चिट्ठे के टीकाकारो - टीप्पणी करो, प‍र CONDITIONS APPLY ?

Posted: 23 नवंबर 2008

भारतीय सविधान का ढॉचा कुछ इस प्रकार वर्णित है:- जनता, जनता की सेवार्थ कार्यरत सरकारी एवम गैर सरकारी गतिविधियो पर अपनी टीप्पणी जिम्मेदार पूर्वक दे सकती है। अभिव्यक्ति आम जनता का मोलिक अधिकार है। अर्थात BLOGS OF THE PEOPLE, BY THE PEOPLE AND FOR THE PEOPLE, गणतन्त्र मे अभिव्यक्ति की ऐसी रुपरेखा कितनी आकर्षक और मोहक है। व्यक्ति की अभिव्यक्ति यह तो है एक आ‍‍दर्श उदाहरण - वाक्य अथवा परिभाषा। परन्तु जमीनी स्तर पर अर्थात वास्तविकता कुछ ओर ही दिखाई पडती है। कथनी और करनी का भेद स्पष्ट परिलक्षित होता है:,” चिट्ठे के टीकाकारो की अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता को लेकर। हमारे अधिकारो की कुछ चिट्ठाकारो द्वारा खुलम खुला धजिया उडाई जा रही और तो और पत्रकारिता जगत के पुराने महारथी, चिट्ठे के टीकाकारो की अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता का खुन होते हुऐ साक्षी बन रहे है। कुछ ब्लोगरो के गैर जिम्मेदाराना हरकत का पक्ष लेते हुऐ पुज्यनीय चाचा, ताऊ, मामा दादा, काका, (ब्लोग एवम पत्रकारजगत के आदरणीय) गैरजिम्मेदाराना ब्लोगरो के साथ खडे दिख रहे, जो एक स्वस्थ अभिव्यक्ति कि दर्दनाक मृत्यु को देख रहे है। अफसोस लोकतन्त्र का चोथा स्तम्भ, आज उसके मुल आईने (कॉच) टीकाकारो का, कुछ फैन्सी ब्लोगरो द्वारा कटुतापुर्ण, रवैया का मोन असाहय दर्शक कि भुमिका मे खडा है।

कारणऔर कारण :-

मेन एक ब्लोगर मेडम को, उनकि एक कविता पर टिपणी भेजी थी जो मेडम ने “असहमती” नाम से एक पोस्ट प्रकाशीत कि जिसमे मेरी वो टिपणी भी प्रसारित कि। आप लोगो कि सुविधा के लिये, मै वो टिपणी, आप लोगो से मुझे न्याय मिले, उसके लिये मैडम कि दाट-दपटी सहित मेरा खण्डन भी साथ मे दे रहा हू। कारण साफ है कि आप लोग मेरी उस टिपणी को देखे जिसमे कही से भी अभद्र्/ अव्यवहारिक/असामाजिक/ दिल को चोट पहुचाने वाली बात लगती है क्या? भाषाई गलती/ शब्दो कि सटिकता मे जरुर मेने कही चुक कि होगी। तो क्या एक चिट्ठाकार किसी भी व्यवहारीक शालिन टिकाकार कि धजिया उडाने के चक्कर मे प्रचार-प्रसार कि सारी नितियो को ही ताक मे रख दिया। खुद कि TRP बढाने के चक्कर मे मेडमजी! ने टिकाकरो को भयभित करने का काम किया है। शायद अब भले घरानो के टिकाकारो को ब्लोगो पर टिपियाना छोडना ही पडेगा। शायद भविष्य मे हम टिकाकारो कि ब्लोग जगत मे कमी महसुस कि जायेगी, क्यो कि कोई भी टिकाकार अपनी स्वाभिमान को दाव पर नही लगा सकता है। वास्तविक पत्रकार/ लेखक/ साहित्यकार/ सम्पादक/ अगर कही से भी इस ब्लोग जगत से झुडे हुऐ है तो उनको मालुम है- आलोचक या टीपणीकार कि क्या भुमिका है प्रसारण एवम प्रकाशन जगत मे ? क्षमा चाहता हु ब्लोग गुरुजनो से क्यो कि कही कुछ ज्यादा ही लिख दिया। पर चितन कि अपेक्षा है। चिन्ता नही करे। मै डरपोक भागने वाला आलोचक या टीपणीकार नही हू. मै भविष्य मै भी अपना काम करता रहुगा। एवम पत्रो-को आकार देने वाले बन्धुओ को आज से, कल और अधिक मात्रा मे मेरी टिपणीया मिलेगी। जिसमे व्यवाहरिकता के साथ सामाजिक मर्यादाओ का पहले कि तरह पालन होगा।
मैने कुछ दिनो पर्व उपरोक्त मेडम के ब्लोग पर उनकी कविता पर
मेरी प्रतिक्रिया भेजी थी। जो इस प्रकार थी-
विता आज का जनप्रिय काव्य-कथ्य हो गया है। पुराने जमाने मे जो स्थान दोहा, सोरठा या मनोहर-छन्द का था उसे आज कविताओ ने छीन लिया है।आपकी बेतरतीब कविता मे अपेक्षाकृत सुगमता कि झलक थी, यघपि इसमे अनुभुति की प्रखरता तो अपेक्षित है, पर तुकबन्दी के कारण एक चमत्कार भी आ जाता है। “ओक” शब्द का भावार्थ क्या है ? “झेलें” शब्द कुछ मजा नही आया।”गुलाबी गुलाबी सा चाँद”, अगर चाँद को निला या सफेद धुधीया रग का बताते तो कैसा रहता? आशा है, बेतरतीब अपने सवेदन सन्देश को अन्य लोगो तक पहुचाने की परम्परा को निभाने मे समर्थ हो सकेगा।
मैडम”- ने धजिया उडाने के चक्कर मे (मेरी) भले टिकाकार कि स्वतन्त्रता का मजाक उडाया और अपने ब्लोग पर विशेषाक छाप दिया। उस के सम्पादित अश जो इस प्रकार है-
(मैडम्) ने लिखा- लोगों कि प्रतिक्रिया पढ़ कर मेरा वाकई मन किया है कि मैं उनसे इतनी बहस करूँ कि वो हार कर चुप हो जाएँ…उनके लिखे कि धज्जियाँ उड़ा दूँ। परसों एक कमेन्ट आया जिससे उस वक्त से मेरा दिमाग ख़राब हो रखा है, और मैं जानती हूँ कि जब तक मैं लिख न लूँ शान्ति नहीं मिलेगी।
(मैडम्) ने लिखा- मुझे इस कमेन्ट पर आपत्ति है”… (मैडम्) ने लिखा- ” पहली बात कविताओं ने कभी किसी का स्थान नहीं छीना, कवितायेँ कोई नेता नहीं हैं जो हमेशा कुर्सी छीनने के बारे में सोचती रहे।
मेरा खणडन- हा छीनने का भाव है - जगह लेना। जैसे पेजर की जगह आधुनिक मोबाईल ने ले कर क्रान्ति का सुत्रपात्र किया। या पोस्टकार्ड कि जगह………….। (पर मुझे यह पत्ता नही चला मेरी प्रतिक्रिया पर इतनी कटुता भरी क्रिया क्यु ? मैने तो आपके मन को भाने वाली ही बात कि।)
(मैडम्) ने लिखा- दूसरी बात…मेरी कविता में तुकबंदी है ही नहीं, किन्ही पंक्तियों में नहीं, तो फ़िर ये कहना कि तुकबंदी के कारण चमत्कार आ जाता है”, क्या मायने रखता। सिवाए ये दिखने कि इन महाशय को या तो पता नहीं है कि तुकबंदी क्या होती है।
मेरा खणडन- ही पता। क्या इस लिये आप टीकाकारो कि धजिया उडा देगी ? आप जो करे या आप जो लिखे वो हिरा- मोति, हम लिख्र तो कोयला ? क्या कोई ब्लोग मे अनाप सनाप लिखे और आपको खुल्ल्म खुल्ला टिकाकारो कि धजिया उडाने का हक किसने दिया? देश मे प्राप्त अभिव्यक्त्ति कि स्वतन्त्रता का आप जैसे ब्लोगर धजिया उडाने कि बात कर के लोकतन्त्र के चोथे स्तम्भ का मजाक उडाया है।
(मैडम्) ने लिखा– तीसरी बात” ओक शब्द का भावार्थ क्या है” जनाब शब्द का शब्दार्थ होता है, भावार्थ नहीं…पंक्ति या कविता का भावार्थ होता है।
मेरा खणडन- मुझे “ओक” शब्द का भाव समझना था। मैने शब्दार्थ कि जगह भावार्थ लिखा आपके गुस्से का कारण मेरी कमजोर हिन्दी है या कोई शब्दावली है ? तो मै आप से क्षमा मागता हू।” ( पर कम से कम आप “ओक” का भावार्थ कि जगह शब्दार्थ तो बता देती ? ) काव्य-शास्त्र मे रस और भाव -धारा का बहुत विशद विवेचन हुआ है। तिन भाव धाराए है-स्थायीभाव और सात्विकभाव, सचारीभाव। किस मुद्रा मे कोन से भाव जन्म लेते है ? व्यक्ति के भाव किस रुप मे प्रकट होता है ? यह सारा ज्ञात हो जाता है। शृगार-रस की एक मुद्रा होती है,करुण-रस की दुसरी, बीभत्स रस की तीसरी, रोद्र रस की चोथी, शान्त रस कि पॉचवी मुद्रा होती है। प्रत्येक भाव और प्रत्येक रस की भिन्न भिन्न मुद्रा होती है। रसानुभूति,भावनानूभूति,और मुद्रा सब जुडे हुये है। हमारी मुद्रा का सम्बन्ध भावना से जुडा हुआ है- मैडम जी॥। "

(मैडम्) ने लिखा - चौथी और सबसे IRRITATING बात…”गुलाबी गुलाबी सा चाँद”, अगर चाँद को निला या सफेद धुधीया रग का बताते तो कैसा रहता? ” मैं नहीं बताउंगी नीला या पीला, क्यों बताऊँ, मेरी कविता है मेरा जो मन करेगा लिखूंगी, आपको इतना ही शौक है कि चाँद नीला या सफ़ेद हो तो आप ख़ुद एक कविता लिखिए….आप कौन होते हैं मुझे मेरे चाँद के रंग पर सलाह देने वाले…इसको सरासर हस्तक्षेप कहते हैं, बिन मतलब और बेसिरपैर की सलाह दे"
मेरा खणडन- ब्दो का यह व्यापार क्या मै अकेला करता हू ? मेरी तरह हजारो लोगो ने भी तो शब्दो का व्यापार जमा रखा है। अनेक दुकाने है अनेक महाजन है। भिन्न भिन्न श्रोता या पाठक या लेखक सबके अलग अलग मच है। लच्छेदार शानदार शैली मे लिखे लेख, कविता आदि और कीमती कागज पर पक्की जिल्द तथा नयनाभिराम आवरण पृष्ट कि पुस्तके हो या ब्लोग शब्दो का व्यापार ही है। शब्द की शक्ती भी अनन्त है। कही शब्दो की प्रशसा और चापलुसी मे उपयोग किया जा रहा है। कभी लोग अपनी ब्लोग की TRP बढाने के चक्कर मे अगारे (आग) बनाकर बरसा रहे है। कुछ शब्दो के शिल्पी या कलमजीवी दुसरो कि आलोचना एवम बुराईयो कि धज्जी उडाने मे भुल जाते है कि धुल उन पर भी छाई हुई है, मैल उनके मन एवम आचरण मे भी है। लोग एक दो लाईन क्या लिखते है अपने आपको महादेवी वर्मा, समझने लगते है। या यू कॉहू कि बिल्ली लोमडी बनने कि कोशिश कर रही है।"
मैडम्) ने लिखा- र आखिरी पंक्ति “आशा है, बेतरतीब अपने सवेदन सन्देश को अन्य लोगो तक पहुचाने की परम्परा को निभाने मे समर्थ हो सकेगा।-” जी नहीं, इसमें कोई संवेदन संदेश नहीं है…कृपया आसान सी चीज़ों में जबरदस्ती के गूढ़ भाव न खोजें। आपसे अगर पूछूँ की संवेदन संदेश का अर्थ क्या होता है तो शायद आप भी नहीं बता पायेंगे. क्या सिर्फ़ कुछ भी लिख देने के लिए कमेन्ट लिखने की जगह होती है…चाहे वो relevant हो या नहीं? ऐसा कुछ भी लिखने के लिए ब्लॉग होता है जहाँ पर आप उल्टा सीधा जो मन करे लिख सकते हैं, क्योंकि ब्लॉग लिखने का उद्देश्य अपनी बात कहना होता है।
मेरा ख्ण्डन- संवेदन संदेश” मैने प्रतिक्रिया मे उल्लेख किया। आपने कहा “संवेदन संदेश” का अर्थ मुझे पत्ता भी नही होगा ? और यह ”संवेदन संदेश” आपकी कविता कि प्रतिक्रिया मे मुझे भाषित नही करना चाहीऐ था। क्या आपको इस शब्द का अर्थ ज्ञात है तो बता देती। नाराज होने कि क्या वजह ? पर सभ्य टीपणीकार कि हैसियत से इसके लिये भी मै आपसे कमजोर हिन्दि ज्ञान के लिये क्षमा मागता हु।
मैडम्) ने लिखा- मैंने कई और बार भी देखा है कि कोई कुछ भी लिख जाता है। सिर्फ़ बढ़िया है, अच्छा लगा…जैसे कमेन्ट दें. खास तौर से बुरा लगा मुझे जब दिवाली के समय मैंने माँ की बरसी पर एक पोस्ट लिखी थी और उसमें भी कमेन्ट में लोग मुझे दिवाली की शुभकामनाएं दे गए थे. क्या क्षण भर ठहर के ये देखना जरूरी नहीं था की जिसे आप हैप्पी दिवाली कह रहे हैं वह इस दिवाली को किस तरह से मना रहा है…दिवाली है या मुहर्रम उसके घर में.।
मेरा ख्ण्डन- क्या लोगो से आपकी यह अपेक्षा उचित है ? आपको दिपावली पर किसी ने शुभकामनाएं भेजी और आप एक बार फिर बेचारे किसी टिपणीकार कि धजिया उडा दि । क्यो कि शुभकामनाएं भेजने वाले को यह नही पत्ता था कि आपने उस वक्त ही माँ की बरसी पर एक पोस्ट लिखी थी- और आप सेड (दुखी) थी। इससे तो यह ही साबित होता है आपके पाठक आपके लिखे को नही पढते। बस यु ही चलते फिरते विजिट कर लेते है। जरा सोचने वाली बात है।"
मेरी जिज्ञासा हिन्दी के आदर्णीय चिट्ठाकरो से:-
क्या हिन्दी ब्लोग को व्यक्ति कि पर्सनल सम्पति मान लेना चाहीये ?
क्या हिन्दी ब्लोग को लोकतन्त्र के चोथे स्तम्भ पत्रकारिता का आधुनिक अश नही मानना चाहिये ?
कुछ चिट्ठो मे समाचारो का प्रकाशन होता है, कुछ चिट्ठो पर देश के सवेदनशील मुदो का प्रसारण होता है, क्या इस तरह बिना लगाम के घोडे वाली स्थिति नही लगती है ? क्यो कि कुछ ब्लोगकर्ता इसे अपनी व्यक्तिगत डायरी मानते है। तब ऐसे मे उन्हे यह जिम्मेदारी क्यो देना चाहिये , कि वे देश के विशम मुद्दो पर समाचार एवम टिका करे ?
जो ब्लोगर यह कहते हुऐ फिरते है कि “मेरा ब्लोग, मे कुछ भी लिखुगा/लिखुगी,” तो क्यो न उनके ब्लोग से कमेन्ट बोक्स निकाले जाये ? और ऐसे ब्लोगो को अलग वर्ग मे डाला जाये ताकि फिर वो अपनी पर्शनल डायरी बडी ही सुकन से लिख सके और फिर उनके घर की खिडकी मे बहार का व्यक्ति ताक झाक नही करेगा।
मेरा ऐसा मनना है कि दुनिया मे आने वाले समय मे ब्लोगजगत, पत्रकारिता का आधुनिक रुप होगा। शायद अखबारो ,टीवी का स्थान लेले। ऐसे मे जनता कि अभिव्यक्ति का भी अहम स्वीकारिय रोल है और रहेगा। मुझे उम्मीद है कि,बहुत जल्दी ही सरकार का ध्यान इस और जायेगा और यस्त व्यस्त ब्लोगिग कि जिवन-धारा को लोकतन्त्र के अनुरुप जनता कि अभिव्यक्ति के मान-समान की रक्षा करते हुऐ व्यवस्थीत करे।
मेरा ऐसा मनना है कि ब्लोग जगत को दो वर्गो मे बॉटना चाहिये.
(अ) “पत्रकारिता चिट्ठे” सरकार और जनता के अधीन हो जो एक लाइसेन्स कि प्रक्रिया से गुजरे. ताकि वास्तविक ब्लोगरो को अपना काम करने मे मजा आये और जनता कि सेवा मे योगदान दे सके.
(ब) व्यक्तिगत चिट्ठे, जिसके ‍ रजिस्ट्रेशन कि जरुरत नही, सरकार और जनता के अधिनस्थ नही। व्यक्तिगत चिट्ठे, समाचार सामरिक एवम कोई भी तरह की घटना का प्रसारण के अधिकार नही होने चाहिये। व्यक्तिगत चिट्ठे को समित स्पेस १०० से ५०० एम बी देना चाहिये क्यो कि कहानी , कविता, श्रदान्जली, हेपी दिवाली,होली, बर्थ डे, और अपनी गाय भैस कि दिनचर्या आराम से लिख सके। कमेन्ट बोक्स कि सुविधा हटा कर उसकी जगह ई मेल से परिवार वाले, दोस्त मित्र व्यक्तिगत चिट्ठे से सम्पर्क साध सके।
मैने श्री सुरेशजी चिपलूनकरजी के लेख
ब्लॉग में “टिप्पणी मॉडरेशन” तानाशाही का प्रतीक है के सन्दर्भ मे कुछ समाननीय आदरणीय चिट्ठाकारो के विचारो से सहमत हु। उनके विचारो का सम्पादित अश -: प्रस्तुत है-: जो मेरे विचारो को मजबुती प्रदान करते है।
Shastri said…मनमानी करने दें. कल को उन्हें प्रबुद्ध पाठक/टिप्पणीकार मिलना बंद हो जायेंगे. जैसी करनी वैसी भरनी. मैं यह कहना भूल गया था कि जो लोग छाती पीट कर कहते हैं कि “मेरे चिट्ठे पर मैं कुछ भी करूँ तुम्हारा क्या जाता है” वे यह भूल जाते हैं कि पाठक भी कुछ कहना चाहता है और वह है:“भाड में जाओ तुम और तुम्हारा ‘व्यक्तिगत़’ चिट्ठा. यदि तुम पाठकों की इज्जत करना नहीं जानते तो तुम को किस तरह के पाठक मिलेंगे यह हमें मालूम है”. 11 November, 2008 5:55 PM
masijeevi said… अभिव्‍यक्ति की स्वतंत्रता के विरोधी औजारों से हमारा व्‍यक्‍त विरोध है अत: विरोधी होने के कारण टिप्‍पणी को पाठक-स्‍पेस में जगह न देने का विरोध करते हैं मेरी मरजी वाला तर्क लंगड़ा तर्क है, क्‍योंकि चिट्ठाकार चिट्ठे का मालिक नहीं होता वह चिट्ठे की निर्मिति होता है, इस मायने में वह चिट्ठे के पाठकों से निर्मित होता है। ब्‍लॉग सैद्धांतिकी की बेहद उजड्ड समझ है जो पाठकों की सत्‍ता का निषेध करे। चिट्ठे का श्‍वेत हिस्‍सा यानि टिप्‍पणी पृष्‍ठ पाठक का है यहॉं तक कि जब चिट्ठाकार खुद भी अपने चिट्ठे पर टिप्‍पणी करता है तो उसकी हैसियत एक पाठक की ही होती है।
नोटः मेने यह बात कहते हुऐ किसी भी ब्लोग भाई या बहिन से राग-द्वूवेश न रखते हुऐ लिखे है। यह मेरे व्यक्तिगत विचार है किसी का सहमत होना या न होना आवश्यक नही है। फिर भी जाने अनजाने किसी का दिल दुखाया हो तो सविनय क्षमा मगता हु लिखते हुऐ शब्दो मे, मात्राओ मे, उदारहणो मे, भावार्थो मे, शब्दार्थो मे अथवा आदर सम्मान मे चुक हुई हो तो आपकि टिपणी आने से पुर्व क्षमा मागता हु। मुल मेरी भावना को समझे ।
महावीर बी. सेमलानी “भारती”

13 comments:

  1. बाल भवन जबलपुर 23 नवंबर, 2008

    भाई वो तो ठीक है किंतु कौन है वो बहन जी

  2. '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 23 नवंबर, 2008

    सेमलानी ' भारती ' जी
    लगाता है आपने निराला जी जिन्हें 'महाकवि ' पुकारा जता है के स्वतंत्र छंद का रसास्वादन नही किया है , वरना आप बेतरतीब शब्द का प्रयोग कदापि ना करते , और ना रदीफ़ -काफिया मिलाने को तुक बंदी कहते | ब्लोगिंग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ब्लोगर का अधिकार है ,टिप्पणी कार का नही , आप को कोई चीज पसंद नही आई यदि वह आप से सम्बन्धित या संबोधित नही है तो आगे बढ़ जाएँ , | लगता है आप को ब्लोगिंग की उत्पति के पीछे की आवधारणा का ज्ञान नही है ,तथा कविता या कल्पना तो जी\चीज ही आए सी है , की कहा गया है की जहाँ न पहुंचे रवि वहा पहुंचे कवि | और जब आप को दोहा चौपाई सोरठा छंद आदि की बारीकियां जानते है तो आप की हिन्दी कमजोर नही हो सकती | और टी भाव पुरे वाक्य से प्रकट होगा चाहे गद्य हो या पद्य हो , धारणा के दो भाव , पहनना , धारण करना , तथा विचार दोनों होते हैं ,अब यह तो पूरा वाक्य ही यह निर्धारित करेगा की धारणा शब्द का प्रयोग यहाँ पर किस सन्दर्भ में किया गया है |
    किसी राजा के दरबार में एक नौजवान ज्योतिष पहुँच कर राजा से कहता है की उसके परिवार के सभी लोग उसी के जी वित् रहते मर जायेंगे कोई पानी देने वाला नही बचेगा इतनी ज्यादा लम्बी उम्र राजा ने पाई है ,राजा नाराज हो उसे कारागार में डाल देते है ,ख़बर सुन कर उसका दादा [पिता का पिता ] आता है और कहता है , आहाः क्या श्रेष्ठ योग है राजा जी आप ने तो ऐसी आमित आयु पाई है जैसी आपके वंशजो में कोई नाही पाया है और इससे पूर्व भी कोई नही पाया था , राजाने आपने खानदान में सबसे लम्बी आयु पायी है , अनंत काल तक राज करेगा जितना भविष्य में उसका कोई वंशज नही कर पायेगा [ अरे जब सब राजा के जिवित्त रहते ही मर खप जायेंगे तो राज कहाँ से करेंगे ] || बात दोनों ज्योतिषियों ने तो एक ही कही थी ,परन्तु शैली का अन्तर था , मै चाँद को अपनी कल्पना में हरा किए देता हूँ इससे आप को क्या फर्क पङता है आप अपनी चाँदनी दूधिया रखे रहिये मुझे क्या अन्तर पङता है , ब्लॉग अखबार नही हैं | आशा है आप को अपनी शंका का समाधान मिल गया होगा और यदि पहली बार में यह पढ़ने से कुछ समझ न आवे तो इसे बार बार मनन करते हुए पढियेगा | केवल ब्लॉग ही ना पढ़े ,लोगों की टिप्पणियाँ भी पढा करें | आप के ब्लोगर मित्र
    अन्योनास्ति की बतकही पर क्लिक करें

  3. '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 23 नवंबर, 2008

    आप स्वयं तो दूसरे पर स्वतन्त्र टिप्पणी करना चाहते हैं ,परन्तु स्वयम पर स्वीकृति का बंधन लगा रखा है ; टिप्पणी का महत्त्व व आनन्द तब है जब वे तुंरत प्रकाशित हो जाएँ \ जो व्यवहार आप अपने साथ चाहतें है वैसा ही व्यवहार दूसारों से करें भी \

  4. '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 23 नवंबर, 2008

    aap koee vakiil yaa ,vakaalat padhe athava koee shikshak lagate hai

  5. बेनामी 23 नवंबर, 2008

    अरे भईया, ये मेडम जो कुछ लिखें उसे तो कचरे की टोकरी में डाल देना है. ये कोई बुद्धिजीवी थोडी है.

    आपने बिंदुवार जवाब दिया, अच्छा किया. आगे इनके चिट्ठे पर मत जाना.

    शादीब्याह के पंडाल के अंदर जाकर सब के साथ खाना खाने के बदले जो लोग बाहर खडे होकर पत्तलों पर झगडते हैं उनके साथ विचार-विमर्श करके क्या अपना स्तर गिराना है आप को.

    आप शायद नये हैं इसलिये ये चीजें नहीं मालूम है.

  6. बेनामी 24 नवंबर, 2008

    पुरा झाडू ही मार दिया मेरे भगवन! आखिर यह मैडम है कोन ?

  7. Vineeta Yashsavi 25 नवंबर, 2008

    Kuchh logo ki understanding thik hoti hai wo dusro ke point of view ko samjhte hai aur agar kahi koi galti ho to use sudhar kar apne bhala karte hai par kuchh log apne se aage kisi ko nahi samjhte isliye zyada mat sochiye aur apna kaam karte rahiye. duniya sab dekh rahi hai.

  8. बेनामी 25 नवंबर, 2008

    હવે આ ઇન્દ્રા ગાન્ધી કોન સે? તમ્હારા સન્દેસ માટે તમ્હે ઘણી બાધાઈ

  9. बेनामी 25 नवंबर, 2008

    (मैडम्) ने लिखा- ”लोगों कि प्रतिक्रिया पढ़ कर मेरा वाकई मन किया है कि मैं उनसे इतनी बहस करूँ कि वो हार कर चुप हो जाएँ…उनके लिखे कि धज्जियाँ उड़ा दूँ। परसों एक कमेन्ट आया जिससे उस वक्त से मेरा दिमाग ख़राब हो रखा है, और मैं जानती हूँ कि जब तक मैं लिख न लूँ शान्ति नहीं मिलेगी।”

    ईस तरह कि भाषा का उपयोग सभ्यता कि हद्दे पार करने वाली है। मेडम हो या मेडमा किसी को यह सोभा नही देता। आपने मेडम के नाम का उल्लेख न करके यह बात साबित कि है कि आपका यह लेख किसी व्यक्ति विशेष को बदनाम करने के लिये नही है। मर्यादाओ का पालन करके आपने इस मेडम को खुश कर दिया। लिखते रहे पर बेचारी मेडॅम पर नही।
    प्रेम जैन
    prem_jain@zapak.com

  10. Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " 25 नवंबर, 2008

    ट्टिपणी क्या करें उनपर, जो ना सुनते सत्य अब.
    वाह रे तेरापंथ जो, स्व-धर्म से भटका है अब.
    बस यहाँ पर जीहूजूरों कि ही गलती दाल है.
    तत्व-चर्चा,ध्यान्न सामायिक की बन्द है बात अब.

  11. Shastri JC Philip 25 नवंबर, 2008

    दो दिन से यात्रा पर था अत: आपका यह आलेख आज ही देख पाया. आप ने अपने दर्द का वर्णन सही किया है. जब किसी टिप्पणी को कोई व्यक्ति अपने चिट्ठे छापने नहीं देता लेकिन उसको लेकर एक विमर्शनात्मक लेख बना लेता है तो दुख होता है. लेकिन ऐसा होता रहेगा क्योंकि "चिट्ठे" का मतलब ही है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. हां, यदि किसी ने अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर आपको हठात दुख पहुंचाया है तो बेहतर होगा कि आईंदा उस चिट्ठाकार के चिट्ठे पर न जायें.

    चिट्ठाजगत में सैकडों चिट्ठे हैं जिन पर आप चिट्ठाकार का विरोध कर सकते हैं. वे आपकी टिप्पणी को किसी भी हालत में नहीं मिटायेंगे. इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं मेरा चिट्ठा "सारथी" जहां आप मेरे आलेख की धज्जियां उडा सकते हैं लेकिन मैं बुरा नहीं मानूंगा.

    सस्नेह -- शास्त्री

  12. ज्योत्स्ना पाण्डेय 25 नवंबर, 2008

    aapke lekh ko silsilevar pada.kisi ki burai khojte rahe to burai hi dikhegi .aap jis prakar dhool ko jhad dete hain vaise hi un vicharon ko bhi jhad deejiye jo man ko malin karne ka karan hon .kshama baden ko chahiye ............

  13. vimi 29 नवंबर, 2008

    appreciation and criticism both are two sides of the same coin !

    .......kahe kabir so hi badaa,jame badaa swabhaav

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अमुल्य टीपणीयो के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद।
आपका हे प्रभु यह तेरापन्थ के हिन्दी ब्लोग पर तेह दिल से स्वागत है। आपका छोटा सा कमेन्ट भी हमारा उत्साह बढता है-