राराजे,शीलाजी, सहित कई महिला राज्यपाल, मन्त्रि, सासद, उपसभापति, बिधायक, राजदुत, (६) कई महिला उधोगपति, बैन्को कि मुख्या, चेयरमेन, आई ए एस, आई पी एस आफिसर, (७) महिल सैनिक, महिला पायलॉट, महिलाअधिकारी, महिला बस चालक, महिला ट्र्क चालक, महिला, महिला टैक्सी टैम्पु चालक,कार, स्कुटर, मोटरसाईकल सायकल मे भी महिला सक्षम (८) महिला धर्म प्रवतक (९) महिला अध्यापक, महिला मजदुर, धरो मे महिला बाई (१०) अभिनेत्रि, मॉडल, विश्व सुन्दरी, फिल्म निर्माता भी महिलाये, सम्पादक लेखक, पत्रकार, ब्लोग लेखन मे भी महिलाये। (११) अन्त्रिक्ष यात्रि भी सुनिता विलयम्स, कल्पना चावला आदि, इसके अलावा और भी छोटे से छोटा और बडे से बडा कार्य क्षेत्र मे महिला कि उपस्थिति है।
अगर मेरी गणित सही है तो ससार के अच्छे कर्म क्षेत्र मे महिलाओ ने हर जगह अपना मुकाम बनाया। उपर लिखे कार्यो मे एक आध कार्य क्षेत्र मे महिला के मुकाबले उल्टे पुरुष कि उपस्थिति नगण्य हो सकती है।
(१) एक महिला महारानी- एलिजाबेथ,अन्य (२) प्रधानमन्त्री - ईन्दराजी, मार्ग्रेट थैचर, बैनजीर, शेख हसिना, अन्य, (३) राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, चन्दिका कैनिया,अन्य (४) विरागनाये- झॉसी कि रानी लक्ष्मी बाई, सहित अनेक, (५) सरकारो मे मुख्यमन्त्री राबडी देवी, जयललिता, मायावती, वसुन्द्राराजे,शीलाजी, सहित कई महिला राज्यपाल, मन्त्रि, सासद, उपसभापति, बिधायक, राजदुत, (६) कई महिला उधोगपति, बैन्को कि मुख्या, चेयरमेन, आई ए एस, आई पी एस आफिसर, (७) महिल सैनिक, महिला पायलॉट, महिलाअधिकारी, महिला बस चालक, महिला ट्र्क चालक, महिला, महिला टैक्सी टैम्पु चालक,कार, स्कुटर, मोटरसाईकल सायकल मे भी महिला सक्षम (८) महिला धर्म प्रवतक (९) महिला अध्यापक, महिला मजदुर, धरो मे महिला बाई (१०) अभिनेत्रि, मॉडल, विश्व सुन्दरी, फिल्म निर्माता भी महिलाये, सम्पादक लेखक, पत्रकार, ब्लोग लेखन मे भी महिलाये। (११) अन्त्रिक्ष यात्रि भी सुनिता विलयम्स, कल्पना चावला आदि, इसके अलावा और भी छोटे से छोटा और बडे से बडा कार्य क्षेत्र मे महिला कि उपस्थिति है।
अगर मेरी गणित सही है तो ससार के अच्छे कर्म क्षेत्र मे महिलाओ ने हर जगह अपना मुकाम बनाया। उपर लिखे कार्यो मे एक आध कार्य क्षेत्र मे महिला के मुकाबले उल्टे पुरुष कि उपस्थिति नगण्य हो सकती है।
अब आप चिन्तन करे पुरुषो से प्रतिद्वन्द्विता कि कुछ महिलाओ का तर्क कहॉ फिट बैठता है ? वो किसको भ्रमित करना चाहती है ? क्या नारी ही नारी का अहित नही कर रही है ? टी वी सिरियलो मे सास द्वारा बहुओ पर अतियाचार को महिलाये बडी ही चाव से देखती है। सभी काम छोडकर इस तरह के सिरियल देखना यह किस चिज का धोतक है ? मजे कि बात यह सिरियल बनाने वाली एकता कपुर जो स्वय एक महिला है, ने तो अपने सिरियलो मे नारि का जो काल्पनिक रुप दिखाया वो डरावना ही नही समाज मे विषमताये पैदा करने वाला है। और महिलाये है जो नारी के इस विभिक्षित रुप को देखने के लिये धारावाहीक आने का इन्तजार करती है। नारि को अपमानित करने वाले धारावाहिक देख तो लगता है नारी ही नारी कि सबसे बडी दुशमन है। प्रतिद्वन्द्विता किससे ? और क्यो ?
मै कई वर्ष पुर्व सावधान सस्था मुम्बई का कार्यकर्ता था। उपरोक्त सस्था के सचालक विनोद जी गुप्ता थे। सावधान सस्था का मुख्य कार्य है वैश्यालयो मे जबरन लाई गई लडकियो को मुक्त कराना, और उसके बाद उनका लालन पालन या उन्हे उनके धर भेजना ! (घरवाले स्वीकारे तो) यह कार्य हम पुलिस कि मदद से और ग्रहाक कि सुचना से करते थे। (एक बार कलकत्ता मे हमारी जान पर बन आई थी ) मुझे आज यह बताते हुये दुख होता है कि मुम्बई कलकत्ता के रेडलाईट ऐरियो मे चकला{वेश्यावृति धन्धा) चलाने वाली ८५% महिलाये मालकिने है (जो नेपाली बन्गाली बाकी अन्य है।)
नारी का एक रुप है मॉ! मॉ का सबसे बडा ससार होता है उसकी सन्तान! सन्तान का कोई लिग नही होता है! लडका हो या लडकी मॉ का अभिन्न आत्मीय है! एक ओर मॉ के अन्तस मे उमडता ममता और वात्सलय का ज्वार और दुसरी तरफ खिलने से पहले ही कच्ची कलियो का सहार, भ्रूण हत्या ? लिग परिक्षण के आधार पर कन्या शिशुओ के साथ एक नारी द्वारा यह क्रूरता पुर्ण व्यवहार ? क्या यह दोगलापन नही ?
समाज मे कुप्रथाये बहुत है जो आदिकालो से चलती आ रही है। प्रत्येक देश, समाज, परिवार ने अपने अपने ढग से कुप्रथाओ का पोषण किया। यह मानना कि कुप्रथा पुरुषो कि देन है तो मै उसे खारिज करता हु। क्यो कि किसी प्रथा को बिना महिलओ के सहयोग से पुर्ण नही होता। महिला भी इसके लिये जिम्मेदार है। और यह सभी बाते शिक्षा, सस्कार, धर्म पर निर्भर करती है।
पुरानी प्रथाये= सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह, घुघट प्रथा,विधवाप्रथा, सहित अनेक कुप्रथाये प्रचलन मे थी तो उसका कुक्षल सचालन करने वाली एक सास, एक मॉ, एक बहिन ही होती थी। जो स्वय एक महिला होती है।
पुरानी प्रथाये= सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह, घुघट प्रथा,विधवाप्रथा, सहित अनेक कुप्रथाये प्रचलन मे थी तो उसका कुक्षल सचालन करने वाली एक सास, एक मॉ, एक बहिन ही होती थी। जो स्वय एक महिला होती है।
अब पाश्चात्य सन्स्कृति के तोर तरीके भारतीय समाज पर हावी होते दिख रहे है। भोतिकता की चकाचोन्ध मे तब से अब तक के सन्दर्भ बदल गये। जिवन शैली बदल गई।वातावरण और परिवेश बदल गया।रिति रीवाज एव रहन-सहन ने भी अनेक रुप धारण कर लिये है। विकास के साथ नई बुराईयो ने भी जन्म लिया है- स्त्री पुरुष ने अपने अपने ढग से बुरायो को पहन लिया है। जैसे भ्रूण हत्या,विकृत खान पान, मर्यादा हीन लोगो के पिछे भागति युवा पीढी,ड्र्ग्स,ओर डान्स मे डुबती इतराती जिन्दगी,शराब, सिगरेट, गन्दे साहित्य, ब्लु फिल्मे, भाषा का बिगडता सन्तुलन, काल्पनिक टिवी शो, बिखरते परिवार,रिस्ते,दायित्व बोध कि धुमिल होती राहे,अभिभावको के प्रति बढती उपेक्षाये, ये सब आज की उपभोक्ता सस्कृति द्वारा प्रदत ऐसे उपहार है जिससे एक आदर्श पुरुष/ महिला समाज के लिये सामुहिक चुनोती है।
सामाजिक जिवन मे कुछ ऐसे प्रसग भी है जो भीतर तक सिहरन पैदा कर देते है। आये दिन तलाक कि घटनाए, अस्त व्यस्त पारिवारिक व्यवस्थाये, सिमटती स्नेहिल सिमाए आदि न जाने कितने मुखोटे आज जीवन शैली धारण करती जा रही है।
आज सडक से ससद भवन तक नारी जागरण की आवाज सुनाई दे रही है। प्रशन उठता है नारी सोई कब थी? अपने कर्तव्य के प्रति आदिकाल से ही सचेत थी ओर सत्य शील की सुरक्षा के गुर उसके पास आज की बनस्पित बीते कल तक ज्यादा मोजुद थे। किताबी शिक्षा भले उसके लिये आकाशी उडान थी पर कलात्मक जीवन से महरुम वह कभी नही थी।
जो महिला पुरुषो कि बराबरी कि बाते करती है वो शायद उनकि मानसिक नारी जाति को पुरुषो के प्रति बरगलाना है।
आज कि नारी कि पुरुषो से तुलना करना शर्म कि बात है क्यो कि बेचारे मर्द अब स्त्रियो से एक दो कदम निचे हो गये है।
सामाजिक जिवन मे कुछ ऐसे प्रसग भी है जो भीतर तक सिहरन पैदा कर देते है। आये दिन तलाक कि घटनाए, अस्त व्यस्त पारिवारिक व्यवस्थाये, सिमटती स्नेहिल सिमाए आदि न जाने कितने मुखोटे आज जीवन शैली धारण करती जा रही है।
आज सडक से ससद भवन तक नारी जागरण की आवाज सुनाई दे रही है। प्रशन उठता है नारी सोई कब थी? अपने कर्तव्य के प्रति आदिकाल से ही सचेत थी ओर सत्य शील की सुरक्षा के गुर उसके पास आज की बनस्पित बीते कल तक ज्यादा मोजुद थे। किताबी शिक्षा भले उसके लिये आकाशी उडान थी पर कलात्मक जीवन से महरुम वह कभी नही थी।
जो महिला पुरुषो कि बराबरी कि बाते करती है वो शायद उनकि मानसिक नारी जाति को पुरुषो के प्रति बरगलाना है।
आज कि नारी कि पुरुषो से तुलना करना शर्म कि बात है क्यो कि बेचारे मर्द अब स्त्रियो से एक दो कदम निचे हो गये है।
आज का सवाल होना चाहिये हम पुरुषो के साथ यह दोगला व्यवाहर क्यो ? हमे भी हक होना चाहिये बच्चे पैदा करने का। और हम पुरुष कोशिश कर रहे है कि हम मॉ बन सके।
मैने लम्बा लिख दिया,
अर्थात, पुरुष नारी के सम्बन्धो के बिच COMPETITON - RIVAL - OPPONENT शब्दो को जोडना खराब मानसिकता रखने कि बात पुख्ता होती है । आज अगर नारी कलेकटर बनी है, तो पुरुष ने उसके सपने को साकार रुप करने मे, अपना सहयोग, हाथ ओर उगली पकड कर किया है।
अतः मे मुझे याद आ रहा है महर्षि रमण का लिखा वो वाक्य " नारि पति के लिये चरित्र, सतान के लिये ममता, समाज के लिये शील , विश्व के लिये दया और प्राणी के लिये करुणा सजोने वाली महाप्रकृति है"
मैने लम्बा लिख दिया,
अर्थात, पुरुष नारी के सम्बन्धो के बिच COMPETITON - RIVAL - OPPONENT शब्दो को जोडना खराब मानसिकता रखने कि बात पुख्ता होती है । आज अगर नारी कलेकटर बनी है, तो पुरुष ने उसके सपने को साकार रुप करने मे, अपना सहयोग, हाथ ओर उगली पकड कर किया है।
अतः मे मुझे याद आ रहा है महर्षि रमण का लिखा वो वाक्य " नारि पति के लिये चरित्र, सतान के लिये ममता, समाज के लिये शील , विश्व के लिये दया और प्राणी के लिये करुणा सजोने वाली महाप्रकृति है"
नमस्कार, आप का लेख बहुत अच्छा लगा,
धन्यवाद.
एक राय.. अच्छी लगे तो माने वरना भुल जाये...
भाई आप इतनी अच्छी पोस्ट देते है, लेकिन बहुत बडी, अगर इसी पोस्ट को तीन या चार हिस्सो मे देते तो लोग इसे पढते भी ओर आप को टिपण्णियां भी धीरे धीरे आती, लम्बी पोस्ट देख कर लोग कम ही पढते है.
बिना पढे ही पूछ रहा हूँ, नाम बताओ यार.
महाप्रज्ञ में क्या देखा जो लट्टू हो गये यार.
कथनी-करनी भेद से तेरापंथ को सिरे लगाया.
समर्थ-तेजस्वी समाज को नेता-हीन बनाया.
दो सौ से ज्यादा लिखे हैं ग्रन्थ,ग्रन्थियाँ बढती.
दसवीं के लायक बातें, महिलायें ज्यादा पढती.
इतना तेजस्वी चेहरा, और प्रभाव-शाली लिखते.
क्या देखा है महाप्रज्ञ में, वक्त बर्बाद करते.
क्या बोलूँ, मैंने भी शोध करी उनके लेखन पर.
डिग्री ना ली,शर्मिन्दा हूँ, मैं उनके कर्मों पर.
शुभ-कामना है, जल्दी निकलो, इस गड्डे से भैया.
जो चाहो तो बात करो, नम्बर देता हूँ भैय्या...०९९०३०९४५०८
main raaj bhaatiya jee se bilkul sehmat hun...aap bahut accha likhte hain..thoda post ko chota kar dijiya kijiye...
bahut accha lekh laga...
बहुत ही उम्दा पोस्ट लिखी है आप ने.विषय भी बहुत अच्छा है.चित्र विषय अनुकूल हैं.
आप ने लगभग हर पहलु को अपने लेख में लिखने का अच्छा प्रयास किया है.
बधाई .
itni vistrit aur amoolya jaankaari di aapne...
aabhaar aur dhanyavaad svikaareiN !
Aur mere khyaal se bhi Rajbhai aur Amitbhai
ke sujhaav pr gaur kreiN..hm sb ke liye hi sahee...lekin...apni suvidha anusaar..!!
---MUFLIS---
naari ke alag alag roop... bahut hu badhiya likha hai...
naari.. ek beti...maa..bahu...biwi..bahen...jaise kai alag alag roop pradhaan karke iss sansaar mai samai hai....
पुरुष तो स्त्रियों का शोषण करते हैं, लेकिन ताज्जुब की बात है कि स्त्री का शोषण स्त्रियां भी जम कर करती हैं.
इसके कई आंख-खोलू उदाहरण आप ने इस आलेख में दिया है. इसका एक दूसरा उदाहरण है अमरीकी स्त्री मुक्ति आंदोलन.
1960 आदि में जनप्रिय हुए इस आंदोलन ने हिन्दुस्तान में भी कई चिंतकों को अपने गिरफ्त में लिया है. लेकिन विडंबना की बात यह है कि इस स्त्रीमुक्ति आंदोलन में नग्न रूप में समाज में फिरने की आजादी और व्यभिचार को स्त्रीमुक्ति माना गया है. हिन्दुस्तान को इस तरह के स्त्रीमुक्ति की जरूरत नहीं है.
सस्नेह -- शास्त्री
कविवर सुमित्रानंदन पन्त की ये पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूंगा :
नारी की सुन्दरता पर मैं होता नहीं विमोहित
शोभा का ऐश्वर्य मुझे करता अवश्य आनंदित.