परिन्दे

Posted: 06 नवंबर 2008
गीत तो थे हम स्वर नही दे पाये,
प्रशन तो थे, हम उत्तर नही दे पाये।
परिन्दो का विचारो का क्या दोष ?
हम ही उन्हे उडने का अवसर नही दे पाये।


हर दीवार मे आज शोषण का सिमेन्ट है,
हर बल्ब मे आज ब्लेक का करेन्ट है।
दान-पुण्य तो लाखो का नही करोडो का होता है,
पर, हर बिल का आज दो नम्बर मे पेमेन्ट है॥


कल जो मजदुर थे, आज वे सरदार है,
कल जो सरदार थे, आज वे बेकार है।
यो तो धक्का कही से लगता ही है,
पर, गिरन-उठने के लिए आदमी स्वम जिम्मेदार है।


न्याय के होठो पर आज पपडी आ गई है,
ईमान के दर्पण प‍र गहरी धुन्ध छा गई है।
कैसे रक्षा करे हम फसल की उससमय
खुद बाड ही जब खेत को खा रही है॥


भगवान से भी मुश्किल है, भक्तो को रिझाना,
मुश्किल है मन्त्री से भी अधिक, पि ए से मिल पाना।
राशन कार्ड तो खैर, किसी तरह बन जाता है,
बहुत मुश्किल है दुकान से राशन हथियाना॥

इस रगीन बस्ती के अघिकाश लोग भिखारी है,
उपर से साधु है पर, अन्दर से शिकारी है।
दवाए कैसे काम कर सकती है, इस देह पर,
जबकि इसे ढोने वाला मन ही विकारी है॥


भेद की दीवार को अब तोड दो,
एकता की ओर मुख को मोड दो।
खाइया खोदी बहुत ही आज तक,
किन्तु अब तो आदते वे छोड दो॥


आओ हम नये आदमी का निर्माण करे।
आओ हम नये युग को आहवान करे।
थके हुए लोग यो ही गुमशुम बैठे रहेगे-
आओ हम नये क्षितिज का अनुसधान करे॥



(मैने समय समय पर अनुभूति सापेक्ष या परिस्थिति सापेक्ष जो मुक्तक लिखे है उन्हे आज जनता के दरबार मे पेश कर रहा हु । आशा है, परिन्दे अपने सवेदन - सन्देश को अन्य लोगो तक पहुचाने की परम्परा को निभाने मे समर्थ हो सकेगा:-
(महावीर बी सेमलानी"भारती" स्टार (I}न्युज मुबई)

1 comments:

  1. Girish Kumar Billore 09 फ़रवरी, 2009

    Wah

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