कथ्य का तथ्य- 3

Posted: 29 सितंबर 2008
कथ्य का तथ्य- 3
नवाकी नाम - भिखु स्याम

शब्द विन्यास भी एक अलोकिक शक्ति है। अक्षरो की सयुक्ति एक दुसरे को आकर्षित - विकर्षित करती है। गणित-सयोग शब्द कि तेजसिवता को और निखार देता है। बशर्त कि शब्द कि ध्वनि सही हो। ध्वनि तरग का घर्षण ऊर्जा स्फुलिग उछालते है। ऊर्जा का आकर्षण पुरी प्रक्रति को प्रकम्पित, प्रभावित, और परिवर्तित करता है।
शब्द शक्ति की यथार्थ योग्यता का अन्कन गणित प‍र निर्भर है। गणित एक शक्ति मापक यन्त्र है। शब्द का गाम्भीर्य उसकी ऊचाई, कटाव,घेराव, फैलाव और विस्फोटक आणविकता का पुर्वानुमान गणित बताता है बस यही वैशिष्ट्य है "भिखु स्याम" नाम मे।
एकबार श्री चन्दजी रामपुरीया - जो जाने माने तेरापन्थ दर्शन सिध्दान्त के विज्ञ, जैन आगमो के स्नात विद्वान और आचार्य सन्त भिखणजी के प‍रमोपासक थे - एक नेपाली तान्त्रिक मिला। उस गोष्ठी मे राजस्थान के विशिष्ट लोग सम्मिलित थे। राजस्थान अकाल राहत प‍र चिन्तन चल रहा था । बागडजी, बिडलाजी, पोद्दारजी, भरतीयाजी, कानोडियजी, दुगडजी, जालानजी इन्ही महारथियो मे बैठे थे रामपुरीयाजी।
इतने मे एक तान्त्रिक महाशय आया। अवधूती वेश। रामपुरीयाजी को देखते ही बिना किसी पुर्व परिचय के कार्पटिक बोला!
"औह! रामपुरीयाजी! आपका ईष्ट बल तो बहुत बलवान है।"
रामपुरीयाजी ने विनम्र भाव होकर कहा-"बाबा! गुरु क्रूपा है। " कार्पटिक ने जिज्ञासा के साथ पुछा-" रामपुरीयाजी! आप अपने इष्ट का नाम बताओ तो ?" रामपुरीया कहने लगे -"बाबा! मेर इष्ट मन्त्र है- "भिखु स्याम।"
सुनत ही बाबा उछला। वाह! वाह! भि >>>>>>खू >>>>>>>स्या >>>>>>>म। देखिये! रामपुरीयाजी! आपके इस इष्ट मन्त्र मे 5 हलन्त और 4 मात्राए है। भ ख स य और म, ये पाचो हलन्त वर्ण है। इ उ आ और अ, ये चार आदि मात्राए है।चार और पाच मिलकर 9 हुए। नो का अर्थ है - अखण्ड, अजेय, अज्ञेय, अननुबाधित, अपरिमेय, अनभिघेय। बडी विशेषताए है 9 के अन्क की। यह कभी टुटता नही। इसे कितनी ही बार गुणन करो 9 का 9 ही रहेगा।

9 x 2 = 18 1 + 8 = 9
9 x 3 = 27 2 + 7 = 9
9 x 4 = 36 3 + 6 = 9
9 x 5 = 45 4 + 5 = 9
9 x 6 = 54 5 + 4 = 9
9 x 7 = 63 6 + 3 = 9
9 x 8 = 72 7 + 2 = 9
9 x 9 = 81 8 + 1 = 9
चाहे सो बार, हजार बार,लाख बार गुणा करो प‍र 9 का अक 9 ही रहेगा। टुटेगा नही। बस यही है रामपुरीयाजी! आपके इष्ट का परम बलिष्ट योग। आपका इष्ट सिद्ध मन्त्र है। सर्वशक्ति सम्पन्न है। उर्जा प्रवाही है। तेज पुन्ज है। कामना पुरक है। विघ्न विनाशी है। भिखु स्याम! भिखु स्याम ! वहा उपस्थित सभी लोगो ने मिलकर नमन मुद्रा मे एक साथ कहा -
भिखु स्याम! भिखु स्याम! भिखु स्याम!

क्रमश:>>>>>>>>>>>>>>
(पुर्व मे प्रसारित "तथ्य का कथ्य" भाग १ और भाग २ आपनेअ पढे होगे।)
इस के लेखक है - मुनि श्री सागरमलजी श्रमण
प्रस्तुति दे रहे है - महावीर बी सेमलानी
विचारकर्ताओ से मत कि अपेक्षा है!!!!!

2 comments:

  1. हें प्रभु यह तेरापंथ 17 अक्तूबर, 2008

    आपका ब्लोग अच्छा लगा

  2. सुनीता शानू 18 अक्तूबर, 2008

    सृजन-शिल्पी पर आप आये, हमारी रचना को सराहा..इससे बेहतर क्या हो सकता है...

    शुक्रिया

    सुनीता शानू

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